एक्सपर्ट से जानें, क्या है एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस की समस्या, लक्षण एवं उपचार
अगर किसी को पीठ के निचले हिस्से में या नितम्बों में दर्द हो जो धीरे-धीरे बढ़ता हो और सुबह में तेज होता हो या दर्द के कारण आपकी नींद खुल जाती हो तो इसे नजरअंदाज करने की गलती न करें।
एंकीलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (एएस) एक ऐसी अवस्था है जिसे अक्सर गलती से एक “सामान्य पीठ दर्द” मान लिया जाता है। यह एक सूजन संबंधी अवस्था है जो रीढ़ की संधियों (जॉइंट्स) को प्रभावित करती है। इसमें रीढ़ का लचीलापन कम हो जाता है और घूमना-फिरना बंद होने का ख़तरा पैदा हो जाता है। ‘वर्क फ्रॉम होम’ और कंप्यूटर आदि की स्क्रीन के सामने लगातार बैठने से रीढ़ की हड्डी से जुड़ी कई तरह की समस्याएं लोगों को परेशान करने लगी हैं। एएस की प्रॉब्लम पुरुषों में ज्यादा देखने को मिलती है।
जीवोत्पाद – एएस को नियंत्रित करने के लिए एक मुख्य उपचार
हाल के समय में बायोलॉजिक्स (जीवोत्पाद) एक उन्नत उपचार विधि है। एएस के मरीजों का इम्यून सिस्टम संधियों में अतिरिक्त सूजन पैदा करता है। इससे संधियां डैमेज हो जाती हैं और उनमें दर्द के साथ कड़ापन आ जाता है या वे आपस में जुड़ जाती हैं। बायोलॉजिक्स न केवल सूजन वाले दर्द को कम करने में मदद करते हैं, बल्कि एएस से सम्बंधित आंखों की सूजन, हृदयधमनी रोगों और डिप्रेशन जैसी समस्याओं की संभावनाओं को भी कम करता है। भारत में युवा आबादी में से 0.5 प्रतिशत लोग एएस से पीड़ित हैं। लक्षणों को नजरअंदाज करते हुए सही समय पर इलाज न कराने से यह गंभीर हो सकता है।
श्री गंगा राम हॉस्पिटल दिल्ली के कंसल्टिंग रूमैटोलॉजिस्ट डॉ. वेद चतुर्वेदी के अनुसार, “एंकीलॉजिंग स्पॉन्डीलाइटिस (एएस) सबसे कमजोर वर्ग को प्रभावित करता है, जैसे कामकाजी युवा आबादी। महिलाओं की तुलना में पुरूष इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं, जिसका मौजूदा अनुपात 3:1 है। अगर एएस का सही इलाज समय पर न हो, तो यह पूरी रीढ़ को प्रभावित कर सकता है, जो बहुत खतरनाक है। अक्सर इसके निदान में देरी रूमैटोलॉजिस्ट के पास मरीज को विलंब से भेजे जाने के कारण होती है। अभी एएस का सबसे अच्छा इलाज हैं बायोलॉजिक्स और लाइफस्टाइल में बदलाव। डॉक्टर होने के नाते हम एएस पर ज्यादा जागरूकता पैदा करने और सही प्रकार का उपचार देने की उम्मीद करते हैं, ताकि मरीजों को इस बीमारी पर बेहतर नियंत्रण में मदद मिल सके।”
डॉक्टर को दिखाने का सही समय
एएस के मरीजों के सामने जागरूकता और रोग के निदान की कमी प्रमुख समस्याएं हैं। अधिकांश मरीजों का निदान (डायग्नोस) अवस्था में आने के काफी बाद में होता है। कुछ मरीजों का निदान तो अवस्था आरम्भ होने के 7-7 वर्ष बाद होता है। संधियों के आपस में जुड़ने से बचने, दर्द कम करने, रोग को नियंत्रित करने के लिए जल्द से जल्द इलाज जरूरी है।
Pic credit- unsplash
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