Paschimi Singhbhoom: लाल आतंक का खौफ खत्म, नक्सल प्रभावित गांवों में लौट रही जिंदगी, पर्यटकों से क्षेत्र गुलजार
झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम जिला कभी माओवाद का गढ़ कहा जाता था। सारंडा और कोल्हान के जंगलों में नक्सलियों का अघोषित कर्फ्यू चलता था। ग्रामीण न तो हाट-बाजार जा पाते थे और न ही जंगल में लकड़ी बीनने। आए दिन बिछाए गए आइईडी की चपेट में लोग जान गंवाते थे। लेकिन सुरक्षाबलों के लगातार आपरेशन ने तस्वीर बदल दी। अब गांवों में जीवन पटरी पर लौट रहा है।
सुधीर पांडेय, चाईबा। झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम जिला कभी माओवाद का गढ़ कहा जाता था। सारंडा और कोल्हान के जंगलों में नक्सलियों का अघोषित कर्फ्यू चलता था। ग्रामीण न तो हाट-बाजार जा पाते थे और न ही जंगल में लकड़ी बीनने। आए दिन बिछाए गए आइईडी की चपेट में लोग जान गंवाते थे।
लेकिन सुरक्षाबलों के लगातार आपरेशन ने तस्वीर बदल दी। अब नक्सली कमजोर पड़ चुके हैं और गांवों में जीवन पटरी पर लौट रहा है। जहां एक समय आइईडी विस्फोटों और बंदूकों की गूंज सुनाई देती थी, वहां अब बच्चों की हंसी, स्कूल की घंटी और पर्यटकों के कैमरे की क्लिक सुनाई देती है।
इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जिला प्रशासन की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 1 जनवरी 2025 से 31 जुलाई 2025 तक जिले में लगातार नक्सल विरोधी अभियान चलाए गए।
इसमें सुरक्षा बलों को उल्लेखनीय सफलता मिली है। इन अभियानों के दौरान 22 माओवादियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेजा गया। साथ ही विभिन्न प्रकार के हथियार, अवैध वसूली के 36.49 लाख रुपये एवं अन्य आपत्तिजनक सामग्री भारी मात्रा में बरामद की गई हैं।
खौफ की जगह गांवों में लौटी रौनक
कभी छह माह तक नक्सल कब्जे में रहे तुम्बाहाका और सरजोमबुरू जैसे गांव अब सामान्य हो गए हैं। लोग भयमुक्त होकर चाईबासा बाजार आ रहे हैं।
जोजोहातु, अंजदबेड़ा, रेंगड़ा, लुईया, हाथीबुरू, माईपी, स्वयंबा, पातातरुब गांवों के लोग कहते हैं कि सीआरपीएफ के फारवर्ड आपरेटिंग बेस बनने से हमारे क्षेत्र में नक्सल गतिविधियां बहुत कम हो गई हैं।
तुम्बाहाका के अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों में बच्चों का पठन-पाठन सामान्य हुआ है। सुरक्षाबलों को देखकर युवा प्रेरित हो रहे हैं। मनोहरपुर, गोइलकेला, सोनुवा, बंदगांव जैसे घोर नक्सल प्रभावित प्रखंडों में सड़कों का निर्माण होने से जीवन सरल हुआ है।
गोइलकेरा निवासी लक्ष्मण सिंह बताते हैं “पहले शाम चार बजे के बाद सड़कें वीरान हो जाती थीं। अब किसी भी समय राउरकेला या बंदगांव सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। यात्री वाहनों की संख्या भी दोगुनी हो गई है।”
लाल आतंक से पर्यटन हब की ओर
सारंडा और कोल्हान के जंगल अब इको-टूरिज्म हब के रूप में विकसित किए जा रहे हैं। सारंडा डीएफओ अभिरुप सिन्हा कहते हैं, सारंडा जंगल में पर्यटन विकास के लिए काफी काम किये जा रहे हैं।
किरीबुरू व घाघीरथी में सस्पेंशन ब्रिज और काटेज तैयार हो रहे हैं। जंगल सफारी भी शुरू करने की योजना है। थोलकोबाद में नया स्कूल भवन बन गया है, जहां कभी नक्सलियों ने पुराना विद्यालय उड़ा दिया था। पिछले साल किरीबुरू-मेघाहातुबुरू में 20,000 से अधिक पर्यटक पहुंचे।
टाइमलाइन : माओवाद से बदलाव तक
- 2005–2010 नक्सलवाद चरम पर, दर्जनों पुलिस/ग्रामीण मारे गए
- 2010–2015 हिंसा जारी, आइईडी और मुठभेड़ में मौतें
- 2016–2020 ऑपरेशनों के ज़रिए दबदबा कम हुआ
- 2021–2023 ऑपरेशन सारंडा – बड़ी मात्रा में आइईडी निष्क्रिय, गिरफ्तारियां
- 2024–2025 नक्सल प्रभाव अत्यंत कमजोर, पर्यटन और विकास की वापसी
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बदली क्षेत्र की तस्वीरें
- 18 प्रखंड में से 13 पूरी तरह नक्सलमुक्त
- 30 सीआरपीएफ/कोबरा कैंप जिले में स्थापित
- 100 आइईडी सिर्फ 2025 में निष्क्रिय
- 200 से अधिक नक्सली समर्थक गिरफ्तार पिछले 5 साल में
- 20,000 पर्यटक सिर्फ 2024-25 में किरीबुरू-घाघीरथी पहुंचे
- 50 स्कूल दोबारा खुले, जहां पहले शिक्षक नहीं आते थे
क्या कहते हैं जिले के पुलिस अधीक्षक
पश्चिमी सिंहभूम जिले के पुलिस अधीक्षक राकेश रंजन कहते हैं, “माओवाद अब अपने अंतिम दौर में है। शीर्ष नेता भूमिगत हैं। हमारा लक्ष्य है कि जल्द ही पश्चिमी सिंहभूम को नक्सलमुक्त घोषित किया जाए।”
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