मिठाइयों पर क्यों लगाते हैं सोने-चांदी का वर्क? सिर्फ सजावट नहीं, मुगलों से जुड़ा है इसका इतिहास
मिठाइयों पर लगा चांदी या सोने का वर्क सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा, इतिहास और विश्वास का प्रतीक है। यह खाने योग्य वर्क मुगल शाही रसोई से आया है और आयुर्वेदिक मान्यताओं, धार्मिक आस्था और सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ा है। आइए जानें कैसे हुई इसकी शुरुआत और आज भी कैसे चल रही है यह परंपरा।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। त्योहारों के मौसम में जब हम किसी भारतीय मिठाई की दुकान में कदम रखते हैं तो चमकते काउंटर में रखी काजू कतली, बर्फी और लड्डू अपनी सुनहरी और चांदी की चमक से हमें अपनी ओर खींच लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन पर जड़ा हुआ चांदी या सोने का वर्क सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा, इतिहास और विश्वास का प्रतीक है।
जी हां, मिठाइयों पर लगा सोने या चांदी का वर्क सिर्फ दिखावटी नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई कारण छिपे हैं। आइए जानते हैं कि आखिर मिठाइयों पर वर्क लगाने की परंपरा क्यों शुरू हुई और आज तक क्यों जारी है।
वर्क क्या है और कैसे बनता है?
वर्क यानी खाने योग्य सोने या चांदी की बेहद पतली परत, जिसे हवा में उड़ता हुआ भी देखा जा सकता है। पारंपरिक तौर पर वर्क बनाने की प्रक्रिया बेहद बारीक और समय लेने वाली होती थी। छोटे-छोटे धातु के टुकड़ों को पार्चमेंट पेपर के बीच रखकर हथौड़े से तब तक पीटा जाता था जब तक वे पारदर्शी और महीन परत में न बदल जाएं।
पहले समय में वर्क बनाने में जानवरों की आंतों से बने पार्चमेंट का इस्तेमाल होता था, जिससे धार्मिक और नैतिक चिंताएं उठीं। आज ज्यादातर वर्क बनाने वाले सिंथेटिक या प्लांट बेस्ड मटीरियल का इस्तेमाल करते हैं, जिससे यह प्रक्रिया पूरी तरह शाकाहारी बन चुकी है।
भारत में जयपुर, लखनऊ और वाराणसी जैसे शहर आज भी इस पारंपरिक कला को जिंदा रखे हुए हैं। यहां के कारीगर हाथ से वर्क बनाते हैं और इस शिल्प को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं।
(Picture Courtesy: Pixabay)
क्या वर्क खाना सुरक्षित है?
मॉडर्न साइंस के अनुसार खाने योग्य सोना और चांदी टॉक्सिन फ्री होते हैं और शरीर में अब्जॉर्ब नहीं होते। Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) के नियमों के अनुसार-
- वर्क की शुद्धता 99.9% होनी चाहिए।
- इसमें निकेल, सीसा या तांबे जैसे भारी धातु नहीं होने चाहिए।
- केवल प्रमाणित निर्माता ही खाने योग्य वर्क बना और बेच सकते हैं।
- इसलिए मिठाइयों पर लगाया गया वर्क पूरी तरह सुरक्षित होता है, बशर्ते यह ऑथेंटिक सोर्स से आया हो।
वर्क लगाने के पारंपरिक कारण
- शाही रसोई से आम घरों तक की विरासत- वर्क की कहानी शुरू होती है मुगलों के शाही दरबार से। वहां खाना केवल स्वाद नहीं, बल्कि रॉयलटी को भी दिखाता था। फारसी प्रभाव से भारत में सोने-चांदी की वर्क लगाने की परंपरा आई और मुगलों ने इसे और भव्य बना दिया। धीरे-धीरे यह परंपरा आम घरों में भी पहुंची और मिठाइयों पर वर्क लगाना त्योहारों और खास मौकों का हिस्सा बन गया।
- आयुर्वेदिक मान्यता और स्वास्थ्य लाभ- आयुर्वेद में चांदी को ठंडक और एंटी-बैक्टीरियल गुणों के लिए जाना जाता है। यह शरीर में गर्मी को कम करने में सहायक मानी जाती है। सोने को शक्ति और इम्युनिटी बढ़ाने वाला तत्व माना गया है। इसी कारण पुराने समय में मिठाइयों पर वर्क लगाना केवल सुंदरता नहीं, बल्कि स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ था।
- धार्मिक आस्था और शुद्धता का प्रतीक- चांदी और सोना भारतीय संस्कृति में शुद्धता और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। दीवाली, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर वर्क लगी मिठाइयों को देवताओं को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है। चांदी की चमक रोशनी और उदारता का प्रतीक है, जबकि सोना मां लक्ष्मी और समृद्धि से जुड़ा हुआ है।
- सामाजिक प्रतिष्ठा और उत्सव का प्रतीक- आधुनिक समय में भी वर्क लगी मिठाइयां प्रतिष्ठा और समृद्धि का संकेत मानी जाती हैं। मिठाई की दुकानों में वर्क लगी मिठाइयों की कीमत साधारण मिठाइयों से ज्यादा होती है। शादी-ब्याह और त्योहारों में इन्हें उपहार के रूप में देना एक खास जेस्चर माना जाता है, जो इस बात का प्रतीक है कि मौका खास है।
आज भी बरकरार है वर्क की चमक
समय के साथ मिठाइयों का रूप बदल गया है, पर वर्क की परंपरा आज भी कायम है। अब यह केवल बर्फी या काजू कतली तक सीमित नहीं है, बल्कि कई डेजर्ट्स, केक और कॉकटेल में भी इसका इस्तेमाल होने लगा है।
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