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    क्यों देर से बोलते है बच्चे

    By Edited By:
    Updated: Thu, 16 Aug 2012 11:35 AM (IST)

    बच्चे के मुंह से पहला शब्द 'मां' सुनने पर जितनी प्रसन्नता मां को होती है उसका शब्दों में वर्णन करना असंभव है। तोतली जुबान में बच्चे की मीठी-मीठी बातें, माता-पिता के कानों में मानो अमृत घोल देती है।

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    बच्चे के मुंह से पहला शब्द 'मां' सुनने पर जितनी प्रसन्नता मां को होती है उसका शब्दों में वर्णन करना असंभव है। तोतली जुबान में बच्चे की मीठी-मीठी बातें, माता-पिता के कानों में मानो अमृत घोल देती है। लेकिन कभी-कभी कुछ बच्चे देर से बोलना आरंभ करते है अथवा बहुत कम बोलते है तो ऐसे में माता-पिता चिंतित हो उठते है क्योंकि उन्हे बच्चे के मानसिक विकास के मापदंड के बारे में सही जानकारी नहीं होती।

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    बोलने की सही उम्र

    बाल रोग विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि लगभग छ: महीने का शिशु अपनी मां के होंठों के हाव-भाव देखकर किलकारियों द्वारा अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करने लगता है। यदि कोई उसके सामने चुटकी या ताली बजाय अथवा उसका नाम पुकारे तो झटपट उधर देखने लग जाता है। आठ या नौ महीने की आयु से ही शिशु वस्तुओं को नाम से पहचानने लगता है। जैसे-बॉल कहने पर बॉल की ओर देखना, पापा कहने पर पापा की तऱफ पलटकर देखना आदि। हो सकता है कि कोई बच्चा एक वर्ष की उम्र तक भी ऐसी प्रतिक्रियाएं व्यक्त न पाए क्योंकि हर बच्चे के मस्तिष्क की बनावट की वजह से उसके भाषा संबंधी विकास की गति दूसरे बच्चे से बिल्कुल अलग होती है।

    भाषा संबंधी विकास

    सभी बच्चों के भाषा संबंधी विकास की गति एकसमान न होने के कारण कुछ बच्चे देर से बोलना आरंभ करते है अथवा बहुत कम बोलते है। ऐसे में चिंता करने के बजाय यदि धैर्य तथा सूझबूझ से काम लेते हुए स्पीच थेरेपिस्ट से सलाह ले कर उसके देर से बोलने के कारणों के बारे में पता लगाया जाए तो इस समस्या को सुलझाया जा सकता है।

    क्या है देर से बोलने की वजह

    इस संबंध में स्पीच थेरेपिस्ट डॉ. आर.के. चौहान का कहना है, 'जो बच्चे जन्म के बाद देर से रोना आरंभ करते हैं, वे बोलना भी देर से आरंभ करते है अर्थात जो शिशु जन्म के समय खुलकर न रोए या उसे रुलाने के लिए कोई उपचार करना पड़े, तो ऐसे बच्चे अकसर देर से बोलना सीखते है। इसके अतिरिक्त गर्भावस्था के समय मां के जॉन्डिस से ग्रस्त होने अथवा नॉर्मल डिलीवरी के समय बच्चे के मस्तिष्क की बांई ओर चोट लग जाने की वजह से भी बच्चे की सुनने की शक्ति क्षीण हो जाती है। सुनने तथा बोलने का गहरा संबंध है। जो बच्चा ठीक से सुन नहीं पाता वह बोलना भी आरंभ नहीं करता।

    बच्चे के मस्तिष्क की बनावट

    मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि लगभग आठ महीने के शिशु के मस्तिष्क में एक हजार ट्रिलियंस ब्रेन सेल कनेक्शंस बन जाते है। यदि सुनने तथा बोलने की क्रियाओं के माध्यम से इन्हे सक्रिय न रखा जाए तो इनमें से बहुत से सेल हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।

    आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग छ: महीने का बच्चा 17 प्रकार की विभिन्न ध्वनियों को पहचानने की क्षमता रखता है और यही ध्वनियां आगे चलकर विभिन्न भाषाओं का आधार बनती है।

    यही वजह है कि जो माएं अपने शिशुओं से ज्यादा बातें करती है या उन्हे लोरी सुनाती हैं उनके बच्चे जल्दी बोलना सीख जाते है।

    इन बातों का रखें ध्यान

    अगर आप नवजात शिशु की मां है तो इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें :

    1. जब शिशु कुछ महीने का हो जाए तो ध्वनि वाले खिलौनों की सहायता से उसके सुनने की शक्ति को जांचना चाहिए। यदि सुनने में कोई समस्या लगे तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

    2. खेल-खेल में बच्चे को खिलौनों तथा वस्तुओं के नाम बताएं तथा उसे दोहराने के लिए कहे।

    3. जब बच्चा पूरा वाक्य बोलने लगे तो उसे नर्सरी राइम्स सुनाएं तथा उसकी कुछ पंक्तियों को दोहराने में बच्चे की सहायता करें। सही दोहराने पर उसे शाबाशी भी दें।

    मां बच्चे की प्रथम शिक्षिका है और उसके प्रयासों से ही उसकी परवरिश सही ढंग से हो सकती है।

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