तिलक लगा शिष्यों ने किया गुरु का सम्मान
गुरु पूर्णिमा का महत्व सदियों से है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को नमन करते हैं और उन्हें गुरु दक्षिणा स्वरूप उपहार देते हैं।
जागरण संवाददाता, सरायकेला : गुरु पूर्णिमा का महत्व सदियों से है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं को नमन करते हैं और उन्हें गुरु दक्षिणा स्वरूप उपहार देते हैं। वहीं गुरु भी शिष्य के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशीर्वाद देकर कृतार्थ करते हैं। स्थानिय सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय में मंगलवार को गुरु पूर्णिमा के मौके पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया इस दौरान स्कूल की छात्र-छात्राओं ने अपने गुरुवों का अक्षत व तिलक लगाकर सम्मान किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से स्कूल के प्राचार्य श्री प्रसाद महतो उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ महर्षि व्यास के चित्र पर माल्यापर्ण कर किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महतो ने कहा कि गुरु-शिष्यों के जीवन में अंधकार को मिटाते हुए प्रकाश लाते हैं। विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष रामानाथ आचार्य ने कहा कि गुरु शिष्य की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। गुरु ही शिष्य का पथ प्रदर्शक होता है इसलिए गुरुओं का सदैव सम्मान करना चाहिए। प्राचार्य श्री प्रसाद महतो ने कहा की जगत गुरु महर्षि वेदव्यास के जन्म उत्सव को गुरु पूर्णिमा के रूप मे मनाया जाता है क्योंकि वेदव्यास जी ने ही भगवान श्री कृष्णा के उपदेशों को भागवत गीता में संकलन किया इतना ही नहीं वेद का विस्तार कर चार भागों मे बांटा व 18 पुराण की भी रचना वेदव्यास ने ही की। इस दृष्टि से ही उन्हें विश्व के गुरु की संज्ञा दी गई है। गुरु का महत्व भारतीय संस्कृति में ईश्वर से भी बढ़कर होता है। गुरु की कृपा से ही मानव का जीवन सार्थक होता है। गुरु के बिना मानव पशु के समान हो जाता है। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए गुरुजनों की बातों को अमल में लाना होगा। जो गुरु के लिए सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा है। मौके पर पार्थ सारथी आचार्य के अलावा अन्य उपस्थित थे।
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