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जरूरी है हंगर

कंटेंट बेस्ड लर्निंग का जमाना नहीं रहा अब। दुनिया इंक्वायरी बेस्ड लर्निंग की ओर बढ़ रही है। स्पून फीडिंग से बाहर निकलकर अब रिजल्ट के बारे में सोचने की जरूरत है। सिर्फ नौकरी हासिल करने के लिए पढ़ाई करना संकीर्ण सोच है। 'हंगर ऑफ लर्निंग' को बनाए रखने पर जोर

By Babita kashyapEdited By: Updated: Wed, 13 May 2015 12:31 PM (IST)
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कंटेंट बेस्ड लर्निंग का जमाना नहीं रहा अब। दुनिया इंक्वायरी बेस्ड लर्निंग की ओर बढ़ रही है। स्पून फीडिंग से बाहर निकलकर अब रिजल्ट के बारे में सोचने की जरूरत है। सिर्फ नौकरी हासिल करने के लिए पढ़ाई करना संकीर्ण सोच है। 'हंगर ऑफ लर्निंग' को बनाए रखने पर जोर दे रहे हैं, थापर यूनिवर्सिटी, पटियाला के डायरेक्टर प्रो. प्रकाश गोपालन...

जिन बच्चों में हंगर ऑफ लर्निंग होती है,

उनसे सफलता अधिक समय तक दूर नहीं रह सकती। लेकिन होता यह है कि बच्चा बारहवीं क्लास तक आते-आते घर, समाज, कोचिंग के बीच पिस जाता है और उसके बाद जब हायर एजुकेशन के लिए आता है, तो उसकी सीखने की भूख मर जाती है। इस भूख को फिर से जगाना हमारे लिए बड़ी चुनौती होती है। मैं यही चाहता हूं कि प्रोफेशनल कॉलेज में आने के बाद भी हंगर ऑफ लर्निंग मरे नहीं।

स्पून फीडिंग को बाय-बाय

आज स्पून फीडिंग का जमाना नहीं है। इंक्वायरी बेस्ड लर्निंग की ओर जा रहे हैं हम। जब आप खुद से सवाल करने लगेंगे, जब आप अपने आप सीखने की कोशिश करेंगे, तो समझिए कि आप सेल्फ डायरेक्टेड लर्निंग की ओर जा रहे हैं। मैं कंटेंट बेस्ड एजुकेशन पर नहीं, बल्कि आउटकम्स पर ज्यादा जोर दे रहा हूं। क्वालिटी पर फोकस

कर रहे हैं हम।

नौकरी मिलना ध्येय नहीं

एक अच्छा इंसान बनने की प्रक्रिया है शिक्षा। ईमानदारी और इंसानियत अहम है। आपने जो नॉलेज, शिक्षा हासिल की है, वह कितने साल तक अहमियत रखती है? इसका आप समाज के हित में कैसे इस्तेमाल कर पाते हैं? यह सवाल कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। स्किल डेवलप करके नौकरी हासिल कर लेने मात्र से शिक्षा का ध्येय पूरा नहीं हो जाता। यह संकीर्ण सोच है। हर हाल में इससे ऊपर उठने का प्रयास करना चाहिए।

मोटिवेट रहना होगा

कई बार समाज और पैरेंट्स का प्रेशर बच्चों को रिसर्च की ओर नहीं आने देता। बच्चों पर बस बहुत हो गया का दबाव बढ़ जाता है और वे चाहते हुए भी रिसर्च की ओर नहीं बढ़ पाते हैं। अगर आपको रिसर्च फील्ड में आगे बढऩा है, तो अपनी थिंकिंग को बदलने नऌहीं देना है। अपनी ओरिजिनिलिटी को बनाए रखते हुए रिसर्च के लिए मोटिवेट रहना चाहिए।

ताली बजेगी दोनों हाथों से

ताली दोनों हाथों से बजती है। हमारे यहां प्राइवेट एजुकेशन इंस्टीट्यूट 'फी मॉडलÓ से चलते हैं, जबकि पश्चिमी देशों में इन्हें इंडस्ट्रीज से फंडिंग मिलती है। जब संस्थान उद्योग जगत की जरूरतें पूरी करने का वादा करते हैं, तो इंडस्ट्रीज भी रिसर्च व अन्य सुविधाओं में सहयोग करती हैं। इंडिया में भी जब इंडस्ट्री और इंस्टीट्यूशंस साथ आएंगे और अपनी मजबूती दिखाएंगे, तभी ताली बजेगी। फिर बीच का अंतर खत्म होगा।

आइडिया और प्रैक्टिकल वल्र्ड

भारत में दिख रही स्टार्ट-अप्स की लहर नए युग की शुरुआत है। पहले पैरेंट्स बच्चों से एक अदद नौकरी की अपेक्षा करते थे, लेकिन अब वे भी बच्चों की सोच को सपोर्ट कर रहे हैं। उन्हें काम करने की फ्रीडम दे रहे हैं। हमारे पास एक्टिव बिजनेस स्कूल भी हैं, जो यूथ के आइडिया को प्रैक्टिकल वल्र्ड में लाने में मदद कर सकते हैं। हमने एंटरप्रेन्योरशिप डेवलेपमेंट सेल बनाया था,

जो अब वेंचर लैब बन गया है।

तैयार हूं हर स्थिति के लिए

मैं हर वक्त हर स्थिति के लिए तैयार रहता हूं। आज भी हूं और तब भी था, जब आठवीं क्लास में था। नागपुर के छोटे से मोहल्ले में मैथ्स और साइंस में अच्छा माना जाता। मोहल्ले के बच्चों की प्रॉब्लम्स सॉल्व करता। उन्हें पढ़ाता और उनकी मदद करता। यह सिलसिला कॉलेज में जूनियर्स को पढ़ाने तक चला। यही चीज मुझे एजुकेशन के क्षेत्र में इतनी दूर तक ले आई। मुझे अपनी स्ट्रेंथ पता नहीं थी, लेकिन मैं उसी फील्ड में आ गया जो मेरी स्ट्रेंथ थी।

प्रोफाइल

1983 से 1985 : आइआइटी कानपुर से एमटेक

1986 से 1991 : परड्यू यूनिवर्सिटी, यूएसए से पीएचडी

1991 से 1993 : परड्यू यूनिवर्सिटी, यूएसए से पोस्ट डॉक्टोरल फेलो

1993 से 2005 : आइआइटी मुंबई में फैकल्टी

2005 से 2011 : आइआइटी मुंबई में डीन ऑफ स्टूडेंट अफेयर

2010 से 2011 : नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी यूएसए से ईडीपी

जनवरी 2014 से : थापर यूनिवर्सिटी पटियाला में डायरेक्टर

इंटरैक्शन : यशा माथुर