कहीं आपका स्मार्टफोन ही तो नहीं बना रहा आपको भुलक्कड़? डिजिटल डिमेंशिया से रहें सावधान
डिजिटल डिमेंशिया एक क्लिक पर मनचाही सूचनाएं उपलब्ध हो रही हैं, पर फोन व गैजेट पर अत्यधिक निर्भरता ने स्मरण क्षमता के साथ समग्र सेहत को प्रभावित किया ह ...और पढ़ें

क्या होता है डिजिटल डिमेंशिया? (Picture Courtesy: Freepik)
सीमा झा, नई दिल्ली। अब आप फोन नंबर याद नहीं रखते, क्योंकि यह फोन पहले से ही मौजूद है। हाथ से लिखने मैं कठिनाई महसूस होती है, क्योंकि गूगल वायस नोट से यह आसान हो गया है। एक समय लोग पहाड़े आसानी से याद रखते थे, पर अब कैलकुलेटर है तो बच्चे भी पहाड़ों को याद रखने से कन्नी काट रहे हैं।
जरा सोचें कि आज से 10 वर्ष पूर्व आपने जो फिल्में देखीं वे आपको आज भी याद हैं, पर कुछ ही देर पहले कौन सी रील देखी, इसे आप याद नहीं रख पाते। कंप्यूटर में सेव की गई किसी जरूरी फाइल का नाम हो या कोई महत्वपूर्ण अप्वाइंटमेंट, यदि रिमाइंडर न लगाया जाए तो उसके मिस होने की आशंका अक्सर बनी रहती है।
कुल मिलाकर, किसी चीज पर एकाग्र रह पाने में कठिनाई महसूस हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह डिजिटल यानी तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता का दुष्परिणाम हो सकता है, इसे सामान्य भाषा में डिजिटल डिमेंशिया कहा जाता है।
खो रही स्वाभाविक क्षमता
तकनीक पर निर्भरता के कारण मस्तिष्क अपनी स्वाभाविक क्षमता खो रहा है। डा. विनय गोयल के अनुसार, छोटे-बड़े सभी कार्य के लिए इस पर निर्भर होने का प्रभाव है कि मस्तिष्क को अब पर्याप्त काम नहीं मिल रहा। इससे उसकी सेहत खराब हो रही है। वह नई जानकारी को संसाधित कर उसे याद रखने में कठिनाई महसूस करता है।
लोग एक ही समय में कई काम निपटा तो लेते हैं, पर इससे संतुष्टि महसूस नहीं होती । थकान हरदम हावी रहती है। वास्तव में लंबा स्क्रीन टाइम दिमाग पर भारी दबाव पैदा करता है। इससे संज्ञानात्मक क्षमता या सोचने-समझने, तर्क करने व निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
दिमाग को एकाग्रता पसंद
हमारा दिमाग एक जगह टिककर कोई काम संपन्न करे तो उसे यह कोई पुरस्कार पाने या उपलब्धि सी लगती है। डॉ. नंद कुमार के अनुसार, यही सेंस आफ अचीवमेंट कुछ याद रखने के लिए आवश्यक है पर इसमें तकनीक ने बड़ी बाधा पहुंचाई है। इसकी जद में आकर दिमाग पर भारी दबाव रहता है। वह किसी एक चीज पर नहीं टिकता। डॉ. नंद कुमार के अनुसार, कुछ याद रखने के लिए जरूरी है कि दिमाग पहले कोई चीज दर्ज करे, उसके बाद आप उसे रिकाल यानी दोबारा स्मरण करें। रिकाल कर पाने के कारण ही आज भूलने की आदत सामान्य होती जा रही है।
बचाव के आवश्यक उपाय
- डिजिटल जीवन को व्यवस्थित करें। जैसे, अनुपयोगी एप्स को डिलीट करना, बिना पढ़े संदेशों को फारवर्ड करना, नोटिफिकेशन बंद करना ।
- दिन भर में कुछ समय फोन से दूरी बनाने की आदत डालें।
- स्क्रॉल से बचने के लिए किताबें पढ़ना, कुछ नया सीखना या वाद्ययंत्र बजाना, पाडकास्ट सुनना शुरू करें।
ये भी हैं नुकसान
- मानसिक अस्थिरता।
- हरदम असंतुष्टि का एहसास।
- उदास और दुखी रहना।
- संवेदनाएं कम महसूस होना।
दिमाग को ऐसे रखें सक्रिय
- नक्शे पढ़ने, समझने का अभ्यास करें
- मैप पर निर्भर न रहें, दिशा ज्ञान बढाएं
- पहेलियां, शतरंज खेलें
- ब्रेन टीजर, पजल आदि में रुचि लें।
ये हो सकते हैं मुख्य लक्षण
- फोन, पीसी, जीपीएस आदि उपकरणों की अनुपस्थिति से बेचैनी महसूस होना ।
- आसान व सरल लगने वाले कार्यों को भी पूरा करने में कठिनाई |
- समस्याओं को सामने देखकर हल करने में अक्षमता।
- निर्णय लेने में दिक्कत होना ।
- याद रखने में परेशानी के कारण दोस्तों एवं परिवार से स्वयं को अलग रखने की प्रवृत्ति ।
- संवाद संप्रेषण में परेशानी, लिखित रूप में हो या बोलकर
- स्थानों, लोगों और घटनाओं के बारे में भ्रम हो जाना।
- तस्वीरों या छवियों को समझने में कठिनाई होना ।
चिकित्सक से कब करें संपर्क
- जब एकाग्रता में परेशानी हो।
- इच्छाशक्ति कमजोर पड़ रही हो।
- सामान्य जीवन व कामकाज अस्त- व्यस्त हो जाए।
- तनाव, चिंताएं बढने लगें।
- बिना फोन हाथ में लिए कोई काम करना कठिन लगे।
10 में से 8 व्यक्ति फोन को साथ रखकर सोते हैं। हालांकि भारतीयों को लेकर यह अध्ययन नहीं है, पर कमोबेश यहां यानी भारत में भी यही अभ्यास देखा जा सकता है। अमेरिकी डाटा एनालिटिक्स फर्म यूगोव के अनुसार
जितनी बार फोन चेक करते हैं, शब्दों को भूलने की गति तेज हो जाती है। टास्क को अधूरा छोड़ देने की प्रवृत्ति बढ़ती है और मन भटकाव का शिकार हो जाता है। सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी के अनुसार

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