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    रोना.. कभी नहीं रोना

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    Updated: Wed, 07 Mar 2012 12:15 PM (IST)

    नवजात शिशु का बेवजह बहुत ज्यादा रोना या बिलकुल नहीं रोना दोनों ही माता-पिता के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। बच्चों के पास रोने के हजारों बहाने हो सकते हैं और कई बार तो उनके रोने की सही वजह जान पाना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। बच्चे का रोना तो बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन उसकी सही वजह जानकर उसे बहुत सारी समस्याओं से बचाया जा सकता है।

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    जन्म के बाद शिशु की पहली रुलाई सुनकर मां पीड़ा में भी मुस्कुरा उठती है। क्योंकि जन्म के तुरंत बाद शिशु का रोना इस बात का संकेत है किवह पूर्णत: स्वस्थ है।

    क्यों रोते हैं बच्चे

    दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेम नारायण दुबे कहते हैं, 'दरअसल रुलाई नवजात शिशु की भाषा है और वह रोकर ही अपनी इच्छा या अनिच्छा जाहिर करता है। आम तौर पर मां अपनी व्यावहारिक सूझ-बूझ से यह जान लेती है कि बच्चा क्यों रो रहा है? शिशु केवल अपनी शारीरिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक जरूरतें पूरी करने के लिए भी रोता है। बच्चे के मन में सुरक्षा और विश्वास की भावना पैदा करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि जन्म के पहले ही दिन से उसकी भावनात्मक जरूरतें पूरी की जाएं।' अकसर मांओं को यह शिकायत रहती है कि उनका नवजात शिशु रात को बहुत ज्यादा रोता है। यह बच्चों की बहुत सामान्य समस्या है। जन्म के बाद उनकी बॉडी क्लॉक को सेट होने में लगभग दो-तीन महीने का समय लग जाता है। जब शिशु मां के गर्भ में होता है तो उसके लिए दिन-रात के बीच कोई फर्क नहीं होता। इतना ही नही रात के वक्त जब मां आराम से सो रही होती है, उस दौरान गर्भस्थ शिशु काफी सक्रिय रहता है। इसी वजह से जन्म के बाद भी शुरुआती दो-तीन महीने तक उसकी यही आदत बनी रहती है। तीन माह की उम्र के बाद धीरे-धीरे बच्चे की नींद की अवधि थोड़ी कम होने लगती है। लिहाजा वह दिन में ज्यादातर जागना सीख जाता है और रात को लगातार चार-छह घंटे की नींद लेने लगता है।

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    इवनिंग कॉलिक

    इस संबंध में डॉ. दुबे आगे कहते हैं, 'भूख-प्यास लगने या स्टूल-यूरिन रिलीज करने पर सभी बच्चे रोकर अपनी जरूरतें बताते हैं, लेकिन इन कारणों के अलावा नवजात शिशुओं के रोने का सबसे बड़ा कारण है-गैस की वजह से पेट में होने वाला दर्द। आम तौर बच्चों को यह दर्द शाम पांच बचे से रात दस बजे के बीच होता है। इसीलिए इस समस्या को 'इवनिंग कॉलिक सिंड्रोम' भी कहा जाता है। दरअसल दूध पीते समय बच्चे के पेट में थोड़ी सी हवा भी चली जाती है, अगर फीड कराने के बाद सही ढंग से डकार न दिलाई जाए तो शिशु के पेट में तेज दर्द शुरू हो जाता है। इस समस्या से बचने के लिए यह बहुत जरूरी है कि दूध पिलाने के बाद बच्चे का सिर अपने कंधे पर रखकर उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे डकार दिलाई जाए।

    क्या रोना अच्छा है?

    अकसर आपने बुजुर्गो को यह कहते सुना होगा कि शिशु के लिए थोड़ा रोना भी जरूरी है। आज के बाल रोग विशेषज्ञ भी इसे सही मानते हैं कि रोने से बच्चे की मांसपेशियों की अच्छी एक्सरसाइज होती है और फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलता है। इस संबंध में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.आलोक गुप्ता कहते हैं, 'शिशु अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए रोते हैं, लेकिन उनके लिए थोड़ा अनुशासन भी जरूरी है। मिसाल के तौर पर अगर आप बच्चे को हर तीन घंटे के अंतराल पर फीड देती हैं तो उसके इस रूटीन को कायम रखने की कोशिश करें। अगर बीच में बच्चा रोता भी है तो उसे दूध देने के बजाय बहलाकर चुप कराने की कोशिश करें। इसी तरह कुछ बच्चे गोद में घूमने के लिए रोते हैं तो रोने पर उन्हें थोड़ी देर के लिए गोद में जरूर उठाएं, लेकिन उसे जल्द ही बेड पर लिटा दें और खुद उसके पास बैठी रहें। इससे वह सुरक्षित महसूस करेगा और उसे यह एहसास हो जाएगा कि सोने की सही जगह बेड ही है, गोद नहीं।' कई बार बच्चे आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए भी रोते हैं। ऐसे में उन्हें बहलाना ही सही उपाय है।'

    सब्र का इम्तहान है यह

    नवजात शिशु की परवरिश में वाकई माता-पिता के सब्र की कड़ी परीक्षा हो जाती है। हर बच्चा अपने आपमें सबसे अलग होता है और यह भी जरूरी नहीं है कि ऊपर बताए गए नियम सभी बच्चों पर समान रूप से लागू हों। इसका सबसे सही तरीका यही है कि बच्चे की छोटी-छोटी आदतों और गतिविधियों को बहुत ध्यान से देखते हुए उसकी जरूरतें समझने की कोशिश की जाए। अगर आपकी तमाम कोशिशों के बावजूद बच्चा लगातार रोता रहे तो बिना देर किए किसी शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। उसके लगातार रोने की वजह कोई ऐसी गंभीर समस्या भी हो सकती है, जिसे पहचान पाना आपके लिए मुश्किल होगा।

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