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    एक्सपर्ट से जानें क्या है डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर, इसकी वजहें, लक्षण, बचाव एवं उपचार

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Thu, 24 Feb 2022 07:33 AM (IST)

    अकसर हम अपने करीबी लोगों से सलाह लेते हैं लेकिन हर छोटे-बड़े डिसीज़न के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति डीपीडी (डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर) ...और पढ़ें

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    दोस्त आपस से किसी बात पर डिस्कस करते हुए

    अगर कोई व्यक्ति अपना हर निर्णय लेते हुए बहुत ज्य़ादा डरता है और दूसरों से पूछे बिना अपनी मर्जी से कोई भी कदम उठा नहीं पाता तो यह स्थिति चिंताजनक हो सकती है। ऐसी आदतें भविष्य में डीपीडी यानी डिपेंडेड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर की वजह बन सकती हैं। सीनियर कंसल्टेंट क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. दीपाली बत्रा बता रही हैं इस समस्या के बारे में विस्तार से।

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    प्रमुख लक्षण

    - आमतौर पर ऐसे लोग दब्बूपन की हद तक अतिशय विनम्र और आज्ञाकारी होते हैं।

    - छोटी-छोटी बातों से इनकी भावनाएं आहत हो जाती हैं।

    - संबंध खराब होने के डर से दूसरों की हर बात मान लेते हैं।

    - निर्णय लेने में डरते हैं और कोई भी बात दूसरों से बार-बार पूछते हैं।

    - अति संकोची होते हैं। इस वजह से करीबी लोगों के सामने भी अपनी असहमति ज़ाहिर नहीं कर पाते।

    - ऐसे लोग अति संवेदनशील होते हैं और अपनी आलोचना सुनकर जल्दी उदास हो जाते हैं।

    - आत्मविश्वास की कमी डीपीडी का प्रमुख लक्षण है। पर यह ज़रूरी नहीं है कि कमज़ोर मनोबल वाले हर व्यक्ति को ऐसी समस्या हो।

    प्रमुख वजह

    - एंग्ज़ायटी डिसॉर्डर से ग्रस्त लोग अत्यधिक चिंता की वजह से दूसरों पर निर्भर रहने लगते हैं, यही आदत बाद में डीपीडी के लक्षणों में परिवर्तित हो सकती है।

    - जिन बच्चों की परवरिश अति संरक्षण भरे माहौल में होती है, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है।

    - आमतौर पर 20-30 आयु वर्ग के लोगोंं में इसकी आशंका सबसे अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में प्रेम, करियर और विवाह आदि से जुड़ी कई उलझनें व्यक्ति के सामने आती हैं।

    क्या है उपचार

    अगर कोई लक्षण नज़र आए तो चिंतित होने के बजाय व्यक्ति को सबसे पहले क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए। वहां विशेषज्ञ पर्सनैलिटी, प्रॉब्लम सॉल्विंग और स्ट्रेस हैंडलिंग टेस्ट लेने के बाद यह तय करते हैं कि वाकई उस व्यक्ति को ऐसी कोई समस्या है या नहीं? दिलचस्प बात यह कि इस समस्या का ट्रीटमेंट, हमेशा शॅार्ट टर्म होता है क्योंकि अगर लंबे समय तक उपचार चलेगा तो व्यक्ति काउंसलर पर भावनात्मक रूप से निर्भर हो जाएगा। इस समस्या को दूर करने के लिए कॉग्नेटिव और असर्टिवनेस बिहेवियर थेरेपी दी जाती है, ताकि ऐसे लोग दूसरों के सामने बेझिझक अपनी बात रख सकें। अगर स्थिति ज्य़ादा गंभीर न हो तो आमतौर पर इस समस्या से ग्रस्त लोगों को दवाओं की ज़रूरत नहीं पड़ती। काउंसलिंग और बिहेवियर थेरेपी की मदद से लगभग तीन महीने के भीतर ही व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव नज़र आने लगता है।

    Pic credit- freepik