चाईबासा ट्रेजरी से हुआ था चारा घोटाले का मामला उजागर
खजाने में कर्मियों को वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे। जांच में पाया गया कि पशुपालन विभाग ने बजट से ज्यादा धन निकाल लिया है।

ब्रजेश मिश्र, चाईबासा। चारा घोटाले के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ आपराधिक साजिश का केस चलाने का फैसला देने के बाद एक बार फिर चाईबासा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा के केंद्र में आ गया है। अब तक का सबसे चर्चित घोटाला तत्कालीन बिहार एवं वर्तमान में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा स्थित ट्रेजरी कार्यालय से हुआ।
बिहार सरकार के तत्कालीन वित्त सचिव वीएस दुबे के पत्र के बाद चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने खुद ट्रेजरी में पशुपालन विभाग की ओर से की गई निकासी की जांच की थी। इसके बाद 27 से 29 जनवरी तक जिले में चल रहे पशुपालन विभाग के सभी कार्यालयों को सील किया गया। उस वक्त कार्रवाई के दौरान बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पटना में मौजूद नहीं थे। दरअसल, सितंबर-अक्टूबर 1995 में बिहार के तत्कालीन वित्त सचिव वीएस दुबे की ओर से वित्तीय व्यवस्था की समीक्षा की जा रही थी।
खजाने में कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे। जांच की प्रक्रिया में पाया गया कि पशुपालन विभाग ने बजट से ज्यादा धन निकाल लिया है। ऐसे में सभी संबंधित जिलाधिकारियों को मामले की जांच करने का निर्देश दिया गया। चाईबासा के उपायुक्त अमित खरे को समाहरणालय के कोषागार में सबसे पहले गड़बड़ी मिली। उन्होंने तत्काल वित्त सचिव से संपर्क साधा और उन्हें जानकारी दी। बताया गया है कि घोटाले की भयावहता देखकर वे तीन रात नहीं सो सके थे।
वे लगातार छापेमारी करते रहे। इसमें पशुपालन विभाग के अलावा मत्स्य एवं गव्य के मद में निकासी की पड़ताल की गई। दिल्ली से पटना लौटने के बाद मामले की जानकारी मिलने पर मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उपायुक्त के काम की प्रशंसा की। उन्हें बेहतर कार्य के लिए बधाई दी। वित्त सचिव की ओर से तीन वित्तीय वर्ष की निकासी की जांच करने के लिए कहा गया था लेकिन उपायुक्त ने पांच वर्ष के कागजात खंगाल डाले। वर्ष 1993-94 से लेकर 1995-96 तक की जांच में चाईबासा कोषागार से 34 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी से जुड़ा मामला उजागर हुआ।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर 31 जनवरी को इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि सरकारी खजाने से अवैध तरीके से करीब 950 करोड़ रुपये की निकासी की गई। इसे चारा घोटाले का नाम दिया गया। इसके बाद तत्कालीन बिहार के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा के कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए गए। इस मामले में करीब 100 से अधिक लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। कई आपूर्तिकर्ताओं और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को हिरासत में लिया गया।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक सुशील कुमार मोदी, सरयू राय, शिवानंद तिवारी, राजीव रंजन सिंह की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई। इसमें पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की गई। चारा घोटाला में सीबीआई ने पहला मामला 20 ए/96 दायर किया था, जिसमें लालू सहित 56 लोगों को आरोपी बनाया गया था।

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