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    चुनाव लड़ाने के लिए आदिवासी से कर लेते शादी

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 21 May 2022 04:01 AM (IST)

    चुनाव लड़ाने के लिए आदिवासी से कर लेते शादी

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    चुनाव लड़ाने के लिए आदिवासी से कर लेते शादी

    चुनाव लड़ाने के लिए आदिवासी से कर लेते शादी

    डा. प्रणेश, साहिबगंज : साहिबगंज जिला आदिवासी बहुल है। यहां के तालझारी, पतना, बरहेट, मंडरो व बोरियो प्रखंड में मुखिया के सभी पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। शेष बरहड़वा, उधवा, राजमहल व साहिबगंज में भी मुखिया के अधिकतर पद भी आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। गैर आदिवासी इन पंचायतों में चुनाव नहीं लड़ सकते हैं और आदिवासी ठहरे सीधे-साधे। उन्हें राजनीति से बहुत ज्यादा मतलब होता नहीं है। ऐसे में यहां के गैर आदिवासियों ने एक नया तरीका खोज लिया है। वे आदिवासी महिला या युवती से शादी कर लेते हैं और उन्हें चुनाव मैदान में उतार देते हैं। जीतने पर निर्वाचित जनप्रतिनिधि के अधिकारों का उपयोग स्वयं करते हैं। आदिवासी से शादी कर इसका लाभ उठाने में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आगे हैं। एक अनुमान के मुताबिक पिछले पंचायत चुनाव में करीब 20 से 25 फीसद वैसी आदिवासी महिलाएं चुनाव जीत गई थीं जिन्होंने गैर आदिवासियों से शादी कर ली थी। चुनावी वर्ष में इस तरह की शादी खूब होती है। चुनाव लड़ाने के लिए कई लोगों ने तो एक पत्नी के रहते हुए भी दूसरी शादी कर ली।

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    प्रत्येक चुनाव में उठता मामला : प्रत्येक चुनाव में यह मामला उठता है पर बाद में शांत हो जाता है। पिछले पंचायत चुनाव में भी यह मामला उठा था। दो चार दिन शोर शराबा हुआ लेकिन पुन: मामला शांत हो गया। इस बार भी तालझारी प्रखंड से यह मामला उठा था। कुछ लोगों ने राजमहल एसडीओ को इस संबंध में ज्ञापन भी दिया था। वर्तमान में यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है कि इस चुनाव में दूसरे राज्यों से यहां आनेवाली बहुओं को आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया गया है। इससे एक अलग तरह की समस्या पैदा हो गई है।

    बिगड़ रहा सामाजिक ताना-बाना : इस प्रकार की शादी से सामाजिक ताना बाना भी बिगड़ रहा है। कई गैर आदिवासी शादी के बाद अपनी ससुराल में ही बस गए हैं। पहाड़ी गांवों में इस तरह की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं। चूंकि गैर आदिवासी आदिवासियों की अपेक्षा तेज तर्रार होते हैं इसलिए वह धीरे-धीरे वहां के संसाधनों पर कब्जा जमा लेते हैं। यहां के अधिकतर पहाड़िया गांवों में आपको अल्पसंख्यक समुदाय के ठेकेदार मिल जाएंगे।

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    ....और निर्विरोध बन गई मुखिया

    राजमहल प्रखंड की गदाई दियारा पंचायत पिछले दो चुनावों से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी। उम्मीदवार न होने से यहां मुखिया का चयन नहीं होता था। इस बार वहां के पिंटू मंडल नामक युवक ने आदिवासी युवती पार्वती हांसदा से शादी की। चुनाव में नामांकन कराया और वह निर्विरोध मुखिया हो गई। इससे पूर्व राजमहल प्रखंड की सैदपुर पंचायत के दुर्गा मंडल ने तेरेसा टुडू से शादी की। तेरेसा टुडू 2010 व 2015 में मुखिया बनी। मोकिमपुर पंचायत के विनोद मंडल ने मेरी मुर्मू से विवाह किया। मेरी मुर्मू 2015 में मोकिमपुर की निर्विरोध मुखिया बनी। घाट जमनी पंचायत के हरिप्रसाद मंडल ने मकलु मुर्मू से विवाह किया। मकलू 2010 में मुखिया बनी। इसी पंचायत के तपन प्रमाणिक ने तालामय हांसदा से विवाह किया। 2015 में तालामय हांसदा व मकलु मुर्मू में मुकाबला हुआ। तालामय जीत गई। इस बार बुद्धदेव मंडल ने भी आदिवासी महिला से विवाह कर उसे चुनाव मैदान में उतारा है। मोकिमपुर पंचायत में सनातन कुमार साह ने सुनीता मुर्मू, अशोक कुमार रजक ने बालेश्वरी हांसदा व डोमन मंडल ने संझली सोरेन से शादी की। तीनों उम्मीदवार हैं। सैदपुर पंचायत के ओमप्रकाश मंडल ने फूलमुनि एक्का से शादी की। फूलमनी ने 2010 एवं 2015 में चुनाव लड़ा। दोनों में हार हुई। बरहड़वा प्रखंड की सातगाछी पंचायत में मो. रहमत विश्वास ने मारथा मालतो से शादी की। कालु पंचायत में राजकुमार पासवान ने बहाफुल सोरेन तो हरिभक्त घोष ने मरियम मुर्मू से शादी की। मधुवापाड़ा पंचायत में समीरूल इस्लाम ने मरांग बिटी हांसदा, मयूरकोला पंचायत में तेज नारायण साह ने लक्ष्मी टुडू, बड़ा सोनाकड़ में वकील अंसारी ने सोना किस्कू से शादी की और उन्हें चुनाव मैदान में उतारा। यह आंकड़ें केवल राजमहल व बरहड़वा प्रखंड के हैं। अन्य प्रखंडों की स्थिति भी इसी तरह की है।

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    सात पहले मैंने पार्वती हांसदा से शादी की थी। मैं बाहर रहता था। पिछली बार मतदाता सूची में पार्वती हांसदा का नाम नहीं था। इस बार नाम जुड़ा तो नामांकन किया और निर्विरोध चुनाव जीत गई। चुनाव लड़ने के लिए शादी नहीं की।

    पिंटू मंडल, मुखिया पति गदाई दियारा, राजमहल।

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    जनजातियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए आरक्षण की नीति बनायी गई थी। जनजाति समाज की कोई महिला या पुरुष अपना धर्म बदलता है तो वह पुराने धर्म को छोड़ देता है और नए समाज का अंग हो जाता है। ऐसे में जनजातियों के लिए आरक्षित सीट से उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए। यह जनजाति समाज की हकमारी है।

    सीताराम ठाकुर, जिला सचिव गिरि वनवासी कल्याण परिषद, साहिबगंज।