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    आंखों में सपने और होठों पर दर्द की दास्तां

    By Sachin MishraEdited By:
    Updated: Fri, 14 Apr 2017 12:43 PM (IST)

    तेरह वर्ष के जुगु मेलगांडी का सवाल बस एक ही है कि नक्सली का अच्छा बेटा क्यों इंजीनियर नहीं बन सकता है।

    आंखों में सपने और होठों पर दर्द की दास्तां

    भूदेव चंद्र मार्डी, डुमरिया। आंखों में सपने हैं और होठों पर दर्द की दास्तां। सपना इंजीनियर बनने का, समाज देश के लिए कुछ करने का। सपनों के उलट दर्द की फेहरिश्त लंबी है और वह सपनों पर भारी पड़ रही है। सबसे बड़ा दर्द उस कलंक का जिसके लिए वह कसूरवार तो हरगिज नहीं है। चमकती आंखों संग हालात बयां करते होंठ कांपने लगते हैं और फिर आंखें बुझने लगती है। तेरह वर्ष के जुगु मेलगांडी का सवाल बस एक ही है कि नक्सली का अच्छा बेटा क्यों इंजीनियर नहीं बन सकता है?

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    जुगु मेलगांडी लाखाईडीह आवासीय विद्यालय से कक्षा 8 तक की पढ़ाई पूरी कर अब आगे की पढ़ाई के लिए परेशान है। जुगु बताता है कि गरीबी के कारण उसका बड़ा भाई छठी क्लास के आगे नहीं पढ़ पाया। उसकी मां खेत में मेहनत मजदूरी कर उसके लिए हर माह दस किलो चावल एवं तीस रुपये किसी तरह से जुगाड़ कर लाखाईडीह पहुंचा देती है। जुगु को प्रशासन की तरफ से आज तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है। कक्षा में अव्वल जुगु मेलगांडी से बातें कर नहीं लगता है कि उसके अंदर समाज से भटके हुए लांगो गांव के उस नक्सली पिता का खून दौड़ रहा है जो 7 अगस्त 2003 की रात को लांगो में नौ नक्सलियों के साथ सेंदरा का शिकार बन गया था।

    उस वक्त जुगु दूधमुंहा था। पिता प्रधान मेलगांडी ने व्यवस्था बदलने की ठानकर मुख्यधारा से अलग राह पकड़ी थी और उसका सपना सेंदरा के साथ दुनिया से विदा हो गया। प्रधान के मारे जाने के बाद उस पर बच्चों को पालने की जिम्मेदारी थी। उसने हौसले से काम लिया और मेहनत मजदूरी कर बच्चों को पालने के साथ अच्छी शिक्षा देकर अच्छा मुकाम देने का प्रयास जारी रखा। जुगु का मझला भाई कुंवर मेलगांडी कुचाई के एक छात्रवास में रह कर पढ़ रहा है।

    जुगु की मां कितनी मेलगांडी कहती हैं- अब बेटों को पढ़ाने में समर्थ नहीं हो पा रही हूं। इतने पैसे नहीं जुट पाते कि किसी दूसरे स्कूल में नामांकन करा सकें। नामांकन हो भी जाता है तो आगे खर्च वहन नहीं कर पाएगी।

    जानिए, क्या है सेंदरा के मायने

    सेंदरा का अर्थ होता है शिकार। नक्सलियों से मुकाबले के लिए पुलिस-प्रशासन की कथित शह पर नागरिक सुरक्षा समिति (नासुस) का गठन किया गया था। पुलिस समिति को कथित रूप से संरक्षण देती थी। नक्सलियों और समिति के बीच कई संघर्ष का गवाह पूर्वी सिंहभूम का घाटशिला क्षेत्र बना था। समिति ने 7 अगस्त 2003 को घाटशिला के लांगों गांव में नौ कथित नक्सलियों का सेंदरा किया था। यह घटना सुर्खियां बनी थीं।

    हर संभव सहायता मुहैया कराएंगे

    समाज की मुख्यधारा से भटके लोग भी समाज के ही हैं। उन्हें मुख्यधारा में वापस लाने की कोशिश है। दर्जनों इसी क्षेत्र से जुड़े भी हैं। नक्सलियों के बच्चों को बिल्कुल प्रमोट किया जाएगा। उच्च अधिकारियों से बात कर सरकारी प्रावधान के अनुसार जो भी सहायता संभव हो पाएगी, उपलब्ध कराई जाएगी।

    -अजित कुमार बिमल, डीएसपी मुसाबनी।

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