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    कभी सोचा है अपनी ही हाथों से क्यों नहीं होती गुदगुदी, तो ये है इसकी वजह

    By Priyanka SinghEdited By: Priyanka Singh
    Updated: Wed, 31 May 2023 03:21 PM (IST)

    Tickling Facts क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि दूसरे जब गुदगुदी करते हैं तो हम ठहाके मारकर हंसते हैं लेकिन वही जब हम खुद से गुदगुदी करते हैं तो बिल्कुल भी हंसी नहीं आती। क्यों होता है ऐसा जानेंगे इसके पीछे का लॉजिक।

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    Tickling Facts: तो इस वजह से खुद के हाथों से नहीं लगती गुदगुदी

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। शरीर के कुछ हिस्से ऐसे होते हैं जहां किसी के छूते ही गुदगुदी लगने लगती है और हम जोर-जोर से हंसते हैं, लेकिन जब उन जगहों पर हम खुद से गुदगुदी लगाते हैं, तो बिल्कुल भी हंसी नहीं आती। तो क्या आपने कभी सोचा है, ऐसा क्यों होता है और क्या है इसके पीछे का लॉजिक। 

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    गुदगुदी होने की वजह क्या है? 

    गुदगुदी का एहसास करने के लिए हमारे दिमाग के दो हिस्से जिम्मेदार होते हैं, पहला है सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स (Somatosensory cortex)। ये हिस्सा स्पर्श यानी टच को समझता है। दूसरा है एंटीरियर सिंगुलेट कॉर्टेक्स (Anterior cingulate cortex)। ये खुशी या किसी दिलचस्प एहसास को समझने का काम करता है। तो जब हम खुद को गुदगुदी करते हैं, तो दिमाग के सेरिबेलम हिस्से को पहले से ही इसका अंदाजा होता है, जो कॉर्टेक्स को इस बारे में सूचित कर देता है। ऐसे में गुदगुदी के लिए तैयार कॉर्टेक्स पहले से अवेयर हो जाते हैं जिस वजह से हमें गुदगुदी नहीं होती है। दरअसल, गुदगुदी की पूरी प्रक्रिया सरप्राइज पर डिपेंड करती है। जब भी कोई हमें अचानक से गुदगुदी करता है, तो हमारा दिमाग उसके लिए तैयार नहीं होता है और इस वजह से हमें बहुत ज्यादा हंसी आती है।

    क्या है गुदगुदी के पीछे का साइंस?

    साइंटिस्ट के अनुसार गुदगुदी दो तरह से होती हैं। पहली है निसमेसिस, इसमें शरीर को हल्के से स्पर्श किया जाए, तो त्वचा की बाहरी परत जिसे एपिडर्मिस कहते हैं, नसों के जरिए दिमाग तक संदेश पहुंचाता है। इससे हल्की खुजलाहट या सनसनी का एहसास होता है। दूसरी है गार्गालेसिस, इसके कारण पेट, आर्मपिट या गले पर छूने से व्यक्ति को बहुत ज्यादा हंसी आती है। 

    कभी सजा के तौर पर की जाती थी गुदगुदी

    अब जहां गुदगुदी किसी को हंसाने के काम आती है, वहीं पहले इसे लोगों को प्रताड़ित करने का काम किया जाता था। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में इससे जुड़ा एक लेख भी था। चाइनीज टिकल टॉर्चर इसी का एक रूप है। बड़े पदों पर बैठे लोगों की छिटपुट गलतियों के लिए उन्हें टिकल टॉर्चर दिया जाता था। यानी गुदगुदी करके खूब हंसाया जाता था, जब तक कि गलती करने वाले की सांस न फूल जाए। 

    गुदगुदी करना कभी-कभार खतरे का भी इशारा होता है। हमारे शरीर के जिन हिस्सों में ज्यादा न्यूरॉन होते हैं, जैसे- पेट, जांघ और पेट के बीच का हिस्सा, वो बहुत ज्यादा सेंसिटिव होते हैं। इस जगहों को छूने मात्र से ही हंसी आने लगती है। गुदगुदी किए जाने पर हमारा दिमाग एक साथ खुशी और हल्का दर्द महसूस करता है। इससे दिमाग तनाव में आ जाता है। यह तनाव अनियंत्रित हंसी के रूप में बाहर आता है।

    (डॉ. रवींद्र श्रीवास्तव, निदेशक- न्यूरोसाइंस, प्राइमस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)

    Pic credit- freepik 

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