Jharkhand News: गैर आदिवासी से शादी करने पर जाति के लिए आवेदन पर मानकी-मुंडा नहीं करेंगे अनुशंसा
Jharkhand News पश्चिमी सिंहभूम के मझगांव में आदिवासी हो समाज महासभा केंद्रीय समहित के दो दिवसीय वार्षिक अधिवेशन का आयोजन किया गया था। रविवार को इस आयो ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, चाईबासा: आदिवासी 'हो’ समाज में धर्मांतरित एवं गैर आदिवासी से शादी करने पर मुंडा-मानकी जाति के लिए आवेदन पर अनुशंसा नहीं करेंगे।
यह निर्णय रविवार को पश्चिमी सिंहभूम जिले के मझगांव के घोड़ाबांधा में आदिवासी 'हो' समाज महासभा केंद्रीय समिति के दो दिवसीय वार्षिक अधिवेशन सह समापन सत्र में लिया गया।
अध्यक्ष मुकेश बिरुवा की अध्यक्षता में सम्पन्न द्वितीय दिवस के द्वितीय सत्र के खुला सत्र में 'बागे-बापागे' (पति-पत्नी के बीच संबंध-विच्छेद), धर्मांतरण, परस्पर सामाजिक सहयोग और सामाजिक एकता एवं आपसी भाईचारे पर विशेष चर्चा की गयी।
केंद्रीय मुंडा मानकी संघ की ओर से गणेश पाठ पिंगुवा ने समाज से कहा कि गैर आदिवासी से शादी करने पर समाज की ओर से उन्हें जाति प्रमाण पत्र के आवेदन पर अनुशंसा मानकी-मुंडा नहीं करेंगे। इस निर्णय का समाज सख्ती से पालन करेगा।
समापन सत्र में लक्ष्मीनारायण लागुरी, मानकी मुंडा संघ अध्यक्ष गणेश पाट पिंगुवा, मोनाचंद्र सिंह संवैया, दामोदर सिंह सिंकु, देवेंद्र नाथ चंपिया, भूषण पाट पिंगुवा, इपिल समाड उपस्थित रहे।
वहीं गब्बर सिंह हेम्ब्रोम, सुरेंद्र पूर्ति, बिरसिंह बिरुली, गोविंद बिरुवा, अंजू सैमड, इंदु तिऊ, रमेश जेराई, विनीता पुरती, चैतन्य कुंकल, मानसिंह समाड, विपिन चंद्र तामसोय, रमेश बालमुचू भी समापन सत्र में उपस्थित रहे।
हरीश चंद्र समड, छोटेलाल तामसोय,शेर सिंह बिरुवा, बहालेन चंपिया, लक्ष्मण बांकिरा, भूषण लागूरी, डौरा पिंगुवा, सुनील हेम्ब्रोम, सुरेंद्र पिंगुआ, सामु लागूरी, सतीश समड, अनिल चातर, सिकंदर हेम्ब्रोम, कालीचरण बिरुवा आदि समाज के सैकड़ो लोग इस अवसर पर उपस्थित थे।
एरे-बोंगा के बिना शादी को मान्यता नहीं मिलेगी
अधिवेशन के दौरान ही समाज के महत्वपूर्ण निर्णयों को लिपिबद्ध करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए निर्णय लिया गया कि एरे बोंगा में ही शादी की तिथि तय की जाएगी।
अधिवेशन में कहा गया कि आदिवासी हो समाज में बाला के रूप में सगाई होने के पश्चात, लड़का और लड़की के घर की ओर जाने की प्रक्रिया में जो भी ग्रह नक्षत्र या अपशगुन दिखता है, उसे पारंपरिक एरे-बोंगा से समाप्त करने की परंपरा है।
हालिया दिनों में इस परंपरा का समाज के लोगों के द्वारा अनुपालन नहीं किया जा रहा। वार्षिक अधिवेशन की प्रतिनिधि सभा ने आदिवासी हो समाज में एरे-बोंगा को शादी की आवश्यक गतिविधि के रूप में अनुमोदित किया।
यानी आदिवासी हो समाज की शादी के अनुष्ठानों में यह अनुष्ठान आवश्यक है। इस अनुष्ठान को किये बगैर आदिवासी हो समाज की शादी मान्य नहीं होगी। यह अनुष्ठान वर और वधु दोनों के गांव के बीच के जगहों पर संपन्न की जाएगी।
'हो’ समाज की शादी में बाराती नहीं बल्कि सराती ( 'हो’ भाषा में सुरतुली कहते हैं) जाएंगे। यानी लड़के वाले लड़की के यहां उन्हें अपने साथ लाने के लिए जाएंगे जिसमें वर छोड़ कर नजदीकी पारिवारिक रिश्ते वाले लोग गांव से जाएंगे। हो भाषा में इसे ओर-एरा कहते हैं।
'हो’ समाज की शादी में गैर आदिवासी पुजारी वर्जित
पारंपरिक शादी को अपनाते हुए यह तय हुआ कि शादी के मंडप में किसी भी पुजारी से पूजा विधि 'हो’ समाज में नहीं होगी अर्थात अन्य समाज के पुजारियों से कराना वर्जित होगा। चूंकि सभी विधियां पारंपरिक तरीके से संपन्न होती है, उसमें किसी पुजारी की मान्यता नहीं है।
'हो’ समाज में सामाजिक रीति रिवाज की इस विधि को महासभा के वार्षिक अधिवेशन में आम लोगों एवं 'से' समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा सर्व सहमति से अनुमोदित किया गया और इसी विधि को हो समाज की 'शादी की विधि' के रूप में माना और समझा जाएगा।

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