चोट का करे कारगर इलाज
अक्सर चोट लग जाने पर हम उन्हीं सामान्य सी बातों पर ध्यान देते हैं, जैसा वर्षों से होता चला आ रहा है, लेकिन इस संदर्भ में कुछ मिथ भी हैं, जिन्हें जानना जरूरी है

भ्रम: कट लगने पर डेटॉल या आफ्टरशेव से साफ करना चाहिए।
हकीकत: ऐसी चोटों पर डेटॉल या कोई भी एल्कोहलिक या स्पिरिट युक्त उत्पाद दर्द व जलन पैदा कर सकता है। यह कहना है नवजात शिशु व बालरोग विशेषज्ञ डॉ. सी.एस. गांधी का। उनके अनुसार ''तेज एंटीसेप्टिक का इस्तेमाल कट जैसे घावों पर न करें। ऐसे में सबसे बेहतर है कि सेवलॉन या साधारण साबुन और पानी का इस्तेमाल किया जाए।''
भ्रम: यदि कट का स्थान पीला पड़ जाए तो वह संक्रमित हो गया है।
हकीकत: चोट में जब तक पपड़ी न पड़ जाए तब तक पीला पड़ना सामान्य बात है। इस संदर्भ में डॉ. गांधी कहते हैं, ''चोट लगने पर शरीर में मौजूद सफेद रुधिर कणिकाएं उस क्षेत्र को घेर लेती हैं, जिससे वह भाग संक्रमण से बचा रहता है।'' हालांकि पपड़ी बनने के बाद यदि पस गाढ़ा और हरा होने के अलावा बदबू आ रही है तो समझ लीजिए कि संक्रमण फैल चुका है।
भ्रम: घाव को हवा में खुला छोड़ देना चाहिए।
हकीकत: घाव में बैंडेज बांधने से वह बाहरी धूल-गंदगी से सुरक्षित रहने के साथ ही अन्य बच्चों के छुए जाने से भी बचा रहता है। डॉ. गांधी सलाह देते हैं, ''यदि घाव छोटा है तो उसे सेवलॉन या साबुन से धोने के बाद बैंड-एड लगा दें। यदि घाव गहरा है और चोट लगने से त्वचा का कुछ हिस्सा बाहर निकल गया है तो उसे साफ करने के बाद उसमें बीटाडीन जैसे एंटीबैक्टीरियल आइंटमेंट लगाकर बैंडेज से कवर करें।''
भ्रम: कट या खरोंच में खुजली का मतलब है कि वह ठीक हो रही है।
हकीकत: डॉ. गांधी कहते हैं, ''पपड़ी बनने पर उस स्थान की त्वचा एक साथ बाहर आने लगती है, जिससे रूखापन पैदा हो जाता है, जो खुजली का कारण बनता है। ऐसे में खुजली वाले स्थान पर थोड़ा मॉइश्चराइजर लगाएं।'' कभी-कभी इस खुजली का कारण संक्रमण भी हो सकता है। वह कहते हैं, ''यदि उस स्थान पर थोड़ी लालिमा या रैशेज नजर आएं तो फौरन ही डॉक्टर से सलाह लें।''
भ्रम: झटके से बैंडेज निकालना ज्यादा बेहतर रहता है।
हकीकत: तेजी से बैंडेज हटाने से कट दोबारा खुल सकता है। डॉ. गांधी कहते हैं, ''चोट को नुकसान पहुंचाने के साथ ही यह तेजी हेयर फॉलिकल्स को भी नुकसान पहुंचाती है।'' इसका सबसे बेहतर विकल्प है कि इसे नहाते समय साबुन और पानी की मदद से हटाया जाए।
भ्रम: ज्यादातर मामलों में चोट लगने पर हमेशा टिटनेस के इंजेक्शन की जरूरत होती है।
हकीकत: डॉ. गांधी कहते हैं, ''आजकल के बच्चे लगातार लगने वाले बूस्टर डोज की वजह से टिटनेस के प्रति इम्यूनाइज्ड हो जाते हैं इसलिए उन्हें अतिरक्त डोज की जरूरत नहीं होती।'' बचपन में जरूरी डीटीपीडब्ल्यू या डीटीपीए टीकाकरण के बाद पांच साल की उम्र में बूस्टर डोज और फिर दस साल में टीडैप वैक्सीन लगाई जाती है।
इला शर्मा
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