shaibganj news नवमी को जंजीर से बांध दी जाती मां प्रतिमा
आस्था का केंद्र है मां पगली दुर्गा मंदिर दूर दूर से आते यहां आते हैं श्रद्धालु। नवमी को एक हजार से अधिक बकरे की दी जाती है बली। राजमहल के बढ़ई में ढाई सौ साल पहले एक बड़ा हिस्सा निवास करता था। यहां भारी मात्मरा में हामारी फैल गई थी।

रतन कुमार राय, राजमहल ः राजमहल प्रखंड के मंडई स्थित मां पगली दुर्गा सिर्फ साहिबगंज जिला ही नहीं वरन संपूर्ण झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल व ओड़िशा के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। यह मंदिर 250 साल से अधिक पुराना है। यहां प्रतिवर्ष अष्टमी, नवमी एवं दशमी के दिन भक्तों का सैलाब मां के दर्शन को उमड़ता है। नवमी तिथि पर प्रत्येक वर्ष लगभग 1000 से अधिक पाठा बलि यहां पड़ती है। लोगों के मन्नतें पूरे होने पर लोग पाठा बलि देते हैं। ऐसी मान्यता है कि नवमी तिथि को बलि के दौरान माता का सिर झुक जाता है इसलिए प्रतिमा को जंजीर से बांध दिया जाता है। दशमी के दिन बिना किसी तामझाम के प्रतिमा को मंदिर से सटे तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। यहां के पुजारी सपन अवस्थी बताते हैं कि पूर्व में कई बार भक्तों ने गीत-संगीत के साथ विसर्जन शोभायात्रा निकालने का प्रयास किया लेकिन हर बार कोई न कोई विघ्न उपस्थित हो गया और शोभायात्रा बाधित हो गयी। इसके बाद दशमी तिथि को माता की प्रतिमा का विसर्जन मंदिर परिसर में ही स्थित तालाब में कर दिया जाता है।
बुजुर्गों की मानें तो लगभग 250 वर्ष पूर्व राजमहल की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मंडई में ही निवास करता था। महामारी फैलने के चलते लोग वहां से पलायन करने लगे। वहां के कई परिवार राजमहल, कोठीबगीचा, काजी गांव, तीनपहाड़ आदि क्षेत्रों में जाकर बस गए। इसी बीच एक रात माता ने ब्राह्मण परिवार के एक भक्त को बताया कि गांव में उनकी बेदी बनाकर पूरे भक्ति भाव से पूजा अर्चना करो तो वह सबका कष्ट हर लेंगी। ब्राह्मण ने इस बात की जानकारी ग्रामवासियों को दी। ग्रामवासियों ने उनकी बातों को मानकर माता की वेदी स्थापित कर नियमित रूप से पूरे मनोभाव से माता की पूजा शुरू की। इसके बाद गांव में फैली महामारी थम गयी।तब से वहां पूजा अर्चना हो रही है।
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