कभी बीमारियों की दवा होते थे 'लड्डू', आज बन गए हैं हर जश्न की मिठास; पढ़ें इनका दिलचस्प इतिहास
भारत में खुशखबरी का मतलब होता है- लड्डू बांटो! क्या आप जानते हैं ये गोल-मटोल मिठाई जो हर आज जश्न का चेहरा बन चुकी है कभी सिर्फ बीमारियों की दवा मानी जाती थी? जी हां! लड्डू की कहानी (Laddu History) महज एक मिठाई की नहीं बल्कि हजारों साल पुरानी आयुर्वेदिक समझ और भारतीय संस्कृति से जुड़ी है। आइए जानें इसका दिलचस्प इतिहास।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Laddu History: जब भी कोई खुशखबरी मिलती है, जैसे- शादी पक्की हुई हो, बच्चे का जन्म हुआ हो या एग्जाम में टॉप किया हो, तो लोगों का सबसे पहला सवाल यही होता है कि, "लड्डू कब खिला रहे हो?"
गोल-मटोल, देसी घी में लिपटे, हर निवाले में मिठास भर देने वाले लड्डू आज सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि खुशियों का प्रतीक बन चुके हैं। चाहे मंदिर का प्रसाद हो या दफ्तर की पार्टी, लड्डू बिना जश्न अधूरा-सा लगता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये लड्डू हमेशा से मिठाई नहीं थे? जी हां! दरअसल, लड्डू की शुरुआत एक दवा के रूप में हुई थी। कभी ये शरीर की ताकत बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक गोली माने जाते थे, जिन्हें मीठे रूप में गोल आकार देकर आसानी से खाया जाता था। तो आइए, जानें कि कैसे एक औषधि बन गई भारत की सबसे फेमस मिठाई (Laddu Sweet History)।
जब लड्डू था सेहत का सहारा
आज हम लड्डू को मिठाई के रूप में खाते हैं, लेकिन इसकी शुरुआत एक औषधि के रूप में हुई थी। कहा जाता है कि लगभग 300 ईसा पूर्व के आसपास, प्राचीन आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत ने जड़ी-बूटियों और औषधीय सामग्री को एक गोल आकार देकर अपने मरीजों को देना शुरू किया। इसका उद्देश्य था – कड़वी औषधियों को सरल रूप में देना और उन्हें मापी गई मात्रा में परोसना।
इनमें तिल, गुड़, मेथी, अदरक पाउडर, कमल बीज, शहद, और देसी घी जैसे तत्व होते थे, जो शरीर को ऊर्जा देने के साथ-साथ रोगों से लड़ने में भी मदद करते थे।
एक गलती, जो स्वाद बन गई
कहते हैं कि कभी-कभी गलती भी आविष्कार बन जाती है। एक लोककथा के अनुसार, एक प्रशिक्षु वैद्य से औषधि में घी ज्यादा पड़ गया। जब मिश्रण ज्यादा चिपचिपा हो गया, तो उसने उसे छोटे-छोटे गोले बना दिए – और इस तरह ‘लड्डू’ जन्मा! मरीजों को इसे खाना भी आसान लगा, और वैद्यों के लिए भी इसे परोसना सरल हो गया।
हमारे देश में प्रसव के बाद महिलाओं को जो खास गोंद के लड्डू दिए जाते हैं, वो भी इसी आयुर्वेदिक परंपरा का हिस्सा हैं। इन लड्डुओं में गोंद, मेवे, घी, हल्दी और मसालों का इस्तेमाल होता है, जो नई मां को ताकत देते हैं और गर्भाशय की रिकवरी में मदद करते हैं।
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यात्रा और युद्ध का साथी
अगर आप सोचते हैं कि लड्डू केवल घर की रसोई तक सीमित थे, तो ऐसा नहीं है। दक्षिण भारत, खासकर चोल साम्राज्य के समय, नारियल लड्डू (नारियाल नाकरू) यात्रा और युद्ध के दौरान सैनिकों का पोषण साधन थे। ये लंबे समय तक खराब नहीं होते थे और ऊर्जा से भरपूर होते थे। इसलिए योद्धा इन्हें अपने साथ ले जाते थे।
चीनी आई और मिठास बढ़ गई
पहले के लड्डू मुख्यतः आयुर्वेदिक और कम मीठे होते थे, लेकिन जैसे-जैसे चीनी का चलन बढ़ा (खासतौर पर ब्रिटिश काल में), लड्डू में भी एक नया मोड़ आया। गुड़ की जगह सफेद चीनी ने ली और स्वाद में आई वो मिठास, जिसने लड्डू को हर उत्सव का हीरो बना दिया।
सिर्फ भारत तक सीमित नहीं
विदेशों में बसे भारतीयों ने भी लड्डू को अपनी संस्कृति का हिस्सा बनाए रखा है। अमेरिका, कनाडा, दुबई, और यूरोप के देशों में लड्डू शादियों और त्योहारों में बड़े चाव से परोसे जाते हैं। कई फ्यूजन लड्डू जैसे “किवी-ड्रायफ्रूट लड्डू” या “प्रोटीन लड्डू” भी अब ट्रेंड में हैं।
हर खुशी का पहला निवाला
- भारत में ‘खुशखबरी’ का मतलब है – लड्डू बांटना।
- बच्चा हुआ – लड्डू लाओ
- एग्जाम क्लियर हुआ – लड्डू बांटो
- नया घर लिया – लड्डू खाओ
- शादी तय हुई – लड्डू खिलाओ
लड्डू अब सिर्फ मिठाई नहीं, खुशियों का प्रतीक बन चुका है।
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