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    आजादी की अखल जगाने के लिए हुई थी गणेशोत्सव की शुरुआत, जानें देशभर में कैसे बढ़ा इसका चलन

    गणेशोत्सव जो भगवान गणेश को समर्पित है पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार 10 दिनों तक चलता है इस दौरान लोग घरों और पंडालों में गणपति की स्थापना करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह दिन भगवान गणेश के अवतरण का प्रतीक है लेकिन इसका इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ा है।

    By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Updated: Wed, 27 Aug 2025 06:42 PM (IST)
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    लोकमान्य तिलक ने कैसे की गणेशोत्सव की शुरुआत (Picture Credit- Instagram)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में आज से गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। भगवान गणेश को समर्पित यह पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। यह महोत्सव 10 दिनों तक चलता है और इस दौरान लोग घर-घर गणपति बप्पा की स्थापना करते हैं और विशाल पंडाल में भी बप्पा की बड़ी-बड़ी मूर्तियां बिठाते हैं। गणेश चतुर्थी के साथ ही 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की शुरुआत हो चुकी है।

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    इस त्योहार को हम सभी हर साल हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस पर्व को मनाने की शुरुआत कैसे हुई? धार्मिक मान्यताओं की बात करें, तो गणेश चतुर्थी का पर्व इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान गणेश का अवतरण हुआ था, लेकिन 10 दिनों तक इस पर्व को मनाने के पीछे एक और वजह छिपी हुई। यह वजह हमारी आजादी की लड़ाई से जुड़ी हुई है, तो आइए जानते हैं कब और कैसे हुई गणेश उत्सव मनाने की शुरुआत-

    आजादी की लड़ाई से जुड़ी है कहानी

    बात उस दौर की है, जब है देश में आजादी की चिंगारी धधक रही थी और लोकमान्य तिलक का नाम भारत के सबसे बड़े जननेता में शामिल था। आजादी के लिए लड़ाई लड़ रहे लोगों को जोश और देशभक्ति से भरने के लिए उस दौर में तिलक ने मराठी में एक नारा दिया है, जिसका मतलब था “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।” हालांकि, उस दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत को रोकने के लिए भारतीयों को एक जगह इकट्ठा होने से रोक दिया।

    कैसे हुई गणेशोत्सव की शुरुआत?

    ऐसे में लोगों तक क्रांतिकारी नेताओं के लिए अपने विचार पहुंचाना मुश्किल हो गया था। इसलिए लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए हिंदू प्रतीकों और त्योहारों का सहारा लिया। इसके बाद 1893 में, उन्होंने गणेश चतुर्थी के मौके पर एक नई परंपरा की शुरुआत की। उन्होंने इस त्योहार के जरिए लोगों को इकट्ठा किया और केशवजी नाइक चॉल पहले सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की नींव रखी।

    स्वतंत्रता संग्राम में हथियार बना गणेशोत्सव

    ब्रिटिश शासन के लिए यह गणेशोत्सव का पर्व था, लेकिन असल में यहां अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनके जरिए देश से लगाव की कथा सुनाई गई और देशप्रेम के भाषण दिए गए। इस तरह लोग गणेश उत्सव के लिए जुटने लगे और इस तरह पहली बार विशाल गणपति प्रतिमा के साथ गणेश उत्सव मनाया गया। तिलक की यह परंपरा धीरे-धीरे पूरे देश में प्रचलित हुई और उसी का नतीजा है कि आज भी महाराष्ट्र और देश के अलग-अलग हिस्सों में गणेश पंडाल लगाए जाते हैं।

    शिवाजी महाराज से भी जुड़ी है कहानी

    इसके अलावा कुछ इतिहासकारों की मानें, तो गणेश महोत्सव की शुरुआत सन 1630–1680 में छत्रपति शिवाजी ने पुणे में की थी। दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि 18वीं सदी में पेशवा भी गणेशभक्त थे और उन्होंने ही भाद्रपद के महीने में सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाने की शुरुआत की थी, लेकिन ब्रिटिश राज आने के बाद इसे कुछ समय के लिए कुछ समय के लिए रोकना पड़ा था।

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