Move to Jagran APP

Jharkhand: दरक रहा तेलियागढ़ी किला, खतरे में गेट-वे ऑफ बंगाल

भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित करने की घोषणा की। बावजूद किले के आसपास पहाड़ी पर पत्थर के अवैध खनन के लिए हो रहे विस्फोट इसे लील लेने को आतुर हैं। दीवारें दरक रही हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 07 Jun 2019 11:14 AM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2019 04:25 PM (IST)
Jharkhand: दरक रहा तेलियागढ़ी किला, खतरे में गेट-वे ऑफ बंगाल
Jharkhand: दरक रहा तेलियागढ़ी किला, खतरे में गेट-वे ऑफ बंगाल

साहिबगंज, [धनंजय मिश्र]। संताल परगना का राजमहल इलाका। पहाड़ियों से भरपूर इस क्षेत्र का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यहीं पर राजमहल की पहाड़ियों के बीच मंडरो के गढ़ी मौजा में गेट-वे ऑफ बंगाल के नाम से मशहूर तेलियागढ़ी किला है। तंत्र की लापरवाही से यह धरोहर कब खत्म हो जाएगी, कहा नहीं जा सकता। आज इस किले की दीवारें दरक रही हैं।

loksabha election banner

भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित करने की घोषणा भी की। बावजूद किले के आसपास पहाड़ी पर पत्थर के अवैध खनन के लिए हो रहे विस्फोट इसे लील लेने को आतुर हैं। इस किले की दीवारें दरक रही हैं। चीनी यात्री ह्वेन सांग, इरानी यात्री अब्दुल लतीफ एवं फ्रांसिस बुकानन ने अपनी रचनाओं में इस किले का उल्लेख किया है। ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल ने वर्ष 2009-10 में 15 लाख की लागत से किले की चारदिवारी एवं अन्य जगह मरम्मत कराई थी, लेकिन इसके बाद भी देखरेख के अभाव में किले की दीवारें जगह-जगह दरक और ढह रही हैं।

  • भारतीय भवन निर्माण कला की बेजोड़ धरोहर को सहेजने में नाकाम हो रहा तंत्र

  • पत्थरों के अवैध खनन के लिए हो रहे विस्फोट ने हालात बनाए बदतर

  • चीनी यात्री ह्वेन सांग, इरानी यात्री अब्दुल लतीफ एवं फ्रांसिस बुकानन ने किया है इस किले का वर्णन

सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था तेलियागढ़ी किला
तेलियागढ़ी का ऐतिहासिक किला कभी आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। इस किले का 15 वीं शताब्दी में हिंदू साहू राजा ने निर्माण कराया। 16वीं शताब्दी में बंगाल के मुगल शासक जलाल ने साहू राजा को परास्त कर इस किले पर अधिपत्य स्थापित किया। उन्होंने इसे दुर्ग का स्वरूप दिया। बंगाल पर किसी भी आक्रमण को रोकने के लिए यहां सेना की एक टुकड़ी हमेशा रहती थी। प्राचीन बंगाल में प्रवेश करने के लिए संताल से यही प्रवेश द्वार था।

राजमहल की पहाड़ी के रास्ते सेना के आने जाने का रास्ता भी यहां से ही था। महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में आए यवन राजदूत मेगास्थनीज ने गंगा नदी से सटे पहाड़ पर काले पत्थरों व ईंटों से बने इस किले का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी इसका उल्लेख किया है। सोलहवीं सदी में भारत आए इरानी यात्री अब्दुल लतीफ एवं अठारहवीं सदी में आए फ्रांसिस बुकानन ने भी अपनी रचनाओं में इसका उल्लेख किया है।

भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना
तेलियागढ़ी किला भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। जो बताता है कि अतीत में हमारा भवन निर्माण ज्ञान कितना समृद्ध था। इस किले में जगहजगह बने मेहराब इसकी गौरवगाथा सुनाते हैं। सुर्खी और चूने के मिश्रण से ईंटों की ऐसी जुड़ाई की गई जो सैकड़ों वर्षों बाद भी अपनी मजबूती को बयां कर यहां के कला का नमूना पेश कर रही है। बावजूद आज मानवीय क्रियाकलाप और शासन की अनदेखी इस धरोहर को खत्म करने पर तुली है।

साहिबगंज जिले में पर्यटन विकास को लेकर प्लान तैयार कर राज्य सरकार को भेजा है। यहां के सभी ऐतिहासिक स्थलों व किले को संरक्षित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। किले के आसपास जो भी खनन हो रहा है तो उसे बंद कराया जाएगा। किले को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। संदीप सिंह, उपायुक्त, साहिबगंज

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.