Jharkhand News: जिन युवाओं के पास नहीं है अपना तालाब, इस तकनीक को अपनाकर कर सकते हैं मत्स्य उत्पादन
सरायकेला-खरसावां जिले में किसान बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कर रहे हैं। जिनके पास तालाब नहीं हैं वे भी अब मछली पालन का सपना पूरा कर सकेंगे। मत्स्य विभाग ने 200 तालाबों के निर्माण के लिए सरकार से मांग की है। धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत ईचागढ़ में 56 लाख की लागत से चार नए तालाब बनेंगे।

गुरदीप राज, सरायकेला। सरायकेला-खरसावां जिले में बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल कर किसान अब मत्स्य पालन की दिशा में कदम बढ़ाने लगे हैं। जिले के जिन युवाओं के पास अपना तालाब नहीं है, वैसे युवा भी अब अपने मछली पालन के सपने को साकार कर सकेंगे।
25 डिसमिल में एक तालाब का निर्माण किया जाएगा। जिले के सभी प्रखंडों के किसानों ने बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करने के लिए मत्स्य विभाग को आवेदन दिया है।
मत्स्य विभाग ने भी बायोफ्लॉक तकनीक से मत्स्य पालन के लिए करीब 200 तालाब के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से मांग की है।
हालांकि, धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत चार नए बायोफ्लॉक तालाब के निर्माण की अनुमति मिली है।
इसके तहत 56 लाख की लागत से चार नए बायोफलॉक तालाब ईचागढ़ प्रखंड के लेपाटांड में बनाए जाएंगे, जिससे मछली पालन को तकनीकी रूप से और अधिक सुदृढ़ किया जा सकेगा। एक तालाब निर्माण में करीब 14 लाख की लागत आएगी।
ऐसे होगा मछली पालन
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लॉक तकनीक से सरायकेला के ईचागढ़ प्रखंड में एक तालाब का निर्माण किया गया है। इसमें समतल भूमि पर लोहे की जाली और प्लास्टिक लगाकर उसमें पानी भरा गया है।
साथ ही कुछ अन्य उपकरण लगाकर इस प्लास्टिक नुमा तालाब के पानी को तापमान और ऑक्सीजन लेवल को मछली पालन के अनुरूप बनाया गया। तालाब के ऊपर प्लास्टिक का जाल भी बिछा दिया जाता है ताकि मछली तालाब से नहीं निकल पाए।
इस तकनीक के माध्यम से मछली पालन के लिए तालाब की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस तकनीक से मछली पालन में पानी की भी बचत होती है।
इन प्लास्टिक नुमा तालाबों से मछलियों को निकालना भी आसान है। सिर्फ पानी निकाल देने से सारी मछलियां मिल जाएगी। बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के लिए ऊंचे दामों वाली मछलियों का ही पालन किया जाता है ताकि अधिक मुनाफा हो सके।
बायोफ्लॉक तकनीक से फीड की होती है बचत
बायोफ्लॉक एक जीवाणु (बैक्टीरिया) का नाम है, जिसका इस तकनीक से मछली पालन में उपयोग होता है। इन तालाबों में पानी डालने, पानी निकालने और उसमें ऑक्सीजन लेवल, तापमान मछली के अनुकूल बनाए रखने की व्यवस्था होती है।
इन तालाबों में मछलियां जितना चारा (मछली का फीड) खाती हैं, उसका करीब 75 फीसदी मल के रूप में निकाल देती है। यह मल पानी में फैल जाता है, जिसे बायोफ्लॉक बैक्टीरिया प्रोटीन में बदल देता है।
इसे फिर मछलियां खा जाती हैं। इससे एक-तिहाई फीड की बचत होती है और पानी भी साफ हो जाता है। इससे मछली पालन की लागत कम हो जाती है।
बायोफ्लॉक तकनीक मछली उत्पादन में काफी कारगर है। इस पद्धति के लिए जिले के किसानों के कई आवेदन आ चुके हैं। 56 लाख की लागत से चार नए बायोफ्लॉक तालाब ईचागढ़ प्रखंड के लेपाटांड में बनाए जाएंगे। सरकार से 200 तालाब के निर्माण की मांग की गई है। 25 डिसमिल में एक तालाब तैयार होता है। -रौशन कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी सरायकेला खरसावां
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