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    Sahibganj News झारखंड की जमीन का पश्चिम बंगाल में निबंधन

    By Gautam OjhaEdited By:
    Updated: Fri, 16 Sep 2022 04:34 PM (IST)

    1905 में बंगाल से अलग होकर बिहार अस्तित्व में आया। तब से इन दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद चलता रहा। 1968 में बिहार व पश्चिम बंगाल के बीच भूमि समझाैता हुआ था। इसके तहत गंगा नदी के पश्चिमी को बिहार व पूर्वी को पश्चिम बंगाल का भूभाग माना गया।

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    साहिबगंज के उधवा स्थित इलाके की प्रतिमाकात्मक तस्वीर जिसका निबंधन पश्चिम बंगाल में होता है।

    जागरण संवाददाता, साहिबगंज : जिले के उधवा अंचल में रहनेवाले कुछ लोग आज भी अपनी भूमि की रजिस्ट्री मालदा के कलियाचक स्थित निबंधन कार्यालय में कराते हैं। जी हां। यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा लेकिन यह बिल्कुल सही है। इसका कारण साहिबगंज जिला प्रशासन के पास इन भूमि से संबंधित दस्तावेज न होना है। 1905 में पश्चिम बंगाल से अलग होकर बिहार अस्तित्व में आया। उसके बाद दोनों राज्यों के बीच सीमा को लेकर विवाद चलता रहा। 1968 में बिहार तथा पश्चिम बंगाल के बीच भूमि समझाैता हुआ था। इसके तहत गंगा नदी के पश्चिमी हिस्से को बिहार तथा पूर्वी हिस्से को पश्चिम बंगाल का भूभाग माना गया। उस समय जमींदार प्रथा को समाप्त कर जमीन का मालिकाना हक रैयतों को देना था। रजिस्टर टू तो बिहार को मिला लेकिन खतियान अर्थात रजिस्टर वन पश्चिम बंगाल में रह गया। इधर, झारखंड में इन जमीन का सर्वे नहीं हुआ जिस वजह से बाद में रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गयी। ऐसे में उधवा क्षेत्र के लोग मालदा जिले के कलियाचक जाकर अपनी जमीन का निबंधन कराते हैं। झारखंड में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाने का प्रस्ताव राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा पारित करने के बाद इस क्षेत्र के लोगों की भी चिंता बढ़ गयी है क्योंकि इन क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों के पास झारखंड का किसी प्रकार का भूमि संबंधी दस्तावेज नहीं है।

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    दोनों राज्यों के बीच भूमि विवाद : झारखंड-पश्चिम बंगाल के बीच 49 मौजा की भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद भी चल रहा है। इनपर दोनों ही राज्य अपना-अपना दावा करते हैं। इनमें 22 मौजा उधवा तो 10 मौजा राजमहल अंचल का है। भूमि 50 हजार एकड़ से अधिक होगी। 2011 में इसे सुलझाने की कोशिश हुई थी। मामला अंतरराज्यीय विकास परिषद में उठा था लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पाया। एक बार पुन: पूर्व राज्य सरकार ने जिला प्रशासन से इस मामले में अद्यतन प्रतिवेदन मांगा है। चूंकि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच अच्छे संबंध हैं। इससे उम्मीद की जा रही है मामले को जल्द ही सुलझा लिया जाएगा। बताया जाता है कि जिन क्षेत्रों पर पश्चिम बंगाल अपना दावा करता है उन क्षेत्रों में कल्याणकारी योजनाओं का संचालन झारखंड सरकार द्वारा किया जाता है। लोकसभा, विधानसभा व पंचायत चुनाव तक में लोग वर्षो से भाग लेते आ रहे हैं। इन इलाके में मालदा जिले के कलियाचक एवं मानिकचक अंचल से सटे श्रीधर, पलाशगाछी, पियारपुर, प्राणपुर, जीतनगर, बानूटोला, रानीगंज, नारायणपुर, सज्जादटोला, निमाईटोला, नित्यानंदपुर, रतनलालपुर, दोगाछी, गजियापाड़ा, कचियदुपुर, बेगमगंज, रहीमपुर, हाकिमाबाद, मंगतपुर, रूस्तमपुर, पंचानंदपुर, खासमहालपुर, कमालुद्दीनपुर, झाउबोना, दरिदियारा, जयरामपुर, दसकठिया, भवानंदपुर मौजा आदि शामिल हैं।

    राजमहल लोकसभा के सांसद विजय हांसदा का कहना है कि झारखंड, पश्चिम बंगाल व बिहार के बीच सीमा क्षेत्र की कुछ भूमि को लेकर विवाद है। सभी उसपर अपना अपना दावा करते हैं। चूंकि झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्र के एक बड़े हिस्से का सर्वे नहीं हुआ है। इस वजह से विवाद का समाधान नहीं हो रहा है। मैंने इस मामले को लोकसभा में उठाया था। सर्वे शुरू भी हुआ था लेकिन फिर बंद हो गया। यह क्यों बंद हुआ इसकी जानकारी लूंगा। सर्वे कराकर सीमा विवाद का निष्पादन कराया जाएगा।

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