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    क्या सिर्फ स्क्रीन देखने से ही उड़ जाती है रातों की नींद या इसके पीछे और भी है कोई वजह?

    क्या आप भी मानते हैं कि रात को स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट आपकी नींद को प्रभावित (Poor Sleep) करती है? अगर हां तो आप अकेले नहीं है। ऐसा कई लोगों का मानना है जो काफी हद तक ठीक भी है। लेकिन आप कितनी देर तक स्क्रीन देखते हैं नींद को प्रभावित करने वाला यह एकलौता फैक्टर नहीं है। आइए जानें और इसके और भी कारण।

    By Swati Sharma Edited By: Swati Sharma Updated: Thu, 21 Aug 2025 02:37 PM (IST)
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    क्या देर रात को फोन चलाने की आदत से नींद पर पड़ता है अस? (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। अक्सर कहा जाता है कि सोने से पहले मोबाइल फोन या लैपटॉप का इस्तेमाल नींद भगा देती है (Poor Sleep)। इसकी वजह डिवाइस से निकलने वाली ब्लू लाइट को माना जाता है, जो मेलाटोनिन हार्मोन के सीक्रेशन को कम कर देती है।

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    लेकिन क्या सच में सिर्फ ब्लू लाइट ही एकमात्र खलनायक है? लेकिन ऐसा नहीं है। स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट (Blue Light and Sleep Disturbance) के अलावा और भी ऐसे कई फैक्टर है, जो हमारी नींद को प्रभावित करते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।

    क्या ब्लू लाइट डालती है नींद पर असर?

    • 2013 की एक स्टडी में पाया गया कि पूरी ब्राइटनेस पर दो घंटे तक आईपैड इस्तेमाल करने वालों की नींद पर हल्का असर पड़ा, जबकि एक घंटे के इस्तेमाल से कोई खास फर्क नहीं देखा गया।
    • 2014 के एक रिसर्च में पता चला कि लगभग 9 फीट की दूरी से टीवी देखने पर मेलाटोनिन के स्तर पर कोई खास असर नहीं हुआ।
    • 2018 की एक स्टडी ने इस बात पर जोर दिया कि स्क्रीन की ब्राइटनेस सबसे अहम फैक्टर है। ज्यादा ब्राइटनेस असर बढ़ाती है, जबकि कम ब्राइटनेस और नाइट मोड जैसी सेटिंग्स इसके असर को घटा सकती हैं।

    एक और जरूरी बात यह है कि दिन में मिलने वाली प्राकृतिक धूप भी रात के असर को कम करती है। दिन में जितनी ज्यादा धूप मिलेगी, शाम को स्क्रीन की रोशनी का उतना ही कम असर होगा। सबसे बढ़कर, हर इंसान की ब्लू लाइट को लेकर सेंसिटिविटी अलग होती है। किसी को मामूली रोशनी भी जगाए रख सकती है, तो किसी पर जोरदार एक्शन फिल्म देखने का भी कोई असर नहीं होता। तो यह व्यक्ति के ऊपर भी निर्भर करता है।

    तो फिर नींद बिगड़ती क्यों है?

    रिसर्च अब मानने लगी है कि नींद खराब करने में स्क्रीन की रोशनी से ज्यादा अहम भूमिका उस पर की जाने वाली एक्टिविटी की है। सोशल मीडिया स्क्रॉल करना, एक्शन पैक्ड गेम खेलना, ऑनलाइन शॉपिंग करना या लगातार खबरें पढ़ना- ये सभी चीजें हमारे दिमाग के 'रिवार्ड सिस्टम' को एक्टिव कर देती हैं। इससे डोपामाइन जैसे केमिकल निकलते हैं, जो दिमाग को अलर्ट, एक्साइट और बिजी रखते हैं। ऐसी स्थिति में शांति से सो पाना मुश्किल हो जाता है।

    2024 के एक रिसर्च में पाया गया कि जो वयस्क सोने से ठीक पहले गेम खेलते या मैसेजिंग ऐप्स पर चैट करते थे, उन्होंने न केवल देर से सोना शुरू किया बल्कि उनकी नींद की कुल अवधि भी कम हुई। हैरानी की बात यह रही कि जो लोग सिर्फ टीवी या कोई फिल्म देख रहे थे, उनकी नींद पर इसका खास असर नहीं पड़ा।

    क्या स्क्रीन कभी नींद में मददगार हो सकती है?

    यह आम धारणा से अलग लग सकता है, लेकिन हां। अगर किसी का दिमाग चिंता या नेगेटिव विचारों से भरा हो, तो स्क्रीन एक 'डिस्ट्रैक्शन टूल' का काम कर सकती है। हल्की-फुल्की कॉमेडी शो देखना या कोई पुरानी, जानी-पहचानी और आरामदायक फिल्म देखना, दिमाग को उलझन भरी सोच से छुटकारा दिलाकर नींद लाने में मदद कर सकता है

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