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    पश्चिमी सिंहभूम के जंगलों में पदचिह्नों और मल के सहारे होगी जानवरों की पहचान, शुरू हुआ वन्य जीव सर्वे

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 08:50 PM (IST)

    झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में वन्य जीव गणना सर्वे शुरू हो गया है। सारंडा, पोड़ाहाट, चाईबासा और कोल्हान वन प्रमंडल के जंगलों में वन कर्मी पदचिह्न, ...और पढ़ें

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    सारंडा जंगल की फाइल फाेटो।

    संवाद सहयोगी, चाईबासा। देशभर में वन्य जीवों की स्थिति का आकलन करने के उद्देश्य से 15 दिसंबर से वन्य जीव गणना सर्वे अभियान की शुरुआत की गई है। इसी क्रम में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सभी वन प्रमंडलों में भी यह अभियान शुरू हुआ है। 
     
    जिले के सारंडा, पोड़ाहाट, चाईबासा और कोल्हान वन प्रमंडल के घने जंगलों में प्रशिक्षित वन कर्मियों को तैनात किया गया है। जो प्रतिदिन जंगलों में पैदल भ्रमण कर वन्य जीवों से जुड़े महत्वपूर्ण संकेतों का अवलोकन कर रहे हैं।

     

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    तथ्यों के आधार पर तैयार हो रही सर्वे रिपोर्ट  

    सर्वे में शामिल वन कर्मी रोजाना लगभग पांच किलोमीटर पैदल चलकर जंगल के भीतर वन्य जीवों के पदचिह्न, मल, आवास, भोजन के अवशेष और अन्य प्राकृतिक संकेतों का अध्ययन कर रहे हैं। इन तथ्यों के आधार पर विस्तृत सर्वे रिपोर्ट तैयार की जा रही है। 
     
    इस अभियान में 500 से अधिक वन कर्मियों को लगाया गया है। इसके साथ ही स्थानीय जानकार लोगों और कोल्हान विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के विद्यार्थियों को भी जोड़ा गया है, ताकि उन्हें व्यवहारिक ज्ञान के साथ-साथ वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में अनुभव प्राप्त हो सके।

     

    शाकाहारी और मांसाहारी वन्य जीवों की हो रही पहचान  

    सर्वे के दौरान बाघ, हाथी, तेंदुआ, हिरण, बारहसिंघा, भालू समेत सभी प्रमुख शाकाहारी और मांसाहारी वन्य जीवों की पहचान और उपस्थिति दर्ज की जा रही है। इसके अलावा लुप्तप्राय प्रजातियों और विभिन्न पक्षी प्रजातियों पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 
     
    वन कर्मी आवश्यकता पड़ने पर वन्य जीवों के मल के सैंपल भी एकत्र कर रहे हैं, जिससे प्रजातियों की सटीक पहचान की जा सके। एकत्रित किए गए सभी आंकड़े और नमूनों का डेटा विश्लेषण देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान को भेजा जा रहा है। 

     

    पूरे झारखंड में एक साथ सर्वे अभियान चालू  

    वहां रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट इमेजिंग तकनीक की मदद से इन आंकड़ों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाएगा। यह सर्वे एटीआर-2026 की छठी गणना के तहत किया जा रहा है, जिसमें केवल बाघ ही नहीं बल्कि जंगलों में मौजूद सभी वन्य जीवों की गणना की जा रही है। 
     
    सारंडा वन प्रमंडल पदाधिकारी अभिरुप सिन्हा ने बताया कि पूरे झारखंड में एक साथ यह सर्वे अभियान चलाया जा रहा है। पश्चिमी सिंहभूम जिले के चारों वन प्रमंडलों से प्रशिक्षित कर्मी ऑनलाइन एप के माध्यम से प्रतिदिन अपनी सर्वे रिपोर्ट भेज रहे हैं।  

     

    वन्य जीव संरक्षण और प्रबंधन की प्रभावी रणनीति पर जोर  

    उन्होंने कहा कि इस सर्वे से यह पता लगाया जा सकेगा कि जंगलों में कौन-कौन सी प्रजातियां मौजूद हैं, उनके आवास और भोजन की स्थिति क्या है तथा पर्यावरण संतुलन किस अवस्था में है। इससे भविष्य में वन्य जीव संरक्षण और प्रबंधन की प्रभावी रणनीति तैयार करने में विभाग को मदद मिलेगी।
     
    हालांकि वर्तमान में जिले के जंगलों में बाघ की उपस्थिति दर्ज नहीं है, लेकिन ओडिशा के सिमलीफाल टाइगर रिजर्व से निकटता को देखते हुए इसकी संभावना से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता है।