Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यहां बच्‍चोंं के पेट में दागी जा रही लोहे की छड़, चीख से गूंज उठता पूरा जिला; अंधविश्वास पर टिकी चिड़ी काठी की परंपरा

    एक ओर इंसान चांद पर पहुंच गया है हर रोज नए-नए आविष्‍कार हो रहे हैं और दूसरी तरह समाज का एक हिस्‍सा आज भी अंधविश्‍वास में जकड़ा हुआ है। एक ऐसी ही परंपरा का पालन सरायकेला-खरसावां जिले के कई गांवों में किया जा रहा है। इसके तहत मकर संक्रांति के दिन लोहे के गर्म छड़ को बच्‍चे के नाभि के चारों ओर दाग दिया जाता है।

    By Jagran News Edited By: Arijita Sen Updated: Wed, 10 Jan 2024 10:15 AM (IST)
    Hero Image
    बच्चे को चिड़ी काठी का दाग लगाते ओझा (फाइल फोटो)

    जासं, सरायकेला। देश-दुनिया में नए-नए रिसर्च किए जा रहे हैं। दवा बनाई जा रही है, लेकिन आज भी परंपरा व मान्यताओं की जद में लोग अंधविश्वास में जकड़े हुए हैं। मेडिकल साइंस को चुनौती देने वाली चिड़ी काठी जैसी परंपरा अंधविश्वास पर टिकी है। कुछ ऐसी ही परंपराओं का निर्वहन सरायकेला-खरसावां जिले के कई पंचायत क्षेत्र के विभिन्न गांव में किया जा रहा है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मासूमों की चीख से गूंज उठेगा पूरा गांव

    वर्षों से चली आ रही इस पुरानी परंपरा में दर्द के साथ मासूमों की चीख सुनाई देती है, ग्रामीण इसे चिड़ी काठी कहते हैं। सरायकेला जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्रों सहित गम्हरिया प्रखंड के कोलाबीरा गांव में प्रत्येक पांचवें घर में एक ओझा बच्चों को चिड़ी काठी देने की तैयारी कर रहा रहा है, क्योंकि मकर के दूसरे दिन यह चिड़ी काठी दूध मुंहे बच्चों से लेकर बड़ों तक को दिया जाता है।

    ऐसे दी जाती है चिड़ी काठी

    सूरज उगने से पहले महिलाएं अपने मासूम बच्चों को गोद में लिए गांव के ओझा के घर जाती हैं, जहां घर के आंगन में मिट्टी की जमीन पर बैठा ओझा ग्राम देवता की पूजा कर गोबर के उपले को जलाकर लोहे को गर्म करता है। महिलाएं अपने बच्चों को ओझा की गोद में दे देती हैं।

    ओझा बच्चे का व गांव का नाम पूछकर नाभि के चारों ओर पहले सरसो का तेल लगाकर गर्म लोहे से नाभि के चारों ओर चार बार दाग देता है। इसके बाद बच्चे को मां को सौंप दिया जाता है। इस दौरान बच्चे की रोने की चीत्कार गूंजने लगती है। बच्चे की मां बच्चे की तकलीफ को देखे रोने लगती है।

    दादा, परदादा वर्षों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। गांव में एक दिन में 150 से ज्यादा बच्चों को चिड़ी काठी दिया जाता है। ऐसा करने से बच्चों को पेट से जुड़ी समस्या व नजर आदि नहीं लगती- बाबूराम महतो, ओझा।

    कोलाबीरा चिड़ी काठी से पेट की बीमारी दूर होने वाली बात सरासर गलत है। पूर्व में अशिक्षा के कारण इन प्रथाओं को लोग मानते थे। अब विज्ञान काफी आगे बढ़ गया है। आजकल सब बीमारी की दवा है। लोहे की सलाख से बच्चों के पेट को दागना अमानवीय है- डा. नकुल चौधरी, उपाधीक्षक सदर अस्पताल सरायकेला।

    यह भी पढ़ें: Ranchi में बनेगा ताज होटल, सरकार ने टाटा समूह की कंपनी को लीज पर दी छह एकड़ की जमीन; कैबिनेट बैठक में बनी सहमति

    यह भी पढ़ें: रिश्वतखोर दारोगा के साथ हो गया कांड! केस डायरी में सहयोग के लिए मांग रहा था पैसे, ACB को देखा तो हो गई बत्ती गुल