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    अब उम्र के साथ नहीं होगी भूलने की बीमारी, किडनी प्रोटीन से हो सकेगा डिमेंशिया का इलाज

    क्लोथो नामक इस प्रोटीन की एक ही खुराक का प्रभावी असर दिखा है। रिसर्च के दौरान 4 बुजुर्ग बंदरों की याददाश्त और संज्ञानात्मक क्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। अमेरिकी वैज्ञानियों ने पाया है कि किडनी के एक प्रोटीन के आधारित दवा मस्तिष्क के कामकाज (फंक्शन) को बढ़ा सकती है और यह भविष्य में इंसानों को होने वाले डिमेंशिया रोग के इलाज में कारगर साबित हो सकता है।

    By Jagran NewsEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Mon, 10 Jul 2023 03:01 PM (IST)
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    किडनी प्रोटीन से हो सकता है डिमेंशिया का इलाज

    न्यूयार्क, एजेंसी। बुजुर्गों में याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता का कमजोर पड़ना सामान्य-सी बात मान ली जाती है। कई बार तो इसे उम्र के साथ होने वाला विकार मानकर उसका इलाज भी नहीं कराया जाता है। लेकिन वैज्ञानिक शोधों ने डिमेंशिया नामक इस बीमारी के पनपने की प्रक्रिया के बारे बताया है और उसके इलाज की खोज अनवरत जारी है। अब अमेरिकी वैज्ञानियों ने पाया है कि किडनी के एक प्रोटीन के आधारित दवा मस्तिष्क के कामकाज (फंक्शन) को बढ़ा सकती है और यह भविष्य में इंसानों को होने वाले डिमेंशिया रोग के इलाज में कारगर साबित हो सकता है।

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    डिमेंशिया के इलाज में सफल प्रयास

    येल और कैलिफोर्निया-सैन फ्रांसिस्को यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम ने चूहों पर सफल अध्ययन के बाद इस विशिष्ट प्रोटीन का प्रयोग इंसानों से जैविक रूप से अति निकटता रखने वाले रीसस बंदरों पर भी किया। उन्होंने पाया कि क्लोथो नामक इस प्रोटीन की एकल खुराक ने उम्रदराज बंदरों की संज्ञानात्मक (सोचने-समझने) तथा याददाश्त क्षमता को बढ़ा दिया तथा उसका प्रभाव कम से कम दो सप्ताह तक रहा। यह निष्कर्ष इंसानों में डिमेंशिया के इलाज के लिए सकारात्मक संकेत देता है। वैज्ञानियों के अनुसार, किडनी द्वारा उत्पादित क्लोथो ब्लड के साथ सर्कुलेट होता है और इसका संबंध स्वास्थ्य तथा जीवनकाल से है। यह उम्र के साथ प्राकृतिक तौर पर कम होने लगता है।

    चूहों और बंदरों पर हुआ प्रयोग

    शोधकर्ताओं ने क्लोथो का प्रयोग चूहों और रीसस बंदरों पर किया और पाया कि यह सिनैप्टिक प्लास्टिसिटी और संज्ञानात्मकता को बढ़ा देता है। उन्होंने बताया कि यह देखा गया कि क्लोथो की कम डोज ने ही चूहों और बंदरों जैसे जीवों में याददाश्त को बढ़ा दिया। यह शोध अध्ययन नेचर एजिंग नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि क्लोथो की व्यवस्थित हल्की या कम डोज बुजुर्ग इंसानों के मामले में भी इलाज में फायदेमंद साबित हो सकता है। दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही बुजुर्गों की आबादी में होने वाले संज्ञानात्मक ह्रास के मामलों से निपटने में आसानी हो सकती है। अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिन चूहों में क्लोथो प्रोटीन का स्तर ज्यादा था, उनका कामकाजी प्रदर्शन सामान्य चूहों की तुलना में बेहतर था।

    जल्द होगा इंसानों पर भी प्रयोग

    इसके बाद 18 रीसस मकाक बंदरों (जिनकी उम्र इंसानों की 65 वर्ष के समतुल्य थी) को क्लोथो की डोज दी गई और उनके याददाश्त का आकलन भोजन तलाशने के टास्क के आधार पर किया गया। दो सप्ताह बाद भी पाया गया कि इंजेक्शन दिए जाने से पहले की तुलना में उनकी च्वाइस ज्यादा सही थी। क्लोथो के कारण उनके कामकाजी प्रदर्शन में करीब छह प्रतिशत का सुधार रहा और ज्यादा डोज की स्थिति में यह सुधार करीब 20 प्रतिशत तक पहुंचा। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-सैन फ्रांसिस्को के न्यूरोलाजी के प्रोफेसर तथा शोधकर्ता डेना डुबल का कहना है कि आगे कम डोज वाला क्लीनिकल टेस्ट इंसानों पर किया जाएगा।

    Picture Courtesy: Freepik