नीम-हकीम खतरा-ए-जान
जागरण संवाददाता, चाईबासा : एक बहुत पुरानी कहावत है नीम हकीम खतरा-ए-जान। इसका अर्थ यह है कि ऐसा व्यक्ति जिसके पास डॉक्टरी का अधूरा ज्ञान है वह आपकी जान खतरे में डाल सकता है। इसलिए लगातार यह कहा जाता है कि बीमारी का इलाज हमेशा प्रशिक्षित चिकित्सक से ही कराना चाहिए। स्वयं या फिर किसी झोला छाप डाक्टर को इलाज की जिम्मेदारी नहीं सौंपनी चाहिए। बावजूद इसके अशिक्षा व अंधविश्वास के चक्कर में फंस कर अक्सर हम अपनों की जिंदगी खतरे में डाल देते हैं। ताजा प्रकरण खूंटपानी प्रखंड के पुरनापानी गांव का है। इस गांव के विजय सुंडी के 7 माह के शिशु प्रधान सुंडी को शरीर में दाने निकल आए थे। बच्चे की मां बादानी सुंडी ने दाने का इलाज डाक्टर से कराने के बजाय स्वयं ही करना शुरू कर दिया। वह गांव के ही एक दुकान से पांच रूपये के पाउडर की पुड़िया में खरीद लायी और जहां-जहां दाने थे, वहां लगा दिया। पाउडर से आराम मिलने की बजाय बच्चे के शरीर में उभरे दानों ने बड़े फफोले का रूप ले लिया। बच्चे की हालत बिगड़ने पर स्थिति को मां बादानी ने भांपा और मंगलवार को तुरंत स्थानीय एएनएम की सहायता से चाईबासा कुपोषण केन्द्र में ला कर भर्ती कराया। नवजात का इलाज कर रहे डाक्टर जगन्नाथ हेम्ब्रम ने बताया कि बिना चिकित्सीय परामर्श के बाजार से पाउडर लाकर शिशु के शरीर पर लगाया गया था। यह पाउडर री-एक्शन कर गया और शिशु के शरीर में बड़े फफोले होने लगे व शरीर का 35 से 40 प्रतिशत हिस्सा जल गया है। डॉक्टर ने बताया कि इलाज शुरु करने के बाद से बच्चे की हालत में सुधार हो रहा है। डाक्टर ने बताया कि गर्मी के दिनों में शरीर से निकलने वाले पसीना से बच्चे के शरीर में लाल फूंसी निकल सकती है। ऐसा होने पर उसे उचित इलाज करायें न कि स्वयं अथवा झोला छाप डॉक्टर से इलाज कराने पहुंच जाएं। डॉ. हेम्ब्रम ने कहा कि गर्मी के दिनों में तालाब व नदी सूख जाता है। उसमें काफी कम पानी बचा रहता है, उसमें स्थानीय ग्रामीण व बच्चे नहाते हैं। उस पानी में भी इंफेक्शन हो सकता है, वैसे पानी में नहीं नहाना चाहिए।
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