संयम-त्याग से पूर्ण था महावीर का जीवन:डा.पद्मराज
संयम-त्याग से पूर्ण था महावीर का जीवनडा.पद्मराज

संयम-त्याग से पूर्ण था महावीर का जीवन:डा.पद्मराज
जासं,सिमडेगा:शहर के जैन भवन में महावीर जयंती के पूर्व संध्या में जैन मुनि डा. पद्मराज ने श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं दी।साथ ही महावीर के जीवन यात्रा के बारे में भी जानकारियां देकर उसे मनन-चिंतन करने को कहा।उन्होंने तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी जी की महिमा का परिचय देते हुए कहा कि जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर, श्रमण भगवान,श्री महावीर स्वामी जी चतुर्विध तीर्थ के संस्थापक थे । साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका के रूप में जंगमतीर्थ के चार भेद माने गए हैं। इन चार तीर्थो की स्थापना करने के कारण ही भगवान महावीर तीर्थंकर कहलाए। वे अहिंसा,प्रेम और तपस्या के मसीहा थे।उनका जीवन त्याग-संयम से ओतप्रोत था। राजमहल में पैदा होकर भी उन्होंने अपने पास एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा था। तीर्थंकर महावीर के जन्म से पहले हिंसा, पशुबलि, जाति-पांति के भेदभाव द्रुत गति से बढ़ गए थे। वे भगवान बुद्ध के समकालीन थे और उन दोनों महापुरुषों ने उक्त भेदभावों के खिलाफ आवाज उठाई। दोनों ने अहिंसा का भरपूर विकास किया।उन्होंने बताया कि महावीर जी की 28 वर्ष की उम्र में माता-पिता का देहांत हो गया।ज्येष्ठ बंधु नंदिवर्धन के अनुरोध पर वे दो बरस तक घर पर रहे। बाद में तीस बरस की उम्र में वर्द्धमान ने सन्यास ग्रहण कर लिया। वे 'श्रमण' बन गए। उनके शरीर पर परिग्रह के नाम पर एक लंगोटी भी नहीं रही। अधिकांश समय वे ध्यान में ही मग्न रहते।वर्द्धमान महावीर ने 12 साल तक मौन और कठिन तपस्या के साथ अप्रतिकार की साधना की।
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