ऑप्टोमेट्रिस्ट: आंखों का रखवाला
आजकल आंखों की समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं। ऐसी स्थिति में इनकी देखभ्भाल के लिए ऑप्टोमेट्रिस्ट की डिमांड बढ़ने लगी है। ऑप्टोमेट्री से रिलेटेड कोर्स कई कॉलेज-यूनिवर्सिटी में उपलब्ध हैं। आइए जानें, कैसे इस कोर्स में एंट्री ली जा सकती है और कोर्स कंप्लीट करने के बाद किस तरह की संभावनाएं म
आजकल आंखों की समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं। ऐसी स्थिति में इनकी देखभ्भाल के लिए ऑप्टोमेट्रिस्ट की डिमांड बढ़ने लगी है। ऑप्टोमेट्री से रिलेटेड कोर्स कई कॉलेज-यूनिवर्सिटी में उपलब्ध हैं। आइए जानें, कैसे इस कोर्स में एंट्री ली जा सकती है और कोर्स कंप्लीट करने के बाद किस तरह की संभावनाएं मौजूद हैं..
आज प्रदूषण और असंतुलित खान-पान की वजह से आंखों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। आंखों की देखभ्भाल के लिए लोग मेडिकल टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में नॉर्मल फिजीशियन के अलावा, इस फील्ड में एक नए स्पेशलिस्ट का रोल उभर रहा है, जो आंखों की जांच करके चश्मा या लेंस लगाने की एडवाइस देता है, इस नए विशेषज्ञ को ऑप्टोमेट्रिस्ट कहा जाता है। ऑप्टोमेट्री अमेरिका जैसे विकसित देश में प्रेस्टीजियस और मनी अर्निंग प्रोफेशन माना जाता है। आज देश में भी बड़ी संख्या में ऑप्टोमेट्रिस्ट की डिमांड है।
एलिजिबिलिटी
12वीं साइंस से पास स्टूडेंट्स ऑप्टोमेट्री से रिलेटेड कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। ऑप्टोमेट्री में बैचलर डिग्री या बीएससी या फिर डिप्लोमा कोर्स कर सकते हैं। बैचलर डिग्री और बीएससी कोर्स के लिए बारहवीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमैटिक्स या बायोलॉजी और अंग्रेजी के साथ कम से कम 50 परसेंट मार्क्स के साथ पास होना जरूरी है। डिप्लोमा कोर्स के लिए कैंडिडेट बारहवीं पास होना चाहिए, जिसने क्लीनिकल ऑप्टोमेट्री में डिप्लोमा कोर्स किया है, वे ऑप्टोमेट्री के बैचलर डिग्री कोर्स के थर्ड ईयर में सीधे एडमिशन ले सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स दो साल का और बैचलर डिग्री का कोर्स चार साल का होता है। बैचलर डिग्री में तीन साल की पढ़ाई और एक साल की इंटर्नशिप होती है। इंटर्नशिप के तहत स्टूडेंट्स को किसी क्लीनिक या अस्पताल में आंख के डॉक्टर के अधीन काम करना होता है। इसमें एडमिशन आइसीइटी एग्जाम में पास होने के बाद ही होता है। आमतौर पर इस कोर्स में आंखों की देखभ्भाल से संबंधित विषयों को पढ़ाया जाता है। साथ ही, कस्मटर को किस तरह का चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस पहनने की सलाह दी जाए और लो-विजन डिवाइसेज एवं विजन थेरेपी, आई एक्सरसाइज आदि की ट्रेनिंग दी
जाती है।
वर्क एरिया
ऑप्टोमेट्रिस्ट या ऑप्टोमेट्रिक फिजीशियन आंखों की देखभ्भाल और आंखों की जांच में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के रखरखाव आदि के विशेषज्ञ होते हैं। सर्जरी और दूसरी बड़ी जिम्मेदारी वाले काम उनके जिम्मे नहीं होते हैं। वे सभी उपचार ऑप्टिकल उपकरणों से करते हैं। इसके अलावा, वे कलर ब्लाइंडनेस, दूर और नजदीक की कम रोशनी, मायोपिया, जेनेटिक प्रॉब्लम्स का इलाज भी करते हैं। उनका कार्य आंखों की जांच कर चश्मा या लेंस देना तो है ही, साथ ही उन्हें खुद बनाते भी हैं।
जॉब ऑप्शंस
कोर्स कंप्लीट करने के बाद ऑप्टोमेट्रिस्ट के पास जॉब ऑप्शंस की कोई कमी नहीं है। कोर्स करने के बाद स्टूडेंट्स स्वयं की प्रैक्टिस कर सकते हैं, जैसे आई सर्जन करते हैं। ऑप्थोमोलिस्ट के रूप में किसी शोरूम में काम कर सकते हैं या फिर आंखों के हॉस्पिटल में कार्य की तलाश कर सकते हैं। इसके अलावा, उनके पास ऑप्टिकल लेंस मैन्युफैक्चरिंग यूनिट आदि खोलने का भी ऑप्शन होता है। इस फील्ड से जुड़े प्रोफेशनल्स कॉन्टैक्ट लेंस, लेंस इंडस्ट्री या फिर आई डिपार्टमेंट में कार्य कर सकते हैं। कॉरपोरेट सेक्टर में आंखों से संबंधित प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी में प्रोफेशनल्स सर्विस एग्जीक्यूटिव के पद पर काम कर सकते हैं। गौरतलब है कि आंखों के डॉक्टरों को ट्रेंड असिस्टेंट की बहुत जरूरत पड़ती है, जो कुशल तरीके से चश्मा, लेंस और दूसरे नेत्र उपकरण बना सकें। इसके अलावा, आंखों के उपचार में आने वाली चीजों का रखरखाव भी इंपॉर्र्टेट होता है। सरकारी नियमों के अनुसार, ऑप्टिकल दुकानों में भी ट्रेंड ऑप्टीशियन को ही रखने का प्रावधान है, इसलिए वहां भी ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिए अवसर होता है। इस तरह देखा जाए, तो आने वाले दिनों में इस फील्ड में भरपूर नौकरियां होंगी।
सैलरी पैकेज
अगर आप किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से कोर्स करते हैं, तो शुरुआती दौर में आप 15-20 हजार रुपये प्रतिमाह सैलरी की उम्मीद कर सकते हैं। कुछ वर्ष का वर्क एक्सपीरियंस हासिल कर लेते हैं, तो सैलरी काफी अच्छी हो सकती है। इसके अलावा, आपके पास अपना कार्य शुरू करने का भी अवसर होता है।
(जागरण फीचर)