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3000 साल पुराना है चित्रेश्वर शिव मंदिर

तीन राज्य के लोगों की आस्था का केंद्र है चित्रेश्वर शिव मंदिर फोटो 1, 2 इतिहास : तीन राज्य

By Edited By: Published: Wed, 27 Jul 2016 03:03 AM (IST)Updated: Wed, 27 Jul 2016 03:03 AM (IST)

तीन राज्य के लोगों की आस्था का केंद्र है चित्रेश्वर शिव मंदिर

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फोटो 1, 2

इतिहास :

तीन राज्यों के संगम स्थल बहरागोड़ा से 12 किमी दूर बंगाल - ओडिशा की सीमा से सटे चित्रेश्वर में भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। एक ऐसा मंदिर जहां 365 दिन पूजा करने तीनों राज्य झारखंड, बंगाल व ओडिशा से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर कब और किसने बनवाया यह बताने वाला कोई नहीं है। मंदिर से संबंधित ऐतिहासिक साक्ष्य का अभाव है। लेकिन, स्थानीय बुजुर्गों का मानना है कि लगभग 3000 हजार वर्ष पहले यहां शिव¨लग की पूजा प्रारंभ हुई थी। आजादी से पहले तक यह क्षेत्र धालभूम स्टेट के अधीन रहा। पश्चिम बंगाल के गोपीवल्लभपुर क्षेत्र के शासक और धालभूम शासक के बीच मंदिर पर अधिकार को लेकर बराबर संघर्ष होता रहता था। लोगों की मान्यता है कि दोनों के संघर्ष से उत्पन्न नाराजगी के चलते शिव¨लग दो टुकड़ों में हो गया। आज भी उसी खंडित शिव¨लग की ही पूजा-अर्चना होती है। चित्रेश्वर शिव मंदिर में स्थायी अथवा मुख्य पुजारी जैसी कोई प्रथा नहीं है। विभिन्न ब्राह्मण परिवार के पुजारी जिनके पूर्वज भी यहां पूजा-अर्चना करवाते थे, उनके द्वारा ही पूजा कार्य जारी है। यहां सात-आठ पुजारी हैं जो श्रद्धालुओं के पहुंचने पर उन्हें मंदिर में प्रवेश कराकर पूजा कराते हैं। अन्य जगहों पर श्रावण एक माह का ही होता लेकिन चित्रेश्वरधाम में यह श्रावण डेढ़ महीने का होता है, क्योंकि उड़िया और बांग्ला भाषी लोगों के पंचांग के मुताबिक हिन्दी पंचांग से लगभग 15 दिन पहले श्रावण शुरू होता है। वहीं ¨हदी मत के अनुसार पूर्णिमा से पूर्णिमा तक श्रावण का महीना होता है।

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तैयारियां :

श्रावण माह को लेकर मंदिर परिसर समेत आसपास में विशेष रूप से साफ-सफाई करायी जाती है। वैसे तो यहां पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन श्रावण में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेषकर सोमवार को श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। शिवरात्रि व गाजन पर्व के अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता है। शिवरात्रि की रात महिलाएं रातभर उपवास के साथ दीप प्रज्वलित करती हैं।

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चित्रेश्वर मंदिर तीन राज्यों के सीमांचल के लोगों के आस्था का केंद्र है। विशेष अवसरों पर तो इतनी अधिक भीड़ उमड़ती है कि हमें प्रशासन का सहयोग लेना पड़ता है। डॉ. दिनेश कुमार षाड़ंगी के कार्यकाल में यह मंदिर राज्य के पर्यटन और तीर्थ स्थल के नक्शे पर आया। पर्यटन विभाग द्वारा काफी हद तक इसे विकसित करने का प्रयास किया गया। यात्रियों के लिए भवन परिसर का पक्कीकरण किया गया और दुकानों के लिये शेड बनवाए गए लेकिन चार वर्ष से कई कार्य अधूरे हैं जैसे मुख्य द्वार जो इसकी पहचान को नया स्वरूप दे सकता है। वैसे एक राहत की बात यह है कि 40 लाख की लागत से व्यवस्थित शौचालय व शेड की स्वीकृति मिल गयी है और टेंडर भी हो गया है। बरसात के बाद काम शुरू होने की संभावना है।

-खगेन्द्र नाथ सत्पथी, सचिव, मंदिर प्रबंध समिति

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जब पहली बार पर्यटन विभाग द्वारा मंदिर और पूरे परिसर के कायाकल्प के लिये सौंदर्यीकरण शुरू किया तो काफी प्रसन्नता हुई थी। दुर्भाग्यवश ठेकेदार काम अधूरा छोड़कर फरार हो गया। मुख्य द्वार अधूरा होने से हमें तकलीफ होती है। उम्मीद है कि पिता के कार्यकाल का अधूरा कार्य मेरे कार्यकाल में पूरा हो जाएगा।

-गुहिराम बेरा, सदस्य, मंदिर प्रबंध समिति


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