दिव्यांगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए गुलशन लोहार
रमेश सिंह मनोहरपुर कहावत है कि हौसले से उड़ान भरी जाती है। इस कहावत को चरितार्थ
रमेश सिंह, मनोहरपुर : कहावत है कि हौसले से उड़ान भरी जाती है। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है मनोहरपुर के दिव्यांग गुलशन लोहार ने। पश्चिमी सिंहभूम जिले के मनोहरपुर प्रखंड के छोटे से गांव बरंगा के लोहार टोला में रहने वाले 33 वर्षीय गुलशन लोहार के जन्म से दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद विकलांगता को उन्होंने कभी अपनी मंजिल का रोड़ा बनने नहीं दिया। दिव्यांग गुलशन लोहार की हिम्मत, हौसला और मंजिल तक पहुंचने का कठिन सफर आज अन्य दिव्यांगों के लिए प्रेरणा बन गया है। वर्ष 2017 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित जन्म से दोनों हाथों से पूर्णत: दिव्यांग वर्तमान में उत्क्रमित उच्च विद्यालय में एक शिक्षक के तौर पर कार्यरत 33 वर्षीय गुलशन लोहार की अबतक की कहानी दिव्यांगों के लिए प्रेरणा का विषय है। गुलशन के जन्म से दोनों हाथ नहीं हैं। बचपन से वे दोनों पैर से ही दोनों हाथ का काम लेते हैं। कोरोना वायरस को लेकर जारी लॉकडाउन में स्कूल की छुट्टी में भी वह बच्चों को घर से ही शिक्षा बांटने का काम कर रहे हैं। बच्चों को लैपटॉप से कंप्यूटर की भी शिक्षा दे रहे हैं। बच्चे भी ऐसे शिक्षक को पाकर अपने को धन्य मानते हैं। गुलशन ने पैरों के सहारे एमए, बीएड तक की शिक्षा प्राप्त कर ली है। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण जनप्रतिनिधि व प्रशासन की पहल पर गुलशन को सेल चिड़िया की ओर से सीएसआर के तहत गांव में ही उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा में बच्चों को शिक्षा देने का काम दिया गया। जिसके एवज में उन्हें प्रतिमाह 12 हजार रुपये मेहनताना सेल चिड़िया से मिलता है। जिससे गुलशन अपना व अपने परिवार का कुछ ख्याल रख पाते हैं।
शिक्षा के प्रति समर्पण ने इस मुकाम तक पहुंचाया
गुलशन लोहार के शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना ने ही उन्हें दिव्यांग होने के बावजूद शिक्षा ग्रहण करने व शिक्षा बांटने का गुण सिखाया। उत्क्रमित उच्च विद्यालय बरंगा में अतिरिक्त शिक्षक के रूप में कार्यरत गुलशन लोहार लॉकडाउन में स्कूल बंद रहने के बावजूद शिक्षा कार्य को अल्पविराम नहीं दे सके और लॉकडाउन में अपने घर में ही उन्होंने निश्शुल्क कोचिंग सेंटर चालू कर बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। सारंडा के बीहड़ों के मध्य अवस्थित घर में ही वे बच्चों को लैपटॉप से कंप्यूटर का ज्ञान भी दे रहे हैं। शिक्षा को बनाया हथियार
दोनों हाथ नहीं होने से मेरे पास पढ़ाई के सिवाय कोई चारा नहीं था। इसलिए मैंने शिक्षा को हथियार बनाया। दोनों हाथ नहीं रहने के कारण पैरों से ही हाथ का काम लिया। पैर से ही लिखाई का काम किया। एमए, बीएड तक की पढ़ाई पूरी की। गुलशन लोहार अन्य दिव्यांगों को संदेश देते हुए कहते हैं कि दिव्यांग हिम्मत न हारें। मेहनत करें, स्वयं खुद का हौसला बढ़ाएं। सफलता जरूर मिलेगी।
- गुलशन लोहार, दिव्यांग शिक्षक, बरंगा, मनोहरपुर प्रखंड।