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    गरीबी ने छीन लिया बेटा, व्यवस्था ने छीन ली इंसानियत : थैले में मासूम का शव भरकर घर लौटा पिता, जानिए एक बेबस पिता की दुख भरी कहानी

    Updated: Fri, 19 Dec 2025 09:22 PM (IST)

    पश्चिमी सिंहभूम जिले के एक गांव में, गरीबी से मजबूर एक पिता को अपने पांच महीने के मृत बेटे का शव प्लास्टिक थैले में भरकर घर लौटना पड़ा। बच्चे का इलाज ...और पढ़ें

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    प्‍लास्टिक बैग में मासूम बेटे का शव लेकर चाईबासा सदर अस्‍पताल से अपने घर पहुुंचा लाचार पिता।

    संवाद सूत्र, नोवामुंडी। गरीबी जब इंसान की असहायता को उसकी नियति बना दे, तब ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जो पूरे समाज को झकझोर देती हैं। पश्चिमी सिंहभूम जिले के बड़ा बालजोड़ी गांव से सामने आई यह घटना भी ऐसी ही है, जहां एक गरीब पिता को अपने पांच महीने के बेटे का शव प्लास्टिक थैले में भरकर, वह भी भूखे-प्यासे, चाईबासा सदर अस्पताल से घर लौटना पड़ा। 
     
    जेब में केवल एक सौ रुपये और वही रुपये भी बस किराए में खर्च हो गए। यह दर्दनाक घटना शुक्रवार शाम की है। बड़ा बालजोड़ी गांव निवासी डिंबा चातोंबा का पांच महीने का बेटा पिछले कई दिनों से बीमार था। 
     
    आर्थिक तंगी के कारण परिवार पहले गांव के ओझा-गुनी के चक्कर में पड़ा, लेकिन बच्चे की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। हालात तब बदले जब गुरुवार को एक समाजसेवी ने बच्चे के इलाज का भरोसा दिलाते हुए एम्बुलेंस की व्यवस्था की। 

    चाईबासा सदर अस्‍पताल में मासूम था भर्ती 

    एम्बुलेंस से बच्चे को पहले जगन्नाथपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया, जहां प्राथमिक इलाज के बाद चिकित्सकों ने उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए चाईबासा सदर अस्पताल रेफर कर दिया। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। चाईबासा पहुंचते ही इलाज के दौरान बच्चे ने दम तोड़ दिया। 

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    यहीं से डिंबा चातोंबा की असहायता और पीड़ा की असली परीक्षा शुरू हुई। बेटे की मौत के बाद उनके पास न तो शव ले जाने के लिए पैसे थे, न कोई साधन और न ही ऐसा कोई मोबाइल फोन, जिससे वह अपने परिजनों या परिचितों को सूचना दे पाते। 

    पिता के जेब में थे मात्र सौ रुपए, किराए में हो गए खर्च  

    मजबूर पिता ने बेटे के छोटे से शव को एक प्लास्टिक थैले में रखा और साधारण बस में बैठकर गांव की ओर निकल पड़ा। बताया जाता है कि डिंबा चातोंबा के पास उस समय केवल 100 रुपये थे, जो उन्होंने बस के किराए में खर्च कर दिए। 
     
    पूरे सफर के दौरान वह भूखे-प्यासे रहे। यह दृश्य न केवल प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि समाज की सामूहिक संवेदनशीलता को भी कटघरे में खड़ा करता है। 

    परिजनों का रो रोकर बुरा हाल 

    घर पहुंचने से पहले ही इस हृदयविदारक घटना की जानकारी एक परिचित व्यक्ति के माध्यम से समाजसेवी गौतम मिंज और पूर्व विधायक सह झारखंड आंदोलनकारी संयुक्त मोर्चा के सलाहकार मंगल सिंह बाबोंगा तक पहुंची। दोनों ने बताया कि यह घटना पूरी तरह सत्य है और गांव में इसका गहरा असर पड़ा है।

    इधर, गांव में बेटे की मौत की खबर सुनते ही पत्नी पेलोंग चातोंबा का रो-रोकर बुरा हाल है। शुक्रवार शाम तक गांव के लोग डिंबा चातोंबा के घर के पास एकत्र होकर शव के पहुंचने का इंतजार करते रहे। हर आंख नम थी और हर चेहरा सवाल कर रहा था, क्या यही हमारी व्यवस्था है?