Move to Jagran APP

एक्सपर्ट्स से जानें बांझपन और IVF से जुड़े इन मिथकों का सच!

बांझपन की समस्या को अक्सर महिलाओं की समस्या के रूप में देखा जाता है। भारतीय समाज में पुरुष बांझपन की जांच करवाने में थोड़ा झिझकते हैं। यही वजह है कि बांझपन को लेकर खुलकर बात नहीं की जाती जिससे अफवाहों और ग़लत धारणाओं को फैलने का मौका मिल जाता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Fri, 17 Dec 2021 04:00 PM (IST)Updated: Sat, 18 Dec 2021 09:32 AM (IST)
एक्सपर्ट्स से जानें बांझपन और IVF से जुड़े इन मिथकों का सच!
एक्सपर्ट्स से जानें बांझपन और IVF से जुड़े इन मिथकों का सच!

नई दिल्ली, रूही परवेज़। शिशु का जन्म किसी भी पैरेंट के लिए एक वरदान की तरह होता है। किसी भी परिवार में बच्चे के जन्म की खुशी जश्न के साथ मनाई जाती है और इसे एक शुभ संकेत माना जाता है। इसलिए, जब किसी को गर्भधारण में मुश्किल आती है या फिर बांझपन की शिकायत होती है, तो भारतीय समाज में इसे एक बड़ी समस्या माना जाता है, लोग शर्म महसूस करते हैं। हालांकि, लोगों को इस बारे में जागरुक होना ज़रूरी है कि बांझपन एक आम समस्या है, जिससे कोई भी पीड़ित हो सकता है। इसकी वजह शारीरिक, सामाजिक, या मनोवैज्ञानिक हो सकती है।

loksabha election banner

बांझपन की समस्या को, अक्सर महिलाओं की समस्या के रूप में देखा जाता है। भारतीय समाज में पुरुष बांझपन की जांच करवाने में थोड़ा झिझकते हैं। यही वजह है कि बांझपन को लेकर खुलकर बात नहीं की जाती, जिससे अफवाहों और ग़लत धारणाओं को फैलने का मौका मिल जाता है।

सिर्फ महिलाएं ही नहीं होतीं बांझपन की शिकार

डॉ. प्रोफेसर (कर्नल) पंकज तलवार, वीएसएम,हेड, मेडिकल सर्विसेस बिरला फर्टिलिटी एवं आईवीएफ का कहना है, "ऐसा माना जाता है कि बांझपन सिर्फ महिलाओं में होता है, लेकिन यह सच नहीं है। बांझपन की शिकायत किसी को भी हो सकती है। बांझपन महिला और पुरुष में भेद नहीं करता। यह सभी लोगों की आम समस्या है, और सिर्फ केवल महिलाओं से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। एक और मिथक यह है कि जिन माता-पिता के बच्चे होते हैं, उन्हें बांझपन की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं, यह भी सच नहीं है। बांझपन पहले शिशु के जन्म के बाद भी उत्पन्न हो सकता है और दूसरे शिशु के प्रयास में बाधक बन सकता है। तीसरा मिथक यह है कि जीवनशैली से गर्भधारण की क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जबकि सच यह है कि जीवनशैली का गर्भधारण की क्षमता पर काफी गहरा असर पड़ता है। शराब का सेवन, धूम्रपान और ज़्यादा वजन होने के कारण बांझपन की संभावना बढ़ जाती है।"

बांझपन का इलाज सिर्फ IVF नहीं

डॉ. तलवार ने बताया, "लोगों के बीच बांझपन से जुड़ी एक ग़लत धारणा यह भी है कि इसका इलाज सिर्फ आईवीएफ है। बांझपन के इलाज के लिए कई उपाय हैं, जो थोड़े से समायोजन और दवाई की मदद से गर्भधारण करने में मदद कर सकते हैं। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी द्वारा सुझाई गई औषधियां व सप्लीमेंट्स हमेशा कारगर या सही नहीं होतीं। सबसे अच्छा उपाय यह है कि आप एक फर्टिलिटी एक्सपर्ट से संपर्क करें और उसके द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें। एक्सपटर्स का मानना है कि सेहतमंद जीवनशैली भविष्य में बांझपन होने की संभावनाओं को ख़त्म कर सकती है।"

आईवीएफ से क्यों हिचकिचाते हैं कप्ल्स

डॉ. काबेरी बनर्जी, एमडी, एडवांस फर्टिलिटी एंड गायनेकोलॉजी सेंटर का कहना है, "आईवीएफ प्रक्रिया के लिए, जोड़े को महिला की माहवारी शुरू होने से कुछ दिन पहले ही क्लिनिक आना होता है। लगभग 2-3 हफ्ते तक रहना होता है। पहले या दूसरे दिन से प्रक्रिया शुरू होती है और फिर हम अंडे के निर्माण के लिए रोज़ इंजेक्शन देते हैं। 10-12 दिनों तक इंजेक्शन दिए जा सकते हैं और इस बीच महिला को क्लिनिक आना होता है और हम अल्ट्रासाउंड से जांच करते हैं कि अंडे कैसे बन रहे हैं। दसवें या बारहवें दिन, उसे हल्का एनेस्थीसिया दिया जाता है और किसी कट या ऑपरेशन के बिना, सुई की मदद से अंदर से अंडे निकाले जाते हैं।

लेकिन जोड़ों में इन्हें लेकर कुछ मिथक हैं, जैसे कि उन्हें लगता है कि यह बहुत महंगी प्रक्रिया है, दर्दनाक है और इसमें बहुत समय लगता है, इसलिए वे शुरू में आने से हिचकिचाते हैं। कभी-कभी उन्हें यह भी लगता है कि यह उनका अपना बच्चा नहीं होगा। प्रक्रिया शुरू करने से पहले हमें उन्हें सही तरीके से समझाना होता है।"


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.