Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'हो' समुदाय में अनूठी है जीवनसाथी चुनने की परंपरा, शादी के लिए लड़कों को देना पड़ता है 'गनोंग' के रूप में दहेज

    By Jagran NewsEdited By: Roma Ragini
    Updated: Sat, 11 Feb 2023 03:55 PM (IST)

    आदिवासी ‘हो’ समुदाय माघे पर्व को सप्ताह भर मनाते हैं। इस अवसर पर आसपास के गांवों के रहने वाले स्वजातीय बंधुओं को आमंत्रित किया जाता है। जिसके बाद लड़का पक्ष के गनोंग देने के बाद शादी तय कर दी जाती है।

    Hero Image
    हो समुदाय में लड़के देते हैं गनोंग के रूप में दहेज

    दिनेश शर्मा, चक्रधरपुर। भारत में महिलाओं ने शिक्षा और रोजगार में सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं लेकिन आज भी समाज में लड़की पक्ष को दहेज देना पड़ता है लेकिन झारखंड के सिंहभूम जिले के 'हो' आदिवासी समुदाय की शादी की परंपरा अनोखी है। इतना ही नहीं, इस समुदाय में लड़कों को ही दहेज देना पड़ता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हर पर्व-त्योहार मनाने का उद्देश्य परिवार-समाज में उत्साह का संचार करना होता है। इसके अलावा इसके माध्यम से समाज-संस्कृति की परंपरा जीवित रखने और इससे नई पीढ़ी को अवगत कराया जाता है। कुछ इसी तरह का माघे या मागे पर्व है। आस्था और विश्वास के साथ आदिवासी ‘हो’ समुदाय माघे पर्व को अनोखे ढंग से सप्ताह भर मनाते हैं।

    15 जनवरी से माघे पर्व प्रारंभ होता है और अप्रैल के अंत तक चलता है। माघे पर्व की कोई निश्चित तारीख नहीं होती। ग्रामीण गांव के मुंडा की अध्यक्षता में बैठक कर पर्व की डेट तय करते हैं। ‘हो’ समुदाय के लिए माघे पर्व सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है। इस अवसर पर आसपास के गांवों के रहने वाले स्वजातीय बंधुओं को आमंत्रित किया जाता है।

    लड़का देता है गाय और बैल

    पर्व के पहले दिन को ‘जाएर जाते’ कहा जाता है, जिसमें बकरा या मुर्गा-मुर्गी की पूजा करके जाहेरस्थान का शुद्धीकरण करके पर्व को आमंत्रित किया जाता है। 'हो' समाज में इस तरह के विवाह को राजी-खुशी विवाह भी कहते हैं। विवाह के बाद लड़का पक्ष को ‘गोनोंग’ स्वरूप गाय, बैल, हड़िया देना पड़ता है। गोनोंग के बाद दोनों पक्ष मिलकर विवाह को मान्यता देते हैं।

    दूसरे दिन आते इली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन समाज के लोग दिऊरी (पुजारी) के आंगन में भूमि पर इंडिया डालकर सामूहिक पूजा-अर्चना करके अपने पूर्वजों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। राजी-खुशी विवाह को सामाजिक मान्यता देते हैं। दहेज प्रथा के विपरीत लड़का पक्ष को ही ‘गोनोंग’ देना पड़ता है।

    सात रात तक होता है उत्सव

    माघे पर्व का चौथा दिन गुरीई के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घर और आंगन में गोबर से लिपाई की जाती है। पांचवां दिन मागे पर्व का सबसे अहम दिन होता है। इस दिन सभी लोग नृत्य संगीत से रात भर झूमते रहते हैं। लगातार सात रात नृत्य-संगीत का कार्यक्रम चलता है, जबकि दिन को अपना काम करते हैं।

    रात में युवक पूजा स्थल पर सामूहिक पूजा करते हैं। मागे पर्व के इस पवित्र दिन को 'मिलन पर्व' भी कहा जाता है। छठवें दिन जातरा पर्व के रूप में मनाया जाता है। सातवां दिन ‘हरमागैया’ के रूप में मागे पर्व का समापन किया जाता है। हरमागैया में ‘बच्चे लाठी-डंडा लेकर गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक शोर मचाते हुए मुर्गा-मुर्गी को खदेड़ते हैं। युवतियां स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सब कदम से कदम मिलाकर नृत्य करते हैं।