सारंडा वन्यजीव अभयारण्य घोषणा के खिलाफ आदिवासियों का आक्रोश, 25 अक्टूबर को कोल्हान बंद की चेतावनी
सारंडा वन्यजीव अभयारण्य की घोषणा के विरोध में आदिवासी समुदाय आंदोलित है। ग्रामीणों ने चाईबासा में रैली निकाली और सरकार से फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की। 25 अक्टूबर को कोल्हान बंद का आह्वान किया गया है। आदिवासियों का आरोप है कि सरकार इस क्षेत्र को औद्योगिक घरानों को सौंपना चाहती है। मुख्यमंत्री सोरेन ने लोगों के अधिकारों की रक्षा का आश्वासन दिया है।

सारंडा वन्यजीव अभयारण्य घोषणा के खिलाफ आदिवासियों का आक्रोश
जागरण संवाददाता, चाईबासा। सारंडा वन्यजीव अभयारण्य घोषित किए जाने के विरोध में आदिवासी संगठन और स्थानीय ग्रामीणों का आंदोलन तेज हो गया है। बीते मंगलवार को पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय चाईबासा में सारंडा के 40 से अधिक गांवों के ग्रामीणों ने विभिन्न आदिवासी संगठनों के साथ मिलकर जन आक्रोश रैली निकाली और राज्यपाल के नाम ज्ञापन उपायुक्त को सौंपा।
ज्ञापन में सारंडा को वन्यजीव अभयारण्य बनाए जाने के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई है। यदि इस पर सरकार ने कदम नहीं उठाया तो 25 अक्टूबर को कोल्हान बंद और आर्थिक नाकेबंदी का आह्वान किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी
इस बीच सारंडा पीढ़ के मानकी लागोड़ा देवगम के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी की जा रही है। लागोड़ा देवगम ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के षड्यंत्र के तहत ही यह पूरा खेल रचा जा रहा है।
उन्होंने बताया कि 1976 में बिहार उच्च न्यायालय ने भी सारंडा को वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया था, लेकिन स्थानीय विरोध के चलते निर्णय लागू नहीं हो सका था। उसी आदेश को आधार बनाकर डा. आरके सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद यह निर्णय आया है।
अडानी समूह को सौंपने की योजना
आदिवासी मुंडा विकास समिति के केंद्रीय अध्यक्ष बुधराम लागुरी ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार हसदेव अरण्य की तर्ज पर सारंडा जंगल को भी औद्योगिक घरानों, विशेषकर अडानी समूह को सौंपने की योजना बना रही है।
उन्होंने कहा कि पहले हसदेव जंगल को सुरक्षित घोषित किया गया और बाद में वहां से आदिवासियों को खदेड़कर खनन के लिए अडानी को सौंप दिया गया। अब वही साजिश सारंडा में रची जा रही है, जिसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जाएगा।
झारखंड सरकार सारंडा के लोगों के साथ
वहीं दूसरी ओर, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते मंगलवार को कैबिनेट बैठक के बाद इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि सारंडा जंगल क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर किसी भी तरह की आंच नहीं आने दी जाएगी। हमारी मुख्य चिंता वहां के लोग हैं, जिन्होंने जंगल को बचाया है। हमारी सरकार उनके अधिकारों की रक्षा के शर्त पर कोर्ट जा रही है।
मुख्यमंत्री ने दोहराया कि उनकी लड़ाई उन नियम-कानूनों से है जो स्थानीय निवासियों को प्रताड़ित करते हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि झारखंड सरकार सारंडा के लोगों के अधिकार और अस्तित्व की रक्षा के लिए हर स्तर पर संघर्ष करेगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।