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    घट रहा वनों का दायरा मानव के लिए हानिकारक

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 30 Jun 2020 05:17 PM (IST)

    धनंजय मिश्र साहिबगंज अरण्याचल में जंगल बचाने को जद्दोजहद हो रही है। विज्ञान कहता है कि पेड़ों द्वारा उत्सर्जित ऑक्सीजन और कार्बनडाइक्साईड गैस के अवशोषण के गुण मानव जीवन के लिए वरदान हैं। प्राकृतिक संतुलन में पेड़ मुख्य भूमिका धनंजय मिश्र साहिबगंज अरण्याचल में जंगल बचाने को जद्दोजहद हो रही है। विज्ञान कहता है कि प

    घट रहा वनों का दायरा मानव के लिए हानिकारक

    धनंजय मिश्र, साहिबगंज: अरण्याचल में जंगल बचाने को जद्दोजहद हो रही है। विज्ञान कहता है कि पेड़ों द्वारा उत्सर्जित ऑक्सीजन और कार्बनडाइक्साईड गैस के अवशोषण के गुण मानव जीवन के लिए वरदान हैं। प्राकृतिक संतुलन में पेड़ मुख्य भूमिका निभाते हैं। परंतु आदिवासी व आदिम जन जाति बहुल साहिबगंज जिले में पौधरोपण करने के उपरांत उनकी सुरक्षा करना जो बेहद जरूरी है। वन विभाग साधनों एवं संसाधनों के अभाव में नहीं कर पा रहा है। प्रतिवर्ष लाखों पेड़ लगाए जाते हैं, लेकिन सुरक्षा एवं देखभाल के अभाव में वे जल्द ही दम तोड़ देते हैं। इसको लेकर सुदूर गांवों से लेकर शहरों तक में जागरुकता की कमी है। जहां से एक पेड़ कटे, वहां कम से कम दो पेड़ लगाने का संकल्प पूरा नहीं हो पा रहा है। साहिबगंज जिले को वनाच्छादन के मामले में आदर्श होने के लिए अभी बहुत कुठ करना होगा। यहां हरियाली का रकबा कम है जिसे बढ़ाने का प्रयास वन विभाग कर रहा है।

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    1950-60 के दशक में 560 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले थे सघन वन

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    सरकारी आंकड़ों के अनुसार साहिबगंज जिले में वर्ष 1950-60 के दशक में 560 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सघन वनों का दायरा था। वह धीरे धीरे घटकर 350 वर्ग किलोमीटर में बच गया है। हालत यह है कि सुरक्षित वनों के आसपास पत्थर खदान व क्रशर खुल रहा है। जो पर्यावरण की ²ष्टि से काफी खतरनाक है। वन क्षेत्र के आसपास हो रहे हैवी ब्लास्टिग से आदिम पहाड़िया जन जाति के जीवन पर उसके भावि संतति वा खतरा मंडरा रहा है। जबकि प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के गाइड लाइन के अनुसार सड़क या रेल मार्ग से 2 सौ मीटर की दूरी पर क्रशर लगाने की अनुमति मिल सकती है। परंतु इसका अनुपालन भी संभव नहीं हो पा रहा है। साहिबगंज जिले में सकरोगढ़ दामिन क्षेत्र में बोरियो व साहिबगंज प्रखंड के 3 वन परिसर आते हैं। राजमहल दामिन वन क्षेत्र में तालझारी, राजमहल व उधवा प्रखंड के 3 वन परिसर आते हैं। मंडरो दामिन क्षेत्र में मंडरो प्रखंड का 2 वन परिसर आता है। जबकि बरहड़वा दामिन वन क्षेत्र में पतना, बरहड़वा व बरहेट प्रखंड के 4 वन परिसर आते हैं। वन क्षेत्र व परिसर के हिसाब से रेंज पदाधिकारी व वन संरक्षण के लिए बल की कमी है। जिस कारण वनों कटान पर पूरी रोक नहीं लग पा रही है। हाल में जिलेबिया घाटी को उजाड़ने का सिलसिला तेज हो गया है।

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    कोट

    जिले में पौधारोपण ही मानव जीवन को शुद्ध् हवा मिलने का एक मात्र विकल्प है। परंतु जिस तादाद में वनों को उजाडने का सिलसिला चल रहा है। पत्थर निकालने के लिए नियम का उल्लंघन कर वनों को उजाड़ा जा रहा है वह पर्यावरण की ²ष्टि से अनुकूल नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को संकल्प लेना होगा कि जन्म दिन मनाने, शादी की सालगिरह मनाने से लेकर प्रत्येक अवसर पर पौधा लगाकर जिदगी को खुशहाल बनाएं। जिले में खनन की जगह पर्यटन अपनाने पर ही वनों की रक्षा हो सकती है।

    डा. रंजित कुमार सिंह, पर्यावरणविद,साहिबगंज

    कोट

    साहिबगंज जिले में वनों की रक्षा के लिए विभाग प्रयासरत है। वन सुरक्षा समितियों का गठन किया गया है। पहाड़ी क्षेत्र में वनो को लगाकर सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जा रही है। जिले में इस वित्तीय वर्ष में विभिन्न योजनाओं से 3.70 लाख पौधा बरसात में लगाया जा रहा है। जिससे वनों का दायरा बढ़ाया जा सके।

    विकास पालीवाल, डीएफओ, साहिबगंज