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    महिमा बा राउर अपार छठी मैया…जानें क्या सीख देता है छठ का त्योहार

    Updated: Tue, 05 Nov 2024 03:21 PM (IST)

    छठ एक महापर्व है जो बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोगों की लोक आस्था का प्रतीक माना जाता है। सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित यह त्योहार (Chhath Puja 2024) सिर्फ धार्मिक आस्था नहीं रखता बल्कि प्रकृति को सम्मान देने और लाखों लोगों को रोजगार देने का भी काम करता है। आइए जानते हैं कि छठ पर्व का क्या खास महत्व (Chhath Puja Significance) है।

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    समाज को आपस में जोड़ने वाला धागा है छठ पूजा (Picture Courtesy: PTI)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। छठ महापर्व की शुरुआत 5 नवंबर से हो चुकी है। चार दिनों तक मनाए जाने वाले इस त्योहार का समापन 8 नवंबर को सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देकर होगा। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच इस पर्व का बड़ा खास महत्व है और इसे वे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इसी बारे में लोकगायिका, अंकिता पंडित बताती हैं कि कैसे छठ पर्व सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह समाज और प्रकृति को जोड़ने का पर्व भी है।

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    छठ बस एक पर्व नहीं है, बल्कि इस आधुनिक दुनिया में सुदर्शन चक्र की तरह है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में परंपराओं को मजबूत करने वाले अटूट धागे की तरह है छठ। इस पर्व में समाज का सारा भेदभाव धूमिल हो जाता है। न कोई बड़ा होता है, न कोई छोटा, सभी एक समान हो जाते हैं। इस पर्व का आस्था के संग सरोकार का दायरा भी बड़ा है। इस महापर्व से लाखों गरीबों का रोजगार जुड़ा होता है, खासकर बांसफोड़ जाति के लोगों का।

    (Picture Courtesy: ANI)

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    छठ पूजा में बांस के सूप और दौरे का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कई लोगों को रोजी-रोटी मिलती है। इसलिए छठ लाखों लोगों के घरों में दीपक जलाने का काम करता है। दौरा,सूपा, सूपुली, दियरी, मिट्टी का चूल्हा आदि से बाजार जगमगा उठता है, जिससे इन्हें बनाने वाले कारीगरों को भी रोजगार मिलता है। इसलिए छठ एक अनूठा पर्व है, जिसमें भौतिकतावाद की कोई जगह नहीं है।

    (Picture Courtesy: PTI)

    छठ महापर्व पूरी तरह से ईको फ्रेंडली होता है । इसमें उपयोग में आनेवाली लगभग हर सामग्री प्रकृति से ली जाती है और इस पर्व की खूबसूरती भी देखिए कि सबकुछ प्रकृति लेकर उसे ही समर्पित भी कर दिया जाता है। आपने उगते सूर्य की पूजा के बारे में तो सुना होगा और देखा भी होगा, लेकिन छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। इससे एक बहुत बड़ी सीख मिलती है कि भगवान समय के बदलने से नहीं बदलते। इसलिए अस्त होते समय भी उनको प्रणाम करते हैं। साथ ही, एक सीख यह भी मिलती है कि समय हमेशा एक जैसा नहीं होता। जिसका अस्त हुआ है, उसका उदय भी जरूर होगा। इसलिए कर्म करते हुए जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए।

    हमारे तीज, त्योहार और पर्व पर बाजारवाद हावी हो चुका है, लेकिन छठ आज भी इसके आगोश में नहीं आ सका है। एक ओर जहां त्योहारों में बाजार में मिलने वाली रेडीमेड चीजों का बोलबाला देखने को मिलता है। वही छठ आज भी इससे बहुत दूर है। मिट्टी के चूल्हे पर बननेवाली ठेकुआ की खुशबू मानो इत्र की तरह चारों ओर फैल जाती है और इस पर्व में रेडिमेड भोग की कोई जगह नहीं। प्रसाद के लिए घर पर ठेकुआ बनाया जाता है, मौसमी फलों और सब्जियों का भोग लगाया जाता है।

    (Picture Courtesy: PTI)

    अब छठ की बात होगी, तो छठ के पारंपरिक गीतों की बात जरूर होगी। दरअसल छठ को सबसे ज्यादा पहचान इसके गीतों ने ही दिलाई है। अगर आप छठ गीतों को सुनेंगे, तो आपको इस पर्व की सहजता और सुंदरता खुद-ब-खुद जान जाएंगे। चार दिनों के इस पर्व में महिलाएं तरह-तरह के छठी मैया और सूर्यदेव के गीत गाती हैं, जिनसे आस-पास का माहौल बेहद मनोरम हो जाता है। छठी मैया सबका दु:ख हर लेंगी ऐसी कामना करते हुए हर व्रती महिला सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। इस पर्व की एक खासियत और है कि इसके लिए किसी प्रकार का मुहूर्त दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती। जैसे ही सूर्य डूबते हैं उनको अर्घ्य दे दिया जाता है और सुबह जब सूर्योदय होता है, तब सुबह अर्घ्य दिया जाता है। आइए हम सब इस महापर्व से सीख लें और हमारे वातावरण के अनुरूप त्योहारों में ईको फ्रेंडली चीजों का इस्तेमाल करें और अपनी वर्षों पुरानी पारंपराओं को संजोया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी इससे अवगत हो पाए।

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