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    Stay Home Stay Empowered: जानें, प्लाज्मा, प्लाज्मा थेरेपी और प्लाज्मा बैंक की एबीसीडी

    By Vineet SharanEdited By:
    Updated: Fri, 17 Jul 2020 04:53 PM (IST)

    देश-दुनिया में कोरोना के लिए फिलहाल कोई वैक्सीन नहीं है। इसे देखते हुए दिल्ली समेत कुछ राज्यों में कोरोना के गंभीर मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग किया जा रहा है।

    Stay Home Stay Empowered: जानें, प्लाज्मा, प्लाज्मा थेरेपी और प्लाज्मा बैंक की एबीसीडी

    नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। देश-दुनिया में कोरोना के लिए फिलहाल कोई वैक्सीन नहीं है। इसे देखते हुए दिल्ली समेत कुछ राज्यों में कोरोना के गंभीर मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग किया जा रहा है। इसके उत्साहवर्धक नतीजे भी मिल रहे हैं। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने भी कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को मंजूरी दे दी है। ऐसे में हम जानते हैं कि आखिर ये प्लाज्मा और प्लाज्मा थेरेपी क्या हैं और प्लाज्मा बैंक की क्या है भूमिका -

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    प्लाज्मा

    प्लाज्मा रक्त में उपलब्ध एक तरल पदार्थ होता है। इसका 92 फीसदी भाग पानी होता है। प्लाज्मा में पानी के अलावा प्रोटीन, ग्लूकोस मिनरल, हार्मोंस, कार्बन डाइऑक्साइड होते हैं। शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन रक्त के प्लाज्मा द्वारा होता है। इनके अतिरिक्त रक्त में सिरम एल्बुमिन, कई तरह के प्रोटीन और इलेक्ट्रॉलाइट्स भी पाए जाते हैं। वहीं, रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाले हिमोग्लोबिन और आयरन तत्व की वजह से खून लाल होता है। हृदय शरीर में रक्त का संचार करता है। कोरोना के अटैक के बाद शरीर वायरस से लड़ना शुरू करता है। यह लड़ाई एंटीबॉडी लड़ती है, जो प्लाज्मा की मदद से ही बनती है। अगर शरीर पर्याप्त एंटी बॉडी बना लेता है तो कोरोना हार जाता है।

    प्लाज्मा थेरेपी

    भारत में इसकी चर्चा बीते कुछ समय में शुरू हुई, जब दिल्ली में कुछ लोगों का प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से इलाज शुरू हुआ। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का भी प्लाज्मा थेरेपी से इलाज किया गया। फिर दिल्ली के बाद कर्नाटक में भी इसका ट्रायल शुरू हो गया और इसी तर्ज पर केरल, बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्य भी इसका ट्रायल शुरू करने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। असल में जब किसी इंसान को कोरोना का संक्रमण होता है, तो उसका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए खून में एंटीबॉडी बनाता है। यह एंटीबॉडी संक्रमण को खत्म करने में मदद करती है और ज्यादातर मामलों में जब पर्याप्त एंटी बॉडी बन जाती है तो वायरस नष्ट हो जाता है। डॉक्टर्स के मुताबिक, एक इंसान के खून के प्लाज्मा की मदद से दो लोगों का इलाज किया जा सकता है।

    इलाज का तरीका

    जिस मरीज को एक बार कोरोना का संक्रमण हो जाता है, वह जब ठीक होता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनती है। यह एंटीबॉडी उसको ठीक होने में मदद करती है। ऐसा व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। उसके खून में से प्लाज्मा निकाला जाता है और प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी जब किसी दूसरे मरीज में डाला जाता है तो बीमार मरीज में यह एंटीबॉडी पहुंच जाता है, जो उसे ठीक होने में मदद करता है। एक शख्स से निकाले गए प्लाज्मा की मदद से दो लोगों का इलाज संभव बताया जाता है। कोरोना निगेटिव आने के दो हफ्ते बाद वह प्लाज्मा डोनेट कर सकता है।

    कोरोना के किन मरीजों को प्लाज्मा दे सकते हैं

    डॉक्टरों का कहना है कि जिन मरीजों को प्लाज्मा दिया जा सकता है, उनके लिए भी दिशा-निर्देश हैं। सामान्य तौर पर वायरस से गंभीर रूप से प्रभावित और श्वसन के संक्रमण से पीड़ित मरीजों को प्लाज्मा दिया जा सकता है।

    एंटीबॉडी क्या है?

    एंटीबॉडी हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाला एक प्रोटीन है। यह एंटीजन नामक बाहरी हानिकारक तत्वों से लड़ने में मदद करता है। जब शरीर में एंटीजन प्रवेश करता है, तब इम्यून सिस्टम एंटीबॉडीज बनाता है। एंटीबॉडीज एंटीजन के साथ जुड़कर एंटीजन को बांध देते हैं और साथ ही इनको निष्क्रिय भी कर देते हैं। यहां आपको बता दें कि एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में हजारों की संख्या में एंटीबॉडी होते हैं।

    क्या प्लाज्मा तकनीक स्वस्थ होने की गारंटी है

    ऐसा माना जाना पूर्णत: सही नहीं होगा कि प्लाज्मा तकनीक स्वस्थ होने की गारंटी है। यह जरूरी नहीं है कि एक व्यक्ति पर अगर कोई दवाई असर करती है तो उसका एंटीबैक्टीरियल ट्रांसफ्यूजन दूसरे पर भी असर करेगा ही। चीन में इसके इस्तेमाल से मरीजों की सेहत में सुधार देखा गया था। कई दूसरे देशों से भी इससे फायदा मिलने की खबरें हैं।

    पहली बार कब इस्तेमाल हुई ये थेरेपी

    1890 में एक जर्मन फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेह्रिंग ने पाया कि जब उन्होंने डिप्थीरिया से संक्रमित खरगोश से सीरम लिया, तो यह डिप्थीरिया के कारण होने वाले संक्रमण को रोकने में प्रभावी था। अतीत में कई प्रकार के प्रकोपों के दौरान एक ही प्रकार के उपचारों का उपयोग किया गया है, जिसमें स्पैनिश फ्लू महामारी 1918, डिप्थीरिया का प्रकोप 1920 इत्यादि शामिल हैं। उस समय कंवलसेंट प्लाज्मा थेरेपी या प्लाज्मा थेरेपी कम प्रभावी थी और इसके पर्याप्त दुष्प्रभाव भी थे।

    प्लाज्मा बैंक

    दिल्ली में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए देश का पहला प्लाज्मा बैंक शुरू हो चुका है। लिवर और पित्त विज्ञान संस्थान में प्लाज्मा बैंक शुरू किया गया है। प्लाज्मा दान करने के लिए 1031 पर लोग फोन कर सकते हैं या वॉट्सएप नम्बर 8800007722 पर संदेश भेज सकते हैं।