Move to Jagran APP

Sindur Khela 2023: दुर्गा पूजा के दौरान कब खेला जाता है सिंदूर खेला और क्या है इसका इतिहास व महत्व

Sindur Khela 2023 सिन्दूर खेला दुर्गा पूजा की एक बहुत ही पुरानी परंपरा है। जिसमें महिलाएं एक-दूसरे को सिन्दूर लगाती हैं और मिठाई खिलाती हैं। मां की विदाई के खुशी में सिंदूर खेला मनाया जाता है। महाआरती के बाद विवाहित महिलाएं देवी के माथे और पैरों पर सिंदूर लगाती हैं फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाने की परंपरा है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।

By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghPublished: Sun, 22 Oct 2023 06:24 PM (IST)Updated: Sun, 22 Oct 2023 06:24 PM (IST)
Sindur Khela 2023: क्या है सिंदूर खेला और इसका महत्व

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Sindur Khela 2023: शारदीय नवरात्रि अलग ही धूम हमारे देश में देखने को मिलती है। सिर्फ उत्तर ही नहीं दक्षिण भारत में भी नवरात्रि पर्व की रौनक देखी जा सकती है। ऐसा माना जाता है नवरात्रि में मां स्वर्ग से धरती पर आती हैं। नवरात्रि का यह पर्व 23 अक्टूबर को समाप्त होगा और 24 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। नवरात्रि का उत्सव रंग ढंग से मनाने की परंपरा है।

बहुत ही खास होती है पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा

नवरात्रि का जैसा नजारा पश्चिम बंगाल में देखने को मिलता है, वैसा शायद ही और कहीं। यहां बिल्कुल पारंपरिक तरीके से पंडाल सजाए जाते हैं और उनमें मां दुर्गा की पूजा, आरती और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान होने वाली संध्या आरती इतनी भव्य होती है कि इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। ढोल-नगाड़ों,  शंख, नाच-गाने के साथ सम्पन्न होती है संध्या आरती। यहां होने वाली दुुर्गा पूजा में एक और जो सबसे खास परंपरा है, जो है सिंदूर खेला।

सिंदूर खेला माता की विदाई के दिन खेला जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं सामिल होती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। इस साल 24 अक्टूबर को सिंदूर खेला मनाया जाएगा। आइए जानते हैं क्या है सिंदूर खेला का ​महत्व। 

कैसे मनाते हैं सिंदूर खेला?

महाआरती के साथ इस दिन की शुरुआत होती है। आरती के बाद भक्तगण मां देवी को कोचुर, शाक, इलिश, पंता भात आदि पकवानों का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद इस प्रसाद को सभी में बांटा जाता है। मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है, जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा मानते हैं कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। फिर सिंदूर खेला शुरू होता है। जिसमें महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर और धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दुर्गा विसर्जन किया जाता है। 

सिंदूर खेला की शुरुआत 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिंदूर खेला की शुरुआत 450 साल पहले हुई थी। जिसके बाद से बंगाल में दुर्गा विसर्जन के दिन सिंदूर खेला का उत्सव मनाया जाने लगा। बंगाल मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। 

ये भी पढ़ेंः- Durga Puja Dhunuchi Dance: महानवमी पर क्यों किया जाता है धुनुची डांस और क्या है इसका महत्व

Pic credit- freepik


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.