कम वजन वाले शिशुओं पर दीजिए विशेष ध्यान
जन्म के समय 2.5 किलोग्राम से कम वजन के शिशुओं को हम कम वजन वाले यानी लो बर्थ वेट बेबी कहते है। ये बच्चे या तो समय से पहले जन्म लेने के कारण कमजोर होते ...और पढ़ें

जन्म के समय 2.5 किलोग्राम से कम वजन के शिशुओं को हम कम वजन वाले यानी लो बर्थ वेट बेबी कहते है। ये बच्चे या तो समय से पहले जन्म लेने के कारण कमजोर होते है या फिर पूरे समय पर होने के बावजूद कुपोषण/बीमारी की वजह से कमजोर रहते है। भारत में लगभग 25 से 35 फीसद नवजात शिशु लो बर्थ वेट की स्थिति में पैदा होते है जबकि विकसित राष्ट्रों में यह आकड़ा सिर्फ 5 से 7 फीसद है। केवल भारत में ही प्रतिवर्ष 60 से 80 लाख बच्चे 'लो बर्थ वेट' पैदा होते है। अधिकतर बच्चें पूरे समय में पैदा होने के बावजूद कमजोर होते है।
कारणों की रोकथाम सभव
लो बर्थ वेट वाले शिशुओं की इस स्वास्थ्य समस्या से सबधित अधिकतर कारणों की रोकथाम आसानी से की जा सकती है, तभी समाधान सभव हो सकेगा। जैसे महिलाओं की बेहतर शिक्षा, उन्हें समुचित पोषणयुक्त आहार देना, दो प्रसव के बीच 3 वर्ष का अंतर, सक्रामक रोगों की रोकथाम आदि। इसके अलावा गर्भवती महिला की समुचित देखभाल व कम से कम तीन बार प्रसव पूर्व जाच जरूरी है।
विश्व भर में 80 फीसद नवजात शिशुओं की मृत्यु लो बर्थ वेट वाले समूह में ही होती है। यही नहीं, 40 फीसद लो बर्थ वेट शिशु भविष्य में भी कुपोषित और सक्रमणग्रस्त रहते हैं। ऐसे बच्चे वयस्क होने पर मधुमेह , हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग आदि का शिकार होते है। सामान्य बच्चों की तुलना में इन कमजोर बच्चों में जानलेवा सक्रमण होने का खतरा भी दो से तीन गुना अधिक होता है।
'प्रीटर्म बेबीज' का आशय
37 हफ्ते से पहले जन्मे शिशुओं को हम 'प्रीटर्म बेबीज' कहते है। देश में जन्मे 10 से 12 फीसद बच्चे प्रीटर्म होते है। समय से पहले पैदा होने के कारण इनका दिमाग, गुर्दे, आतें, दिल आदि विभिन्न अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते। इसी वजह से ऐसे बच्चों की अस्पताल में विशिष्ट देखभाल की आवश्यकता पड़ती है।
इन बातों का रखें ख्याल
लो बर्थ वेट और प्रीटर्म बेबी होने की स्थिति में इन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए
1. समय से पहले प्रसव की स्थिति में प्रसव किसी उपयुक्त और सुविधायुक्त अस्पताल में ही कराएं। ध्यान रहे, जन्म के समय बाल रोग विशेषज्ञ की मौजूदगी से बच्चे के जीवन को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है। इन बच्चों को जीवन के शुरुआती क्षणों में उपयुक्त देखभाल/वैन्टीलेटरी सपोर्ट जीवन रक्षक सिद्ध हो सकता है।
2. प्रीटर्म डिलीवरी से पहले जीवन रक्षक दवाओं के इस्तेमाल से इन बच्चों की जटिलताएं कम की जा सकती है। इसी तरह आधुनिक सर्फेक्टेन्ट थेरेपी शिशु के फेफड़ों के विकास में अत्यन्त उपयोगी है।
3. लो बर्थ वेट व प्रीटर्म शिशुओं को गर्म रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि इन बच्चों की पतली त्वचा तापमान बनाए रखने में अक्षम होती है। बाहरी तापमान के ठंडा होने पर गर्मी बनाये रखने के लिए बच्चे की ऊर्जा इस्तेमाल होती है। इस कारण उसका वजन नहीं बढ़ता। इसके लिए सबसे बेहतर उपाय है 'कंगारू मैटर्नल केयर' जिसे बाल रोग विशेषज्ञ से सीखा जा सकता है। जन्म के बाद बच्चे को लपेटकर गर्म रखें व तुरन्त नहलाने की जल्दी न करे।
4. बच्चों की समुचित मालिश व स्टीमुलेशन थेरेपी द्वारा इनका बेहतर विकास किया जा सकता है। इन कमजोर बच्चों का दिमाग स्वस्थ बच्चों की तुलना में कम विकसित होता है, लेकिन बेहतर तकनीक की मदद से इनकी सुनने, देखने, सूंघने व समझने की शक्ति को विकसित किया जा सकता है।
5. शिशु को छह माह तक केवल स्तनपान कराएं। मा के सही आहार का भी खास ध्यान रखें। ऐसा इसलिए क्योंकि इन बच्चों के समुचित विकास के लिए सामान्य से अधिक पोषण की आवश्यकता होती है।
6. इन शिशुओं की अतिरिक्त पौष्टिक जरूरतों के लिए आयरन, कैल्शियम, विटांिमन्स आदि की जरूरत होती है। इनकी सही खुराक नवजात शिशु विशेषज्ञ की राय से बच्चों को देनी चाहिए। सही समय पर और सही मात्रा में 'न्यूटी्रशनल सप्लीमेंट' को देने से बच्चों में खून की कमी, हड्डियों की कमजोरी आदि की रोकथाम सभव है।
7. बच्चों को छूने से पहले साबुन से हाथ जरूर धोएं। ये सावधानिया इन कमजोर बच्चों को जानलेवा सक्रमण से बचा सकती हैं। साथ ही, समय-समय पर टीकाकरण अवश्य कराएं। ध्यान रहे बालरोग विशेषज्ञ की सलाह पर अत्यत कमजोर बच्चों का टीकाकरण सामान्य टीकाकरण सूची से अलग हो सकता है।
8. ऐसे बच्चों को बालरोग विशेषज्ञ को जरूर दिखाते रहे। ग्रोथ चार्ट की मदद से समय-समय पर इनके वजन, लबाई आदि की जाच आवश्यक है। साथ ही इनके दिमागी विकास के स्तर को भी हर चेकअप के दौरान देखा जाना चाहिए। ऐसे बच्चों की सुनने की और नजर की जाच भी सही समय पर जरूरी है।
डॉ. सी. एस. गाधी
नवजात शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ
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