बनारसी पान की जान है सिमडेगा की चिरौंजी, मीठे स्वाद और औषधीय गुणों से है भरपूर
बनारसी पान को विशिष्ट बनाने में झारखंड के सिमडेगा की चिरौंजी का भी अहम योगदान है।
वाचस्पति मिश्र, सिमडेगा। खईके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला। इस गाने में बनारसी पान की तारीफ यूं ही नहीं की गई। इसके चाहने वालों को दूसरा पान समझ में ही नहीं आता। दूसरे राज्यों से बनारस आने वाले लोग भी बनारसी पान का लुत्फ उठाए बिना नहीं रहते। इसकी खुशबू दूर से ही अपनी पहचान बयां करती है। पत्ता, कत्था जैसी कई चीजें हैं जो बनारसी पान को खास बनाती हैं, लोग उनसे रूबरू भी हैं, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि बनारसी पान को विशिष्ट बनाने में सिमडेगा (झारखंड)की चिरौंजी का भी अहम योगदान है। इस चिरौंजी वाले पान के लोग मुरीद हैं, इसके लिए कुछ अलग से जेब भी ढीली करनी पड़ती है, मगर इसका मलाल नहीं, शौक बड़ी चीज है।
सिमडेगा के जंगलों में बहुतायत से पैदा होने वाली चिरौंजी का आदिवासियों और स्थानीय ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। सिमडेगा से बनारस, कानपुर जैसे शहरों में बड़े स्तर पर चिरौंजी की आपूर्ति की जाती है। पान के अलावा चिरौंजी का प्रयोग मिठाई, हलवा, खीर से लेकर औषधीय तत्व के रूप में होता है। मीठे स्वाद और औषधीय गुणों के कारण ही इसकी कीमत भी अच्छी-खासी है। शहरों में यह 800 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकती है।
सिमडेगा में चिरौंजी एकत्रित करते आदिवासी।
चिरौंजी पेड़ पर फलता है। जंगल में लगे पेड़ों से आदिवासी इसे एकत्र करते हैं। यहां की मिट्टी और जलवायु इस पेड़ को खूब भाती है। इसके पेड़ को स्थानीय भाषा में चार या पियार कहते हैं। चिरौंजी का फल मई में तैयार हो जाता है। जिले के सभी 10 प्रखंडों में इसका खूब उत्पादन होता है, कहीं कम तो कहीं ज्यादा। वषरें पहले ग्रामीण-आदिवासी चिरौंजी देकर बदले में अपनी जरूरत के लिए चावल, नमक लेते थे।
अब नकद कारोबार अधिक पसंद करते हैं। अभी लोग चिरौंजी की गुठली को 100 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से साहूकारों को बचते हैं। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में मिलने वाली चिरौंजी को साहूकार एकत्र कर कानपुर व बनारस आदि बड़े शहरों में थोक स्तर पर आपूर्ति करते हैं, जहां मशीन से इसे प्रसंस्कृत किया जाता है। इसके बाद चिरौंजी की कीमत सात से आठ सौ रुपये प्रति किलोग्राम तक हो जाती है।
सीजन में बीस ट्रक माल खपता है बनारस, कानपुर में
व्यवसायी सरयू प्रसाद के अनुसार सीजन में करीब 20 ट्रक चिरौंजी की सप्लाई बनारस व कानपुर में होती है। खाने में स्वादिष्ट चिरौंजी का इस्तेमाल मेवा के रूप में होता है। घरेलू व्यंजन जैसे खीर, सेवई, हलवा आदि में इस्तेमाल होने के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। दक्षिण भारत से लेकर विदेश में भी इसकी खूब मांग है। समाजसेवी नील जस्टिन बेक कहते हैं कि वनोत्पाद यहां के वासियों की जीविका के प्रमुख आधार हैं। ऐसे में वनोत्पाद के संग्रह, प्रसंस्करण एवं बाजार पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है ताकि लोगों को अधिक से अधिक आर्थिक लाभ मिल सके। सिमडेगा में भी लोगों की पुरानी मांग रही है कि यहां चिरौंजी का प्रोसेसिंग प्लांट लगे, ताकि यहीं उसकी गुठलियों की प्रोसेसिंग हो सके और स्थानीय लोगों को ही उसका अधिकतम आर्थिक लाभ मिल सके।