क्या खाया, कब खाया? सब दिमाग में स्टोर है! वैज्ञानिकों ने खोजे खाने की यादों से जुड़े खास न्यूरॉन्स
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप किसी पुरानी पार्टी या ट्रिप की बात कर रहे हों और अचानक आपको याद आ जाए कि आपने वहां क्या स्वादिष्ट खाना खाया था? या फिर आपको अचानक याद आ जाए कि कल दोपहर के खाने में क्या बना था? बता दें, यह महज इत्तेफाक नहीं है! वैज्ञानिकों ने अब खाने से जुड़ी हमारी यादों के पीछे के रहस्य को सुलझाना शुरू कर दिया है।
खाने की हर याद को कैद करते हैं ब्रेन के कुछ न्यूरॉन्स (Image Source: Freepik)
आईएएनएस, नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोगों को खाना देखकर बार-बार भूख क्यों लगती है या क्यों कई लोग स्ट्रेस में ज्यादा खाने लगते हैं? अगर नहीं, तो बता दें कि अब इस रहस्य से पर्दा उठता दिख रहा है।
दरअसल, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में एक विशेष कोशिका समूह की खोज की है, जो खाने से जुड़ी यादों को स्टोर करता है और यह केवल स्वाद या भोजन के प्रकार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भी याद रखता है कि आपने कब और कहां खाया था।
मस्तिष्क का “भोजन एंग्राम”
दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के वेंट्रल हिप्पोकैम्पस नामक क्षेत्र में ऐसे न्यूरॉन्स की पहचान की है, जो भोजन से जुड़ी विशेष यादें स्टोर करते हैं। ये यादें इतनी जटिल होती हैं कि इसमें उस स्थान, समय और भावना की जानकारी भी शामिल होती है, जहां और जब आपने भोजन किया था। वैज्ञानिकों ने इन कोशिकाओं को "भोजन एंग्राम्स" नाम दिया है।
ये एंग्राम्स एक तरह का जैविक डेटाबेस हैं, जो भोजन के अनुभव से जुड़ी कई परतों वाली जानकारी को एक साथ दर्ज करते हैं- जैसे कि आपने क्या खाया, कब खाया और कहां खाया।
क्यों जरूरी हैं ये कोशिकाएं?
इस शोध से एक नई बात सामने आई है कि अगर मस्तिष्क की ये विशेष कोशिकाएं किसी कारण से निष्क्रिय हो जाएं या खराब हो जाएं, तो व्यक्ति को यह याद ही नहीं रहता कि उसने कब खाना खाया था। नतीजतन, वह बार-बार या जरूरत से ज्यादा खाने लगता है। यही कारण है कि स्मृति या याददाश्त से जुड़ी समस्याओं वाले लोग अक्सर भोजन पर नियंत्रण नहीं रख पाते।
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चूहों पर हुआ प्रयोग, मिले चौंकाने वाले परिणाम
शोधकर्ताओं ने इस खोज को चूहों पर प्रयोग कर प्रमाणित किया। जब चूहों के मस्तिष्क से भोजन से जुड़ी इन खास कोशिकाओं को निष्क्रिय किया गया, तो उन्होंने उन स्थानों को याद रखना बंद कर दिया जहां उन्होंने पहले भोजन किया था, लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उनकी सामान्य याददाश्त– जैसे रास्ता पहचानना या अन्य कार्यों को याद रखना– पूरी तरह सामान्य रही।
इससे स्पष्ट हुआ कि भोजन की यादें मस्तिष्क के भीतर एक अलग और विशिष्ट तंत्र से जुड़ी होती हैं।
लेटरल हाइपोथैलेमस: मस्तिष्क का भूख नियंत्रक
शोध में यह भी पाया गया कि ये “भोजन एंग्राम्स” मस्तिष्क के एक अन्य क्षेत्र लेटरल हाइपोथैलेमस (या पार्श्व हाइपोथैलेमस) से संपर्क में रहते हैं। यह क्षेत्र सीधे तौर पर भूख, नींद और एनर्जी लेवल को कंट्रोल करता है। इन दोनों क्षेत्रों के बीच का यह संवाद भोजन की इच्छा और मात्रा पर गहरा असर डालता है। जब वैज्ञानिकों ने इस संपर्क को बंद किया, तो चूहों ने ज्यादा खाना शुरू कर दिया क्योंकि वे यह याद नहीं रख पा रहे थे कि उन्होंने पहले ही खा लिया है।
क्या इससे मोटापे का इलाज संभव है?
यह खोज केवल मस्तिष्क विज्ञान की दिशा में एक बड़ी सफलता नहीं है, बल्कि यह मोटापे और वजन प्रबंधन के लिए भी एक नया रास्ता खोल सकती है। आज की जीवनशैली में जहां वजन बढ़ना एक आम समस्या है, वहां यह शोध सुझाव देता है कि केवल कैलोरी की मात्रा पर ध्यान देना काफी नहीं, बल्कि यह समझना भी जरूरी है कि मस्तिष्क भोजन को कैसे याद करता है।
यानी भविष्य में ऐसे इलाज या तकनीक विकसित हो सकते हैं जो मस्तिष्क की इन कोशिकाओं को सक्रिय या संतुलित कर सकें, जिससे लोग बेहतर ढंग से अपने भोजन व्यवहार को समझ और नियंत्रित कर सकें।
मस्तिष्क की यह नई खोज हमें यह समझने में मदद करती है कि भूख सिर्फ पेट की नहीं, दिमाग की भी कहानी है। हमारे दिमाग में मौजूद खास कोशिकाएं यह तय करती हैं कि हम कितनी बार और कैसे खाते हैं। इस अध्ययन ने विज्ञान की दुनिया में एक नया दरवाजा खोल दिया है- ऐसा दरवाजा जो शायद एक दिन मोटापा, खाने की लत और भावनात्मक भूख जैसी समस्याओं का हल बन सके।
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