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    International Yoga Day 2023: पांच हजार साल पुराना है योग का इतिहास, जानें किसने की थी इसकी शुरुआत

    By Ruhee ParvezEdited By: Ruhee Parvez
    Updated: Wed, 21 Jun 2023 08:30 AM (IST)

    International Yoga Day History भारत में योग का इतिहास 5000 साल पुराना है। शारीरिक रूप से हेल्दी रहने और मानसिक शांति व अध्यात्म के लिए लोग योग प्राचीनकाल से ही कर रहे हैं। 21 जून को हर साल योग के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए इसे हर साल मनाने का फैसला साल 2014 में लिया गया। तो आइए जानें कि योग कब शुरू हुआ।

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    International Yoga Day 2023: पढ़ें भारत में योग के इतिहास के बारे में

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। International Yoga Day 2023: योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जहां शरीर, मन और आत्मा संयुक्त होते हैं। यह शब्द हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में ध्यान की प्रक्रिया से संबंधित है। योग एक संस्कृत शब्द 'युज' से बना है, जिसका मतलब है इकट्ठा होना या बांधना। योग अब चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका के साथ-साथ भारत से बौद्ध धर्म में फैल गया है, और इस समय पूरी दुनिया में लोग इससे परिचित हैं। योग करने से न केवल हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि इससे हमारा दिमाग भी सतर्क रहता है। योग का रोजाना अभ्यास मन की शांति, तनाव मुक्त जीवन, शरीर की थकान, रोग मुक्त शरीर और वजन पर काबू पाने में मददगार साबित होता है। लेकिन आपने कभी सोचा है इसकी शुरुआत किसने की होगी?

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    आज यानी 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन की शुरुआत साल 2015 से हुई थी। इस मौके पर जानते हैं कि आखिर दुनिया में योग की शुरुआत कब और कैसे की गई।

    योग का इतिहास

    ऐसा माना जाता है कि योग का अभ्यास सभ्यता की शुरुआत के साथ ही शुरू हो गया था। योग के विज्ञान की उत्पत्ति पांच हजारों साल पहले हुई थी, जब न तो कोई धर्म था और न ही किसी तरह के विश्वास ने जन्म लिया था। यौगिक विद्या में, शिव को पहले योगी या आदियोगी और पहले गुरु या आदि गुरु के रूप में देखा जाता है। कई हज़ार साल पहले, हिमालय में कांतिसरोवर झील के तट पर, आदियोगी ने पौराणिक सप्तऋषियों या "सात संतों" को अपना गहन ज्ञान प्रदान किया था। ऋषि इस शक्तिशाली योग विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ले गए। हालांकि, भारत में योग प्रणाली को अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति मिली। अगस्त्य, सप्तर्षि जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की, ने योग को जीवन जीने का एक तरीका बना दिया।

    मुहर और फॉसिल

    सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों और जीवाश्म (fossils) अवशेषों में योग साधना करने वाली आकृतियां देखी जा सकती हैं। जिससे साफ होता है कि योग भारत में प्राचीन समय से है। इसके अलावा योग की उपस्थिति लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक और उपनिषद, बौद्ध और जैन परंपराओं, दर्शनों, महाभारत और रामायण के महाकाव्यों, शैवों, वैष्णवों की ईश्वरवादी परंपराओं और तांत्रिक परंपराओं में भी देखी जा सकती है।

    सूर्य नमस्कार

    यह वह समय था जब गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में योग का अभ्यास किया जा रहा था और इसके आध्यात्मिक मूल्य को विशेष महत्व दिया जाता था। यह उपासना का एक हिस्सा था और योग साधना इसके अनुष्ठानों में अंतर्निहित थी। वैदिक काल में सूर्य को सर्वाधिक महत्व दिया गया था और इसी के प्रभाव के कारण हो सकता है कि 'सूर्य नमस्कार' की प्रथा शुरू की गई हो। प्राणायाम दैनिक अनुष्ठान का एक हिस्सा था और आहुति देने के लिए था।

    वैसे तो पूर्व-वैदिक काल में योग का अभ्यास किया जा रहा था, लेकिन महान ऋषि महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र के माध्यम से योग की मौजूदा प्रथाओं, इसके अर्थ और इसके संबंधित ज्ञान को व्यवस्थित और संहिताबद्ध किया। पतंजलि के बाद, कई ऋषियों और योग गुरुओं ने योग के संरक्षण और विकास के लिए बहुत योगदान दिया।

    किसी एक धर्म का हिस्सा नहीं

    योग किसी विशेष धर्म या समुदाय का हिस्सा नहीं है, यह हमेशा से आध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक प्रथाओं का एक समूह रहा है। जो भी योग का अभ्यास करेगा, उसे कई शारीरिक और मानसिक फायदे मिलेंगे, फिर चाहे वह किसी भी धर्म, जातीयता या फिर संस्कृति पर विश्वास करता हो।

    प्रणायाम

    जिंदा रहने के लिए हम सभी का सांस लेना जरूरी है। प्राणायाम सांस लेने की एक प्राचीन तकनीक है, जो भारत में योग प्रथाओं से उत्पन्न हुई। इसमें कई तरह से अपनी सांस को नियंत्रित करना भी शामिल है।

    यह दिमाग में जागरूकता विकसित करने में मदद करता है और दिमाग पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद करता है। शुरुआति चरण में नाक और मुंह के जरिए सांस अंदर लेना और बाहर छोड़ने का अभ्यास अहम होता है।

    ध्यान (mditation)

    दिमाग को एकाग्र करके किसी एक चीज पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि ध्यान एक शांत और सुखी मन बनाए रखने की कुंजी है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन नींद से कहीं ज्यादा आराम ध्यान करने से पहुंचता है। ध्यान का अभ्यास करने से मन शांत होता है, एकाग्रता बढ़ती है, धारणा स्पष्ट होती है, संप्रेषण में सुधार होता है, अधिक आतंरिक शक्ति और विश्राम जैसे कई लाभ होते हैं। आज की तनाव भरी दुनिया में नकारात्मक भावनाओं से छुटकारा पाने के लिए ध्यान का अभ्यास एक आवश्यकता बन गई है।