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    सारंडा सेंचुरी मामले की कल सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई, आदिवासी नेता ने सरकार पर उठाए सवाल

    Updated: Tue, 07 Oct 2025 11:03 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट में सारंडा वन्यजीव अभ्यारण्य मामले की सुनवाई होने वाली है। सरकार ने प्रभावित गांवों में आर्थिक और सामाजिक आंकलन के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है। आदिवासी पार्टी के सुशील बारला ने सरकार से सारंडा को अभयारण्य घोषित करने पर नीति स्पष्ट करने को कहा है। उन्होंने कहा कि खनन से ग्रामीणों को प्रदूषण और बंजर भूमि मिली है और अभयारण्य को लेकर भ्रम की स्थिति है।

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    सुप्रीम कोर्ट में कल होगी सारंडा सेंचुरी मामले की सुनवाई

    जागरण संवाददाता, चाईबासा। सुप्रीम कोर्ट में कल सारंडा वन्यजीव अभ्यारण्य मामले की सुनवाई होनी है । प्रभावित 56 गांवों में ग्रामसभा कर आर्थिक और सामाजिक आंकलन के आधार पर सरकार ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर ली है, जिसे 8 अक्टूबर को कोर्ट में प्रस्तुत किया जाएगा।

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    इस बीच भारत आदिवासी पार्टी के पश्चिमी सिंहभूम जिलाध्यक्ष सुशील बारला ने झारखंड सरकार से सवाल किया है कि सारंडा को वाइल्डलाइफ सेंचुरी घोषित करने को लेकर सरकार की नीति क्या है?

    उन्होंने कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह सरंडा को अभयारण्य बनाने के पक्ष में है या विरोध में। बारला ने कहा कि सारंडा एशिया का सबसे बड़ा ‘साल’ वृक्षों का वन क्षेत्र है, जो करीब 700 पहाड़ियों की श्रृंखला में फैला हुआ है।

    यहां हाथी, तेंदुआ, भालू, संभर, हिरन, मोर समेत अनेक दुर्लभ वन्य जीव पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसी प्राकृतिक धरोहर की रक्षा के लिए सारंडा को रिजर्व फॉरेस्ट घोषित किया गया था, जिसे अब वन्यजीव अभयारण्य के रूप में विकसित करने की चर्चा चल रही है।

    उन्होंने कहा कि सारंडा की गोद में स्थित एशिया प्रसिद्ध लौह अयस्क खानें — चिरिया (200 करोड़ टन से अधिक भंडार), गुवा (170.55 मिलियन टन) और किरीबुरू-मेघाहातुबुरू — सरंडा के युवाओं को रोजगार देने में विफल रही हैं।

    खनन कार्यों से यहां के ग्रामीणों को प्रदूषण, लाल पानी और लाल मिट्टी ही नसीब हुई है। गुवा माइंस के लाल पानी से जोजोगुटू, सेतारूईया, जमकुडीया, जबकि चिरिया माइंस के पानी से दुबिल और हेन्देदिरी गांव की बहुफसली कृषि भूमि बंजर हो चुकी है।

    बारला ने कहा कि खदान प्रबंधन से मुआवजा और रोजगार की मांग वर्षों से की जा रही है, लेकिन अबतक ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन ही मिला है।

    उन्होंने कहा कि चिरिया और गुवा माइंस की स्थापना क्रमशः 1918 और 1970 में हुई थी, लेकिन आज भी आसपास के गांवों में मौलिक सुविधाओं का घोर अभाव है। क्षेत्र के अधिकांश बच्चे और महिलाएं मलेरिया और एनीमिया से पीड़ित हैं।

    खनन गतिविधियों से सारंडा की जैव विविधता को गंभीर नुकसान हुआ है। पिछले तीन माह में चार से अधिक हाथियों की मौत हो चुकी है। बारला ने कहा कि साल वृक्षों का यह विशाल वन “ग्रीन स्टील” के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह भी अब विलुप्ति की कगार पर है।

    बारला ने कहा कि सारंडा को अभयारण्य बनाने को लेकर सरकार की नीयत साफ नहीं है। यदि प्रस्ताव विभागीय अधिकारियों के माध्यम से दिया गया है तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर अमल में देरी क्यों की जा रही है, सरकार को यह बताना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एक ओर अभयारण्य का प्रस्ताव देती है और दूसरी ओर ग्रामीणों को भ्रमित कर विरोध भी करवाती है।

    उन्होंने कहा कि सरकार को सारंडा के ग्रामीणों को यह स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए कि अभयारण्य बनने से किन गांवों का विस्थापन होगा, जीविकोपार्जन पर क्या असर पड़ेगा, और राजस्व ग्रामों के लोगों के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

    बारला ने कहा कि सारंडा के आदिवासी और वन्यजीवों का आपसी संबंध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दोनों है। आदिवासी वर्ष भर शिकार नहीं करते, केवल अपने पारंपरिक पर्व-त्योहारों पर ही सीमित रूप में शिकार करते हैं।

    वे शिकार से पहले पहाड़ देवता से प्रार्थना करते हैं कि गाभिन जानवर सामने न आएं, और यदि गलती हो जाए तो क्षमा करें। आदिवासी फलदार वृक्षों को नहीं काटते और उनके फलों का कुछ हिस्सा पशु-पक्षियों के लिए छोड़ देते हैं।

    उन्होंने कहा कि अभयारण्य को लेकर सही जानकारी नहीं मिलने के कारण ग्रामीणों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खनन कंपनियां, लकड़ी माफिया और कुछ राजनीतिक दल अपने निजी स्वार्थों के लिए अभयारण्य के खिलाफ माहौल बना रहे हैं।

    हाल में छोटा नागरा और रोवाम में आयोजित सभाओं में ग्रामीणों को चारपहिया वाहनों से लाया गया, जिसका खर्च किसने उठाया, यह भी जांच का विषय है।

    अंत में सुशील बारला ने कहा कि सरंडा को बचाना है तो जैव विविधता को ध्यान में रखते हुए सतत विकास की नीति अपनानी होगी। उन्होंने बताया कि सरंडा वाइल्डलाइफ सेंचुरी मामले की सुनवाई बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में होनी है।