मेक्सिको का मसालेदार स्वाद: क्यों भारतीयों में तेजी से बढ़ रहा है इस कुजीन का क्रेज?
तीखा मसालेदार स्वाद भोजन में इस्तेमाल होने वाली ताजी सामग्री व रंगीन प्रस्तुति के चलते मेक्सिकन भोजन भारतीयों की जुबान का विकल्प बनता जा रहा है। भारत में मैक्सिकन फूड के कई दीवाने हैं जो इन्हें खूब पसंद करते हैं। टैकोज व टार्टिला से बनने वाले मेक्सिकन भोजन की ओर बढ़ते रुझान के बारे में बता रहे हैं होटल हयात रीजेंसी के हेड शेफ उमेश।

शेफ उमेश, नई दिल्ली। इंटरनेट मीडिया का प्रसार और यात्रा को लेकर बढ़ते रुझान के चलते भारतीयों में अंतरराष्ट्रीय व्यंजनों का विस्तार हुआ है। इससे नए और विविध स्वाद को आजमाने को लेकर रुचि बढ़ी है। मिर्च-मसालों से भरपूर मेक्सिकन व्यंजन भारतीय व्यंजन के साथ कुछ समानताएं साझा करते हैं, जिसके चलते भारतीयों को यह और अधिक स्वादिष्ट लगता है।
यही वजह है कि भारतीयों में मेक्सिकन भोजन की लोकप्रियता में वृद्धि हो रही है। आज टैको और बरिटो जैसे मेक्सिकन फास्टफूड सुविधाजनक और झटपट भोजन के विकल्पों की आवश्यकता पूरी कर रहे हैं। विशेष रूप से टैको और टार्टिला ने भारतीय स्वाद के अनुकूल होने की क्षमता के कारण तेजी से लोकप्रियता पाई है। कई भारतीय रेस्त्रां अब पनीर, तंदूरी चिकन और मसालेदार चटनी के साथ ‘देसी टैको’ पेश करते हैं, जो दोनों व्यंजनों को खूबसूरती से मिलाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय फास्टफूड शृंखलाओं और मेक्सिकन आधारित रेस्त्रां की सफलता के साथ अब नाचोज, एनचिलाडा, चिलाकिल्स, चिमिचांग, टाकिटो, टार्टिला पिज्जा (जिसका नाम बदलकर मेक्सिकन पिज्जा कर दिया गया) टार्टिला सूप और क्वेसाडिला जैसे मेक्सिकन व्यंजन भारतीय रेस्त्रां के मेन्यू में भी शामिल हो चुके हैं। दिल्ली में सांचो, मुंबई में टैको फ्रेस्को, होटल ओबेराय में कासा मेक्सिकाना और द ताज प्रेसीडेंट में एल मेक्सिकानो जैसे कई रेस्त्रां ने पारंपरिक मेक्सिकन स्वाद को आगे पहुंचाने में नाम कमाया है, जहां लोग बड़े चाव से टैको और एनचिलाडा से लेकर गुआकामोल आदि व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं।
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मैं अपने अनुभव से कहूं तो भले ही भारतीयों के लिए मेक्सिकन भोजन का स्वाद जाना-पहचाना है, मगर यहां हर विदेशी कुजीन की भांति मेक्सिकन व्यंजनों को पेश करते समय उसकी प्रामाणिकता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है। इसमें मुख्य रूप से सामग्री और स्थानीय प्राथमिकताओं में अंतर एक बड़ा कारण होता है। मेक्सिकन व्यंजन, जैसा कि हम आज जानते हैं, 16वीं शताब्दी में मेक्सिको पर स्पेनिश विजय के बाद महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ, जब चावल, गेहूं और कार्न जैसी मुख्य सामग्री इनमें इस्तेमाल की जाने लगी थी।
दूसरी ओर, भारतीय व्यंजन सदियों से हल्दी, धनिया और जीरा जैसे मसालों का उपयोग करते हुए अपनी विरासत से गहराई से जुड़े हैं। इसी तरह भारत में मेक्सिकन भोजन की प्रामाणिकता को बनाए रखने में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक मसालों के स्वाद में अंतर है। मेक्सिकन स्वाद के सार को बनाए रखते हुए भारतीय स्वाद को जोड़ने के प्रयास में कुछ स्तर पर बदलाव भी करना पड़ता है। पारंपरिक मेक्सिकन व्यंजनों को भारत में सटीक रूप से दोहराना हमेशा संभव नहीं हो पाता, लेकिन यथासंभव मूल सामग्री और तकनीक का उपयोग करने से भारत में मेक्सिकन भोजन की प्रामाणिकता और सांस्कृतिक सार को संरक्षित करने में मदद मिलती है।
आमतौर पर टार्टिला व अन्य मेक्सिकन व्यंजनों को तैयार करने में कार्न महत्वपूर्ण सामग्री के तौर पर उपयोग होता है। यही वजह है कि मेक्सिको के विभिन्न क्षेत्रों में कार्न की अपनी अनूठी किस्में और व्यंजन हैं। प्रामाणिक मेक्सिकन भोजन संस्कृति और इतिहास का एक उत्सव है, जिसमें ताजा सामग्री, क्षेत्रीय विविधता और खाना पकाने की पारंपरिक तकनीक को ध्यान में रखा जाता है। इसकी हर बाइट न केवल स्वाद का जबरदस्त अनुभव देती है, बल्कि मेक्सिको की समृद्ध विरासत की गहरी समझ भी प्रदान करती है।
रोटी बनाम टार्टिला
गेहूं के आटे से बनी रोटी की तरह नजर आने वाला टार्टिला कार्न से तैयार होता है, जो अधिकांश मेक्सिकन व्यंजनों का आधार होता है। रोटी और टार्टिला दोनों स्वाद बढ़ाने, मुख्य व्यंजनों के पूरक और भोजन के सामाजिक पहलुओं में संलग्न होने के लिए सहायक के रूप में भूमिका निभाते हैं। रोटी जहां मुलायम होती है तो वहीं टार्टिला का क्रंची अंदाज इसे बना देता है खास।
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