साहिबगंज कालेज के रूप में लगाया वृक्ष अब बन गया बागीचा
देश की आजादी के तत्काल बाद यहां के सेठ मटरूमल धन्ना लाल बाबू फौजी लाल सिन्हा व शिवलाल बसंतलाल ने यहां उच्च शिक्षा संस्थान का एक सपना देखा जो 1951 में साहिबगंज कालेज के रूप में साकार हुआ।

शिवशंकर कुमार, साहिबगंज : देश की आजादी के तत्काल बाद यहां के सेठ मटरूमल धन्ना लाल, बाबू फौजी लाल सिन्हा व शिवलाल बसंतलाल ने यहां उच्च शिक्षा संस्थान का एक सपना देखा जो 1951 में साहिबगंज कालेज के रूप में साकार हुआ। बाबू फौजी लाल सिन्हा व शिवलाल बसंतलाल ने कालेज के लिए जमीन दी तो सेठ मटरूमल धन्ना लाल ने भवन का निर्माण कराया। वर्तमान आर्ट्स ब्लाक में कालेज की शुरुआत हुई। 1975 में इस कालेज का सरकारीकरण कर दिया गया। इस कालेज से लाखों छात्र अब तक लाभान्वित हो चुके हैं। कई छात्र बड़े-बड़े पदों पर कार्यरत हैं। दरअसल, आजादी के बाद यहां के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भागलपुर या बंगाल जाना पड़ता था। यह क्षेत्र काफी पिछड़ा था। लोगों के पास पैसे नहीं थे। इस वजह से यहां के लोग उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते थे। इस समस्या को देखते हुए सेठ मटरूमल धन्ना लाल, बाबू फौजी लाल सिंहा व शिवलाल बसंतलाल ने कालेज की स्थापना का निर्णय किया। बाबू फौजी लाल सिन्हा ने कालेज के लिए 29 बीघा 16 कट्ठा नौ धूर (लगभग 10 एकड़) दी। फौजी लाल अधिक पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन शिक्षा के महत्व को समझते थे। कालेज के स्थापना 1951 से लेकर 1961 तक बाबू फौजी लाल कालेज के सचिव रहे। सेठ मटरूमल धन्ना लाल के वंशज अब यहां नहीं रहते लेकिन बाबू फौजी लाल सिंहा व शिवलाल बसंतलाल के वंशज अब भी यहां रहते हैं। कालेज को देखकर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। स्वर्गीय फौजी के पौत्र सुनील सिन्हा बताते हैं कि जब कालेज की नींव रखी गई था तो उस समय पांच लोगों की कमेटी बनी थी। उसमें फौजी लाल सिन्हा, शीतल चौधरी, राम नारायण अग्रवाल, शिव कुमार भरतिया और राधा कृष्ण ठाकुर थे। प्रारंभिक दौर में कालेज प्राइवेट था। यहां की बेहतर व्यवस्था को देखते हुए तत्कालीन बिहार सरकार ने 1975 में इसका सरकारीकरण कर दिया। पहले प्रिसिपल राम नारायण अग्रवाल बने। इसी साल बाबू फौजी लाल सिन्हा का देहांत भी हो गया। पौत्र सुनील सिन्हा ने बताया कि दादा का सपना था कि यहां के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले। कालेज का नाम दूर-दूर तक था। यहां गोड्डा, दुमका, भागलपुर, कटिहार के युवक-युवतियां रहकर पढ़ते थे। यही वजह था कि उस समय संपूर्ण बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में तीसरा स्थान साहिबगंज कालेज का नाम आता था। एक दशक पूर्व तक तीन नंबर लाज, दहला का आडियल लाज, कुलीपाड़ा के हजारीसाव लाज में युवक रहकर पढ़ाई करते थे। इस कालेज से शिक्षा पाकर आज कई लोग देश के बड़े बड़े पद पर कार्यरत हैं।
बनेगा बाबू फौजी लाल सिन्हा का स्मारक : सुनील सिन्हा कहते हैं कि पूर्व प्राचार्य सिकंदर यादव और पूर्व कुलपति डा. विक्टर तिग्गा ने बाबू फौजीलाल सिन्हा का स्मारक स्थापित करने के लिए सहमति प्रदान कर दी थी, लेकिन कुछ कारणों से वह नहीं बन सका। अब वर्तमान प्रिसिपल से मिलकर स्थान चिह्नित कर जल्द स्थापना की जाएगी। कहा कि जब भी कालेज प्रशासन को वित्तीय सहायता या खिलाड़ियो के लिए जो भी आवश्यकता होती है वे कहते हैं। हाल ही में वहां तोरण द्वार बनवाया गया है।
पीजी तक की होती पढ़ाई : साहिबगंज कालेज के प्रिसिपल संतोष कुमार राहुल ने बताया कि यहां पीजी तक की पढ़ाई होती है। वर्ष 2002 से इग्नू से बीएड, बीसीए की पढ़ाई शुरू हुई। 2006 में साहिबगंज कालेज में बीएड की पढ़ाई स्थायी रूप से शुरू हुई। इसके अलावा बीबीए, लाइब्रेरी एंड इंफारर्मेशन साइंस, कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स की शुरूआत हुई। साहिबगंज कालेज को सात ब्लाक में बांटा गया है। कालेज में छात्रों की सुविधा को देखते हुए एक पोस्ट आफिस, एटीएम, बैंक, हेल्थ सेंटर है। आदिवासी किशोरों को ध्यान में रखते हुए लड़का और लड़की के अलग अलग हास्टल की व्यवस्था की गई है।
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