Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बच्चों को बचाएं खतरे से

    By Edited By:
    Updated: Thu, 05 Apr 2012 12:08 PM (IST)

    कुछ समय पहले राजधानी दिल्ली में भूख और कुपोषण संबंधी रिपोर्ट जारी करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि कुपोषण की समस्या राष्ट्रीय शर्म का विषय है।

    Hero Image

    कुछ समय पहले राजधानी दिल्ली में भूख और कुपोषण संबंधी रिपोर्ट जारी करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि कुपोषण की समस्या राष्ट्रीय शर्म का विषय है। पिछले सात वर्षो में 100 जिलों के सर्वे से स्पष्ट है कि हर पांच में से एक बच्चा ही अपनी उम्र के लिहाज से स्वस्थ है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अशिक्षा व राजनीतिक उठा-पटक से जूझते विकासशील देशों की बड़ी समस्या बन चुका है कुपोषण। भूख और कुपोषण को लेकर काम करने वाले 'नंदी फाउंडेशन' और 'सिटिजंस एलाइंस अगेंस्ट मैलन्यूट्रिशन' द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषण के कारण भारत में 42 फीसदी से ज्यादा बच्चे कम वजन वाले हैं। यहां के आठ राज्यों में जितना कुपोषण है, उतना अफ्रीका और सहारा उपमहाद्वीप के गरीब देशों में भी नहीं है।

    कुछ महीने पहले आई योजना आयोग की मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक देश के एक तिहाई वयस्क व करीब आधे बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं। सर्वाधिक प्रभावित 100 जिलों में 41 अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। सर्वे में शामिल 112 जिलों के सैंपल्स में 41 उत्तर प्रदेश, 23 बिहार, 14 झारखंड, 12 मध्य प्रदेश, 10 राजस्थान, 6 उड़ीसा और 2-2 जिले हिमाचल, केरल व तमिलनाडु के हैं। एनजीओ 'सेव द चिल्ड्रन' की रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोज पांच हजार से अधिक बच्चे कुपोषण से मरते हैं। हर साल 25 लाख शिशुओं की अकाल मृत्यु होती है और 42 फीसदी बच्चे कुपोषण से ग्रस्त होते हैं।

    क्या है कुपोषण

    शरीर को समुचित पोषण न मिलना कुपोषण है। संतुलित आहार न मिलने के कारण शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। भारत सहित सभी विकासशील देशों में यह गंभीर समस्या है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में पांच वर्ष की आयु तक के लगभग 14 करोड़ बच्चों का वजन कम है। इस आयु-वर्ग के करीब 30 हजार बच्चों की रोज मौत हो रही है। भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में कुपोषण-ग्रस्त बच्चों की संख्या दुनिया की आधी है।

    कारण और लक्षण

    मां का दूध न मिलना, खाने की अधिक मात्रा, गरीबी, अशिक्षा और आनुवंशिकता कुपोषण के प्रमुख कारण हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी और लड़कियों के प्रति भेदभावपूर्ण नजरिया भी इसका बड़ा कारण है। कुपोषण से बच्चे का विकास रुक जाता है, उसे संक्रमण होने लगते हैं। विटमिन और मिनरल्स की कमी से रिकेट्स , स्कर्बी , नेत्रहीनता, एनीमिया जैसे रोग घेर लेते हैं।

    दूसरी ओर महानगरों में कुपोषण का एक कारण अधिक व असंतुलित भोजन भी है। बच्चे ओबेसिटी के शिकार हो रहे हैं। इससे आगे चल कर उन्हें अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, एस्थमा और हड्डी व जोड़ों संबंधी रोग घेर लेते हैं।

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 56 फीसदी स्त्रियां एनीमिया से ग्रस्त हैं। यही कारण है कि यहां गर्भपात के 20 फीसदी से ज्यादा मामले होते हैं, जबकि समय पूर्व शिशुओं के जन्म के मामले तीन गुना तक बढ़े हैं। कुपोषणग्रस्त बच्चों में लड़कियों की अधिक संख्या बताती है कि आज भी उनके प्रति भेदभावपूर्ण नजरिया है।

    'व्हाइट रिबन एलांइस फॉर सेफ मदरहुड इन इंडिया' की कॉर्डिनेटर अपराजिता गोगोई कहती हैं, 'देश में हर साल प्रसव के दौरान लगभग 60-70 हजार स्त्रियों की मौत होती है। हमारी संस्कृति में मातृत्व को बहुत महान माना गया है, लेकिन मां का स्वास्थ्य चर्चा या चिंता का विषय नहीं है। मां ही स्वस्थ नहीं होगी तो भला बच्चा कैसे स्वस्थ हो सकता है! इसका कारण जागरूकता की कमी के अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं का प्राथमिक स्तर तक सही तरीके से न पहुंचना है। अशिक्षा-गरीबी भी कुपोषण का बड़ा कारण है। केरल जैसे राज्य में, जहां शत-प्रतिशत साक्षरता है, ऐसे मामले कम देखने को मिले हैं। इसलिए जागरूकता, शिक्षा व रोजगार सहित कई स्तरों पर साथ काम करने की जरूरत है।'

    कैसे बचाएं बच्चों को

    कुपोषण गंभीर समस्या है। इससे बचाव के लिए अलग-अलग स्तरों पर काम करने की जरूरत है। पोषण, कृषि, फूड टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य प्रबंधन, स्वास्थ्य-शिक्षा और मजबूत राजनीतिक इच्छा जैसे हर पहलू पर काम किए जाने चाहिए। बच्चों को रोगमुक्त रखने के लिए ये उपाय तो करें ही-

    1. शिशु को कम से कम छह महीने तक ब्रेस्ट फीडिंग कराएं।।

    2. छह महीने के बाद उसे ठोस आहार देना शुरू करें। साथ ही अगले दो वर्ष तक ब्रेस्ट फीडिंग कराते रहें। धीरे-धीरे ठोस आहार की मात्रा बढ़ाएं।

    3. गर्भावस्था और स्तनपान कराने के

    दौरान स्त्री को अपने खानपान का

    विशेष ध्यान रखना चाहिए। गर्भावस्था में सामान्य से 300 कैलरीज और स्तनपान कराने के दौरान

    4. 50-550 अतिरिक्त कैलरीज की जरूरत होती है।

    5. बच्चों को स्वास्थ्यवर्धक खाना दें और जंक फूड से दूर रखें। ध्यान रहे कि वे पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।

    6. पांच साल तक के बच्चों को प्रचुर मात्रा में दूध, चीज, दालें, फल, सब्जियां, साबुत अनाज दें।

    7. बच्चों को जबरदस्ती खाना न खिलाएं।

    8. खेलकूद, पढ़ाई या टीवी देखने के दौरान उन्हें खाना न दें, इससे उन्हें गैर-जरूरी ढंग से खाने की आदत हो जाती है।'

    एक मुहिम चलाएं

    विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि बच्चों की कुल मौतों में से आधी जरूरी न्यूनतम पोषण न मिलने से होती है। मलेरिया, डायरिया, न्यूमोनिया से होने वाली आधी मौतों का कारण भी कुपोषण है। जब तक राजनैतिक दल भूख, गरीबी और अशिक्षा को अपना प्रमुख एजेंडा नहीं बनाते, बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी मसले हल नहीं हो सकते। चंद कार्यक्रमों या योजनाओं से इस समस्या को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए सरकार के साथ ही समाज को आगे आना होगा और निजी तौर पर प्रयास करने होंगे कि बच्चों को सही पोषण मिले। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं की जानकारी जरूरतमंद लोगों तक सही तरीके से पहुंचे। तभीस्वस्थ और मजबूत भारत की नींव पड़ेगी। ओवरडोज भी है खतरनाक

    एक ओर भूख और गरीबी से कुपोषण बढ़ रहा है तो दूसरी ओर खाद्य सुरक्षा की एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारत में करीब डेढ़ अरब लोग ओबेसिटी से ग्रस्त हैं या इसके करीब पहुंच रहे हेैं। अनियमित जीवनशैली और खानपान की गलत आदतों के कारण ऐसा हो रहा है। टीवी व कंप्यूटर के आगे घंटों बिताने वाले और फास्ट फूड खाने वाले बच्चों में कुपोषण अधिक है। बिना शरीर को हिलाए फास्ट फूड खाने वाले बच्चों को अधिक कैलरी मिलती है और इससे उनके शरीर में धीरे-धीरे वसा और कार्बोहाइड्रेट का जमाव होने लगता है और इससे आगे जाकर गंभीर रोग पैदा होते है। इसलिए बच्चों को उचित पोषण देने के साथ ही यह देखना भी जरूरी है कि वे आउटडोर गेम्स व व्यायाम के लिए प्रेरित हो सकें।

    मैं बच्चों से बेहद जुड़ाव महसूस करता हूं। फिल्म 'तारे जमीं पर' इसका एक उदाहरण है। इसीलिए मैं यूनिसेफ से भी जुड़ा। कुपोषण की दिशा में अभी बहुत काम किए जाने की जरूरत है। मेरा मानना है कि सही पोषण हर बच्चे का अधिकार है। हमारे देश में अन्नपूर्णा कही जाने वाली स्त्री सबको खिलाने के बाद ही खाना खाती है। लेकिन जब वह गर्भवती होती है तो परिवार का दायित्व है कि उसके खानपान का ध्यान रखे, तभी बच्चा भी स्वस्थ पैदा होगा।

    आमिर खान (अभिनेता-निर्माता, यूनिसेफ के ब्रैंड एंबेसेडर)

    (रॉकलैंड हॉस्पिटल, दिल्ली में बाल-रोग विभाग के सलाहकार डॉ. आशीष गुप्ता से बातचीत पर आधारित)

    इंदिरा राठौर

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर