भक्त और भगवान के मिलन को बताता है Ganpati Bappa Morya, जानें कब और कैसे विघ्नहर्ता के नाम के साथ जुड़ा ‘मोरया’
देशभर में Ganesh Chaturthi 2024 का त्योहार मनाया जा रहा है। यह त्योहार हर साल हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस पर्व की रौनक हर तरफ देखने को मिलती है। हर तरफ Ganpati Bappa Morya की गूंज सुनाई दे रही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मोरया शब्द का क्या मतलब और इतिहास है। अगर नहीं तो आइए जानते हैं।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। पूरा देश आज ‘गणपति बप्पा मोरया’ (Ganpati Bappa Morya) के जयकारे से गूंज रहा है। 7 सितंबर यानी आज से दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। यह त्योहार धूमधाम से देशभर में मनाया जाता है और इसका हिंदू धर्म में काफी महत्व होता है। खासकर महाराष्ट्र में इस पर्व की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। जब भी भगवान गणेश की पूजा की बात आती है, तो इस दौरान अक्सर ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलपूर्ति मोरया’ का जयघोष किया जाता है।
इन शब्दों में गणपति बप्पा और मंगलपूर्ति का मतलब तो आपको पता ही होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मोरया शब्द का क्या अर्थ है और इसे भगवान गणेश के नाम से क्यों जोड़ा जाता है। अगर नहीं, तो आज गणेश चतुर्थी के मौके पर हम आपको बताएंगे क्या है बप्पा के नाम में मोयरा शब्द का अर्थ और कैसे शुरू हुआ इसका इस्तेमाल-
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इसलिए बप्पा कहलाते हैं गणेश
गणपति के इस नाम के पीछे कई दिलचस्प कहानी है। ये तो हम सभी जानते हैं कि लोकमान्य तिलक ने महाराष्ट्र से गणेशोत्सव की शुरुआत की थी और बाद में यह पूरे देश में मनाया जाने लगा। गणपति बप्पा के नाम बप्पा का अर्थ पिता होता है। दरअसल, महाराष्ट्र में पिता को बप्पा कहा जाता है और गणेश के पिता के रूप में माना जाने की वजह से उन्हें बप्पा कहा जाने लगा है। हालांकि, उनके नाम के साथ जुड़े मोरया की कहानी बेहद दिलचस्प है।
दिलचस्प है मोरया शब्द की कहानी
मान्यताओं की मानें, तो इसका संबंध महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव से है। बात करीब 600 साल पहले की है, जहां मोरया गोसावी नाम के गणेश भक्त रहा करते थे। 375 ई. में जन्मे मोरया गोसावी को भगवान गणेश का ही अंश माना जाता है। कहा जाता है कि वह अपने माता-पिता के समान ही गणेश भगवान के भक्त थे। बप्पा के लिए उनकी भक्ति इसकी ज्यादा थी कि वह हर गणेश चतुर्थी चिंचवाड़ से 95 किलोमीटर दूर स्थित मयूरेश्वर मंदिर में दर्शन पैदल चलकर के लिए जाते थे।
खुद भक्त के पास पहुंचे भगवान
पैदल मंदिर जाने का यह सिलसिला 117 की उम्र तक चलता रहा, लेकिन फिर उम्र होने की वजह से उन्हें इतना दूर जाने में परेशानी होनी लगी। ऐसे में एक बार भगवान गणेश उनके सपने में आए और मोयरा से बोले कि तुम्हें मंदिर तक आने की जरूरत नहीं। कल सुबह जब तुम स्नान करके कुंड से निकलोगे, तो मैं खुद तुम्हारे पास आ जाऊंगा। अगले दिन सुबह जब मोरया स्नान करके कुंड से निकलने, तो उनके पास गणेश भगवान की ठीक वैसी ही छोटी- सी मूर्ति थी, जैसी उन्होंने सपने में देखी थी।
भगवान के साथ जुड़ गया भक्त का नाम
उन्होंने बप्पा की इस मूर्ति को चिंचवाड़ में स्थापित किया और धीरे-धीरे ये मंदिर और मोरया की भक्ति दूर-दूर तक लोगों के बीच मशहूर होने लगी। इसके बाद से ही हर कोई उनके दर्शन के लिए चिंचवाड़ के इस मंदिर आने लगा और भगवान गणेश का नाम लेने के साथ ही वह मोरया का नाम भी लेने लगे और इस तरह गणपति बप्पा और मोरया का नाम एक होता गया और लोगों में भगवान गणेश का जयकारा लगाते हुए गणपति बप्पा मोरया पुकारना शुरू कर दिया।
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