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    नवरात्र की थाली में छिपी हैं आस्था की कहानियां, प्रकृति और संस्कृति का है अनोखा मेल

    Updated: Sun, 21 Sep 2025 03:24 PM (IST)

    मौसम में परिवर्तन के साथ सेहत को ढालने का माध्यम हैं नवरात्र। जब रोजाना इस्तेमाल हो रहे अनाज और मसाले इन नौ दिनों के लिए हमारी थाली से हो जाते हैं दूर। हालिडे इन कटड़ा वैष्णो देवी के हेड शेफ विकेश राणा बता रहे हैं उन सात्विक पकवानों के बारे में जो सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि भाग हैं परंपरा और इतिहास के भी।

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    नवरात्र की थाली होती है बेहद खास (Picture Courtesy: Freepik)

    विकेश राणा, नई दिल्ली। नवरात्र के नौ दिनों में रसोई की दुनिया बिल्कुल बदल जाती है। जो अनाज और मसाले रोज थाली का हिस्सा होते हैं, वे गायब हो जाते हैं और उनकी जगह थालियों में आते हैं सात्विक पकवान। इन व्यंजनों की सुगंध में सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि परंपरा और इतिहास भी घुला होता है।

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    मां वैष्णो देवी के चरणों तक यात्रा फिलहाल प्रकृति के कोप से संशय में है, मगर माता अपने भक्तों की देखभाल के लिए सदा हमारे साथ रहती हैं। इन सब व्यंजनों की खूबसूरती यही है कि ये केवल भूख मिटाने का जरिया नहीं हैं। हर डिश अपने साथ एक कहानी, एक याद और एक सांस्कृतिक धरोहर लेकर आती है। व्रत की यह थाली बताती है कि भारतीय भोजन सिर्फ स्वाद का खेल नहीं, बल्कि आस्था और इतिहास की जड़ से जुड़ा हुआ है।

    आम भोजन भी बन जाए खास

    व्रत का सबसे पहला आहार देखें तो साबुदाना खिचड़ी अवश्य आती है। पुरानी कहानियों में लौट जाएं तो पाएंगे कि यह व्यंजन कभी महाराष्ट्र की रसोई में जन्मा था। उपवास में ताकत बनाए रखने के लिए साबुदाने के मोती आलू और मूंगफली के साथ पकाए जाते थे। धीरे-धीरे यह पकवान पूरे देश में फैल गया और आज उत्तर से दक्षिण तक व्रत की थाली का सबसे भरोसेमंद साथी बन चुका है। छोटे-छोटे पारदर्शी दानों में छिपी ऊर्जा मानो कहती है– आगे की राह लंबी है, पर चिंता मत करो, मैं साथ हूं। इन्हीं दिनों में अपने स्थान को और ऊंचा कर जाती है लौकी।

    लौकी, जिसे अक्सर साधारण और उबाऊ सब्जी समझा जाता है, व्रत में मुख्य नायक बन जाती है। इससे तैयार होने वाली लौकी कोफ्ता करी की कहानी थोड़ी दिलचस्प है। प्याज और लहसुन रहित हल्की ग्रेवी में जब कोफ्ते डूबते हैं तो स्वाद का ऐसा मेल बनता है कि कोई भी इसे सिर्फ व्रत का व्यंजन कहकर कम नहीं आंक सकता। यह हमें सिखाती है कि साधारण से साधारण सामग्री भी सही संयोजन में असाधारण बन सकती है।

    प्रकृति और संस्कृति का संगम

    शकरकंद का हलवा अपने आप में एक मीठी दास्तान है। कभी सर्दियों की ठंडी गलियों में अंगीठी पर भुनती शकरकंद ही गरीब का भोजन मानी जाती थीं। आज वही शकरकंद व्रत की थाली में घी और गुड़ की मिठास के साथ जब हलवे का रूप लेती है तो उसका स्थान बदल जाता है। यह सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि मौसम और संस्कृति का संगम है। एक-एक चम्मच में आपको गुड़ की देसी मिठास और बचपन की यादें दोनों मिलेंगी।

    अनुभव परंपरा का

    सिंघाड़े के पकौड़े बारिश की बूंदों और भक्ति की घंटियों के बीच कटरा की गलियों में जैसे जीवंत हो उठते हैं। गरमागरम पकौड़े और साथ में दही या चाय– यह दृश्य हर श्रद्धालु की थकान मिटाने वाला होता है। सिंघाड़े का पेड़ जलाशयों से जुड़ा है और लोककथाओं में इसे पवित्र माना जाता है। यही वजह है कि इसके दाने उपवास के दिनों में शक्ति और पवित्रता दोनों का प्रतीक माने जाते हैं। फिर आती है कुट्टू की पूरी, जो हर व्रत की थाली का ताज है।

    कुट्टू का आटा, दरअसल, अनाज नहीं बल्कि एक बीज है। पहाड़ी इलाकों में यह सैकड़ों साल से उगाया जाता है और इसे देवताओं को भी चढ़ाया जाता था। कुट्टू की पूरी जब दही या आलू-टमाटर की सब्जी के साथ खाई जाती है तो यह सिर्फ भोजन नहीं रहती, बल्कि एक परंपरा का अनुभव बन जाती है।

    सुपरफूड भी देते साथ

    आजकल पोषण विज्ञान इन सात्विक पकवानों को ‘सुपरफूड’ की श्रेणी में रखता है। कुट्टू, राजगीरा, सामा, सिंघाड़ा और शकरकंद जैसे अनाज और फल न सिर्फ उपवास के दौरान शरीर को ऊर्जा देते हैं, बल्कि लंबे समय तक तृप्त भी रखते हैं। ये ग्लूटेन-फ्री होते हैं, मिनरल्स और एंटीआक्सीडेंट से भरपूर होते हैं और आधुनिक डाइट में भी सुपरफूड के रूप में शामिल किए जाते हैं।

    परंपरा में छौंक नवाचार का

    मेरा मानना है कि परंपरा को जीवित रखने के साथ-साथ हमें थोड़ी इनोवेशन भी करनी चाहिए। जैसे साबुदाना खिचड़ी को छोटे ‘साबुदाना बाइट्स’ के रूप में परोसना, शकरकंदी हलवे को टार्ट शेल्स में सजाना या कुट्टू के आटे से पतली कुरकुरी रोटियां बनाकर उन्हें स्नैक की तरह पेश करना। इन छोटे बदलावों से हम नवरात्र की थाली को आधुनिक स्वाद और अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुति के अनुकूल बना सकते हैं, बिना उसका आत्मा खोए।

    मेरे लिए यह व्यंजन बनाना किसी रेसिपी को फालो करना भर नहीं है। यह मानो पुरानी दादी-नानी की कहानियों को फिर से जीना है। जब भी मैं शकरकंद हलवा पकाता हूं या कुट्टू की पूरी बेलता हूं, तो मुझे लगता है कि मैं सिर्फ खाना नहीं बना रहा, बल्कि परंपरा को जीवित रख रहा हूं। नवरात्र का यह पर्व हमें यही सिखाता है कि थाली में परोसा हर निवाला केवल भोजन नहीं, बल्कि एक जीवित परंपरा है, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाना है।