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    मृत नवजात हाथी को था एनीमिया, नहीं सह पाया प्रहार

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 02 Nov 2020 07:28 PM (IST)

    चाईबासा वन क्षेत्र के तांतनगर प्रखंड अंतर्गत जावबेड़ा जंगल के पास तीन माह के हाथी के बच्चे की मौत की विभागीय जांच शुरू हो गई है। शिशु हाथी की मौत किन परिस्थितियों में हुई इसको लेकर जंगल क्षेत्र के आसपास के ग्रामीणों का बयान वन विभाग की टीम ने लिया है।

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    मृत नवजात हाथी को था एनीमिया, नहीं सह पाया प्रहार

    सुधीर पांडेय, चाईबासा : चाईबासा वन क्षेत्र के तांतनगर प्रखंड अंतर्गत जावबेड़ा जंगल के पास तीन माह के हाथी के बच्चे की मौत की विभागीय जांच शुरू हो गई है। शिशु हाथी की मौत किन परिस्थितियों में हुई इसको लेकर जंगल क्षेत्र के आसपास के ग्रामीणों का बयान वन विभाग की टीम ने लिया है। मृत शिशु हाथी नर था। वहीं, शव का पोस्टमार्टम करने वाले पशु चिकित्सक डा. बबलू सुंडी ने बताया कि उसकी मौत रविवार की अहले सुबह हुई है। ग्रामीणों ने सुबह करीब 8.30 बजे इसकी सूचना वन विभाग को दी। वन विभाग के निर्देश पर स्वयं भी घटनास्थल गए थे। चूंकि वहां लोगों की भीड़ ज्यादा हो गई थी इसलिए शव को वाहन में लादकर रविवार की शाम को ही चाईबासा स्थित वन प्रशिक्षण केंद्र ले आया गया था। केंद्र परिसर में ही पोस्टमार्टम करने के बाद शव को जेसीबी से गड्ढा खोदवाकर जमीन में दफन कर दिया गया। पोस्टमार्टम के दौरान उसकी नाभि में संक्रमण पाया गया है। यह संक्रमण अंदर तक चला गया। हाथी के शरीर में खून की भी कमी थी। इससे प्रतीत होता है कि वो एनीमिया से ग्रस्त था। इस कारण शरीर कमजोर था। तालाब में उतरने के दौरान हाथियों के बीच हुए संघर्ष के दौरान किसी हाथी के प्रहार से चोटिल हो गया था। चोट अंदरुनी होने के कारण शरीर के भीतर रक्तस्त्राव पाया गया है। कमजोर होने के कारण नन्हा हाथी प्रहार को सह नहीं पाया होगा और गिरकर मर गया।

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    2019-20 में पश्चिमी सिंहभूम में 10 हाथियों की जा चुकी जान

    पश्चिमी सिंहभूम जिला हाथियों के लिए सुरक्षित जोन नहीं रह गया है। जंगल क्षेत्र में लगातार हाथियों की मौत अलग-अलग कारणों से हो रही है। 2019-20 में जिले में कुल 10 हाथियों की मौत अब तक हो चुकी है। इनमें दो शिशु हाथी शामिल हैं। हाथियों की लगातार हो रही मौत इलाके के लिए चिता का विषय बना हुआ है। वन्य जीव प्रेमियों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो एक दिन ऐसा आयेगा जब यह खूबसूरत जीव विलुप्त हो जाएगा। हमारी आने वाली संतानें इन्हें किताबों व दीवारों पर बनी पेंटिग में ही देख पाएंगी।

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    यूं ही मरते रहे हाथी तो एक दिन दीवारों पर पेंटिग में ही नजर आएंगे

    वन्य जीव प्रेमी आनंद कहते हैं कि अभी आठ अक्टूबर को ही वाइल्ड लाइफ वीक मनाया गया। वन विभाग ने हाथियों की पेंटिग जगह-जगह दीवारों पर उकेर कर इनके संरक्षण का संदेश दिया मगर हकीकत यह है कि वन विभाग को धरातल पर जितना सक्रिय और मुस्तैद होना चाहिए उतना दिखता नहीं है।

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    हाथियों के विचरण की सख्त निगरानी जरूरी : डा. बबलू सुंडी

    चाईबासा क्षेत्र में हाल में मरे चार हाथियों का पोस्टमार्टम करने वाले पशु चिकित्सक डा. बबलू सुंडी कहते हैं कि हाथियों की मौत की कई वजह हैं। एक वजह वन कर्मियों की सुस्ती भी है। जिन इलाकों में हाथियों का विचरण ज्यादा होता है, वहां सतत निगरानी की आवश्यकता है। विभाग आज भी पारंपरिक तरीके अपनाकर हाथियों को जंगल की ओर खदेड़ते हैं। इससे उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो रहा है। क्षेत्र में हाथियों की दैनिक क्रियाओं पर नजर रखने की जरूरत है। इसके लिए विभाग को तकनीक का सहारा लेना होगा। कई बार हाथी चोटिल हो जाते हैं। इसका फायदा उठाकर तस्कर हाथी दांत के लिए उनकी हत्या कर देते हैं। मझगांव में सितंबर माह में करंट लगाकर हाथी को मार दिया गया था। वहां विद्युत प्रवाहित तार की जानकारी वन विभाग को होती तो घटना को रोका जा सकता था।

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    जांच समिति ने अभी तक नहीं सौंपी रिपोर्ट

    पश्चिमी सिंहभूम में हाथियों की मौत की जांच के लिए राज्य स्तर पर एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन हुआ था। एक माह से ज्यादा समय हो गया मगर समिति ने अभी तक अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को नहीं सौंपी है। समिति के सदस्य पोड़ाहाट डीएफओ नीतिश कुमार का कहना है कि सभी डीफओ ने अपने-अपने विभाग से संबंधित दस्तावेज जमा किए हैं। विभाग सभी का अध्ययन कर रहा है। जांच पूरी होने के बाद रिपोर्ट सरकार को भेजी जाएगी। रही बात हाथियों की मौत की तो यह निश्चित रूप से चिता का विषय है। हम लोग हर पहलू को देख रहे हैं।