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    सोनम वांगचुक की रिहाई और सारंडा वन के संरक्षण को ले बुलंद की आवाज, झारखंड पुनरुत्थान अभियान ने राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन

    Updated: Tue, 07 Oct 2025 02:26 PM (IST)

    गैर राजनीतिक सामाजिक संगठन झारखंड पुनरुत्थान अभियान ने मंगलवार को राष्ट्रपति के नाम एक चार सूत्री मांग पत्र उपायुक्त पश्चिम सिंहभूम के माध्यम से भेजा है। पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक मामले की न्यायिक जांच सारंडा वन क्षेत्र का संरक्षण झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मान तथा सीएनटी/एसपीटी एक्ट के अक्षरशः पालन की मांग की है।

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    झारखंड पुनरुत्थान अभियान ने राष्ट्रपति के नाम एक चार सूत्री मांग पत्र उपायुक्त के माध्यम से भेजा है।

    जागरण संवाददाता, चाईबासा। गैर राजनीतिक सामाजिक संगठन झारखंड पुनरुत्थान अभियान ने मंगलवार को राष्ट्रपति के नाम एक चार सूत्री मांग पत्र उपायुक्त, पश्चिम सिंहभूम के माध्यम से भेजा है।

    इसके पहले एसडीओ कार्यालय के सामने धरना-प्रदर्शन किया गया । इस दौरान पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक मामले की न्यायिक जांच, सारंडा वन क्षेत्र का संरक्षण, झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मान तथा सीएनटी/एसपीटी एक्ट के अक्षरशः पालन की मांग की है।

    अपने संबोधन में नेतृत्वकर्ता सन्नी सिंकु, पूर्व विधायक मंगल सिंह बोबोंगा व अमृत मांझी ने कहा कि

    देश के प्रमुख पर्यावरणविद् एवं शिक्षाविद् रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक का देश के प्रति योगदान अतुलनीय है।

    ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत उनकी गिरफ्तारी पर न्यायिक जांच कराई जानी चाहिए।  यदि वे निर्दोष पाए जाते हैं तो उन्हें बिना शर्त रिहा किया जाना चाहिए।

    सारंडा वन क्षेत्र पर सरकार की भूमिका पर सवाल

    संगठन ने सारंडा वन क्षेत्र को वन्य आश्रयणी घोषित करने को लेकर सरकार की मंशा और जिला प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाया है।

    प्रदर्शनकारियों ने कहा कि राष्ट्रीय हरित क्रांति अभिकरण के निर्देशों की अवमानना से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से जवाब मांगा था।

    इसके बावजूद राज्य सरकार की समिति द्वारा 30 सितंबर और 2 अक्टूबर को किए गए सारंडा भ्रमण को महज औपचारिकता बताया गया है।

    सारंडा के आदिवासी और अन्य परंपरागत वनवासी भय और भ्रम की स्थिति में हैं और प्रशासन उनके बीच संवाद स्थापित करने में विफल रहा है।

    झारखंड पुनरुत्थान अभियान ने सुझाव दिया कि उपायुक्त को 1895-97 की क्राबेन सेटलमेंट रिपोर्ट और कोल्हान क्षेत्र के ऐतिहासिक वन संघर्षों का अध्ययन करना चाहिए।

    संगठन ने स्पष्ट किया कि वह खनन के विरोध में नहीं, बल्कि सुरक्षित व पर्यावरण-संतुलित खनन नीति का समर्थन करता है।

    झारखंड आंदोलनकारियों के चिह्नितीकरण की मांग

    संगठन ने झारखंड सरकार से मांग की है कि झारखंड आंदोलन में सक्रिय रहे ऐसे आंदोलनकारियों का भी चिह्नितीकरण किया जाए, जिन पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है।

    साथ ही उनके परिजनों को शैक्षणिक योग्यता के अनुसार सरकारी नियुक्तियों में प्राथमिकता देने और योग्य आंदोलनकारियों को राज्य बोर्ड-निगमों में अवसर प्रदान करने की भी मांग की गई है।

    सीएनटी-एसपीटी एक्ट के सख्त अनुपालन की मांग

    कहा गया कि सरकार को सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट की मूल भावना का अक्षरशः पालन सुनिश्चित करने के लिए सभी जिलों के उपायुक्तों को निर्देश देना चाहिए।

    संगठन ने आरोप लगाया कि पश्चिम सिंहभूम में एनएच-75ई चाईबासा मार्ग, 320जी जगन्नाथपुर बाइपास और रेलवे ओवरब्रिज निर्माण के लिए रैयतों की बहुफसली भूमि अधिग्रहण में असंवैधानिक प्रक्रिया अपनाई जा रही है।

    ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि कोल्हान अधीक्षक के पद पर स्थायी अधिकारी की नियुक्ति की जाए, क्योंकि यह पद कोल्हान विनियमों के तहत अत्यंत महत्वपूर्ण है।

    संगठन ने यह भी सुझाव दिया कि जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (DMFT) की राशि का उपयोग

    खनन प्रभावित ग्रामीणों के पुनर्वास,कुपोषित बच्चों के लिए क्रेच और प्ले स्कूल की स्थापना,

    तथा जलवायु प्रदूषण नियंत्रण योजनाओं में प्राथमिकता के आधार पर किया जाए।

    कोल्हान के जल, जंगल और जमीन की रक्षा जरूरी

    कोल्हान के आदिवासी समाज के लिए साल का पेड़ सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक आधार स्तंभ है। इसलिए सारंडा क्षेत्र को लेकर कोई भी निर्णय स्थानीय जनभावनाओं और परंपरागत अधिकारों को ध्यान में रखकर ही लिया जाना चाहिए।

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    संगठन ने आग्रह किया कि राष्ट्रपति और राज्य सरकार इन मांगों पर समुचित कार्रवाई कर संगठन को अवगत कराए।